गौरी भोंसले नहीं, संपादक कहाँ हैं?

एबीपी न्यूज इन दिनों लंदन की एनआरआई लड़की गौरी भोंसले को खोजने में जुटा हुआ है. चैनल के मुताबिक, लंदन से भारत के कोल्हापुर के लिए निकली गौरी भोंसले बीच में कहीं गुम हो गई. चैनल पर गौरी की गुमशुदगी के बारे में लगातार ‘ब्रेकिंग न्यूज’ और स्क्रोल भी चल रहा है जिसमें लन्दन पुलिस के एक अफसर के बयान से लेकर उसके बारे में कुछ जानकारियां भी शामिल हैं. दर्शकों से अपील की जा रही है कि अगर गौरी भोंसले दिखाई दे तो एक खास नंबर पर फोन करें. 

एबीपी न्यूज पर कई दिनों से चल रही इस सनसनीखेज ‘खबर’ के बीच ही अंग्रेजी के तीन बड़े अखबारों में यह ‘खबर’ छपी कि लंदन से गुम हुई गौरी भोंसले को सहारनपुर पुलिस ने देवबंद के पास एक गांव से बरामद कर लिया है. लेकिन इसके पहले कि यह ‘एक्सक्लूसिव खबर’ सभी चैनलों और अखबारों की सुर्खियों में छा जाती, यह पता चला कि देवबंद से बरामद लड़की न तो एनआरआई है और न ही गौरी भोंसले. वह गौरी भोंसले हो भी नहीं सकती थी क्योंकि सच यह है कि गौरी भोंसले नाम की कोई एनआरआई लड़की गुम नहीं हुई है. 

दरअसल, गौरी भोंसले एक काल्पनिक चरित्र है जो मनोरंजन चैनल ‘स्टार प्लस’ पर 12 नवंबर से शुरू होनेवाले धारावाहिक की मुख्य नायिका है. ‘स्टार प्लस’ का दावा है कि उसने इस धारावाहिक के प्रचार के लिए एबीपी न्यूज और बाद में कई और चैनलों पर चलनेवाले उस खबरनुमा विज्ञापन अभियान का सहारा लिया और दर्शकों का ध्यान खींचने की कोशिश की. यह और बात है कि इस विज्ञापन अभियान से जिससे बहुतेरे दर्शक और यहां तक कि अखबार भी धोखा खा बैठे और गौरी भोंसले की गुमशुदगी की कहानी को सच्ची मान बैठे, वह कभी विज्ञापन की तरह नहीं दिखा.

तथ्य यह है कि एबीपी न्यूज पर उसे खबर की तरह गढा, पढ़ा और पेश किया गया. चैनल के एंकर ने उसे उसी शैली में पढ़ा और पेश किया जिस शैली में बाकी ब्रेकिंग न्यूज पेश की जाती है. साफ़ तौर पर यह विज्ञापन नहीं बल्कि पेड न्यूज था और चैनल ने विज्ञापन को ‘खबर’ की तरह दिखाकर अपने दर्शकों के साथ धोखा किया है. उनके विश्वास को तोडा है. उन्हें बेवकूफ बनाया है. कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे प्रकरणों से दर्शकों का चैनलों और उनकी ब्रेकिंग न्यूज में भरोसा कम होगा. ऐसे ही चला तो ब्रेकिंग न्यूज जल्दी ही ‘ब्रोकरिंग न्यूज’ (खबर दलाली) बन जाएगी. 

सच पूछिए तो इस प्रकरण ने गौरी भोंसले से ज्यादा चैनलों में संपादक की गुमशुदगी और मार्केटिंग/सेल्स मैनेजरों के बढ़ते दबदबे को उजागर किया है. दोहराने की जरूरत नहीं है कि खबर में विज्ञापन की सीधी घुसपैठ ने संपादक नाम की संस्था को बेमानी बना दिया है. इससे यह भी पता चलता है कि खबर और विज्ञापन के बीच राज्य और चर्च की तरह की स्पष्ट और मजबूत विभाजक दीवार मुनाफे के दबाव में ढह चुकी है और इस प्रक्रिया में संपादकों को न सिर्फ मूकदर्शक बल्कि भागीदार भी बना दिया गया है. आखिर गौरी भोंसले की गुमशुदगी का ‘पेड न्यूज’ चैनल के एंकर ही पढ़ते नजर आते हैं. 

यह इस मायने में खतरनाक संकेत है कि पेड न्यूज के कारोबारियों ने न्यूज चैनल के साथ-साथ उनके संपादकों की बची-खुची साख और विश्वसनीयता को भी दांव पर लगाना शुरू कर दिया है. अगर संपादक अब भी न चेते तो गौरी भोंसले के उलट सचमुच में गुम हो जाएंगे.