गांधीजी द्वारा अपने पुत्र मणिलाल गांधी को लिखा गया पत्र.

प्रिटोरिया जेल

25 मार्च, 1909

प्रिय पुत्र 

प्रतिमास एक पत्र लिखने और एक पत्र प्राप्त करने और का अधिकार मुझे मिला है. अब मैं पत्र लिखूं कैसे? मिस्टर रीच का, मिस्टर पोलक का और तुम्हारा खयाल मुझे बारी-बारी से आया लेकिन मैंने तुम्हें ही लिखना पसंद किया. क्योंकि पढ़ने के समय मुझे तुम्हारा ही ध्यान बराबर रहता था.

मेरे बारे में तुम जरा भी चिंता मत करना. विशेष कुछ कहने का अधिकार मुझे नहीं है. मैं पूर्ण रूप से शांति में हूं. 

आशा है कि बा अच्छी हो गयी होंगी. मुझे मालूम है कि तुम्हारे पत्र यहां कुछ आये हैं, लेकिन वे मुझे नहीं दिये गये. फिर भी डिप्टी गवर्नर की उदारता से मुझे मालूम हुआ कि बा के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है. क्या वे फिर से चलने-फिरने लगी? बा और तुमलोग सबेरे दूध के साथ साबुदाना ले रहे होगे. 

और अब कुछ तुम्हारे बारे में कहना चाहूंगा. तुम कैसे हो?तुम पर जो जिम्मेवारी मैंने डाली है, तुम उसके सर्वथा योग्य हो और आनंद से उसे निभा रहे होगे, मुझे ऐसी आशा है. मैं जानता हूं कि तुम्हें अपनी शिक्षा के प्रति असंतोष है. जेल में मैंने यहां खूब पढ़ा है. इससे मैं यह समझा हूं कि केवल अक्षर ज्ञान ही शिक्षा नहीं है. सभी शिक्षा तो चरित्र निर्माण और कर्तव्य का बोध है.यदि यह दृष्टिकोण सही है तो मेरे विचार से बिल्कुल ठीक है तो तुम सही शिक्षा प्राप्त कर रहे हो. आजकल तुम्हें अपनी बीमार मां की सेवा का अवसर मिला है. रामदास और देवदास को भी तुम संभाल रहे हो. यदि यह काम अच्छी तरह और आनंद से तुम करते हो तो तुम्हारी आधी शिक्षा तो इसी के द्वारा पूरी हो जाती है.

संसार में तीन बातें बड़ी महत्वपूर्ण हैं. इसको प्राप्त कर तुम संसार के किसी भी कोने में जाओगे तो अपना निर्वाह कर सकोगे. ये तीन बातें हैं- अपनी आत्मा का, अपने आप का और ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करना. इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हें अक्षर ज्ञान नहीं मिलेगा लेकिन तुम उसी की चिंता करो, यह मैं नहीं चाहता. इसके लिए तुम्हारे पास अभी बहुत समय है.

इतना तो याद रखना कि अब से हमें गरीबी में रहना है. जितना अधिक मैं विचार करना हूं, उतना ही मुझे लगता है कि गरीबी में ही सुख है.अमीरी की तुलना में गरीबी अधिक सुखद है. 

खेत में घास और गड्ढे खोदने में पूरा समय देना. भविष्य में अपना जीवन निर्वाह उसी से करना है. मेरी इच्छा है कि अपने परिवार में तुम एक योग्य किसान बनो. सभी औजारों को साफ और सुव्यवस्थित रखना. अक्षर ज्ञान में गणित और संस्कृत पर पूरा ध्यान देना. भविष्य में संस्कृत तुम्हारे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी. ये दोनों विषय बड़ी उम्र में सीखना कठिन है. संगीत में भी बराबर रुचि रखना. हिंदी, गुजराती और अंगरेजी के चुने हुए भजनों एवं कविताओं का एक संग्रह तैयार करना चाहिए. वर्ष के अंत में तुम्हें अपना यह संग्रह बहुत मूल्यवान प्रतीत होगा. काम की अधिकता से मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए कि यह कैसे और पहले क्या करूं? शांत चित्त से विचारपूर्वक तुमने यदि सदगुणों को प्राप्त करने की चेष्टा की तो वे तुम्हारे लिए बहुत उपयोगी मूल्यवान प्रमाणित होंगे. तुमसे मुझे यही आशा है कि घर के लिए जो भी तुम खर्च करते होगे, उसका पैसे-पैसे का हिसाब रखते होगे.

मुझे यह भी आशा है कि तुम रोज शाम को नियमपूर्वक प्रार्थना करते होगे और रविवार को श्री वेस्ट के यहां भी प्रार्थना में जाते होगे. सूर्योदय से पहले प्रार्थना करना बहुत ही अच्छा है. प्रयत्नपूर्वक एवं निश्चित समय पर ही प्रार्थना करनी चाहिए. यह नियमितता तुम्हें अपने जीवन में आगे चलकर बहुत सहायक सिद्ध होगी.

इस पत्र को पढ़कर, अच्छी तरह समझ लेने के बाद मुझे जवाब देना. जवाब जितना लंबा चाहो, उतना लिख सकते हो. अंत में मैं अपने प्रेम सहित यह पत्र समाप्त करता हूं. 

तुम्हारा पिता

मोहनदास