खतरा बाकी है

कोकराझार की आग भले ही अब शांत पड़ती दिखती  हो, लेकिन अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर पूर्वोत्तर के दूसरे हिस्सों में पारा चढ़ने लगा है. रतनदीप चौधरी की रिपोर्ट.

दो सितंबर को यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के एक धड़े ने असम के तिनसुकिया जिले में एक रैली की. लोगों को संबोधित करते हुए इसके नेता जतिन दत्ता का कहना था, ‘ऊपरी असम में अवैध रूप से आए बांग्लादेशियों के खिलाफ हम आंदोलन करेंगे. हमने तिनसुकिया जिला प्रशासन से निवेदन किया है कि अवैध प्रवासियों को किसी भी हाल में जिले में न घुसने दिया जाए. यदि सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेती तो यहां के मूल निवासियों का उस पर से भरोसा उठ जाएगा.’ जवाब में तालियों की इतनी तेज गड़गड़ाहट गूंजी जो केंद्र से वार्ता के समर्थक उल्फा के इस धड़े को पहले कभी नसीब नहीं हुई थी.

यह सिर्फ एक उदाहरण है जो बताता है कि असम के कोकराझार और इससे सटे इलाकों में अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर भड़की आग भले ही अब शांत हो रही हो मगर राज्य के दूसरे हिस्सों और पूर्वोत्तर के कई दूसरे राज्यों में अब यह मुद्दा गरम होने लगा है. ऊपरी असम के सभी प्रमुख संगठन इस मुद्दे पर एकजुट होते दिख रहे हैं. अवैध घुसपैठ के खिलाफ छात्र संघों और युवाओं के मंचों ने उल्फा के पूर्व कमांडर प्रबल नोग के साथ हाथ मिला लिए हैं. उल्फा के वार्ता समर्थक धड़े की मूल मांगों में अवैध प्रवासियों की पहचान करके उन्हें वापस भेजना हमेशा से ही शामिल रहा है. ऐसे में इस बार मिलने वाला जनसमर्थन उसे मजबूती दे सकता है. पिछले सप्ताह ऊपरी असम के शिवसागर जिले में लगभग 15,000 और जोरहाट जिले में लगभग 12,000 लोग एक प्रदर्शन में हिस्सा लेते हुए अवैध रूप से आए बांग्लादेशियों के तुरंत निर्वासन की मांग उठा चुके हैं. 

असम आंदोलन में सक्रिय रहे बुजुर्ग नृपेन चौधरी कहते हैं कि लोगों के इस विरोध को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. समस्या के कारणों के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, ‘यदि असम समझौते को पूरी तरह लागू किया जाता तो आज हालात ऐसे नहीं होते. सभी राजनीतिक दल इसके लिए दोषी हैं जिन्होंने असम समझौते और अवैध प्रवासियों से जुड़े सवालों को राजनीतिक मुद्दा बनाकर इसे अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया है.’ उनका आरोप है कि सत्ताधारी कांग्रेस और असम गण परिषद इसमें अपना राजनीतिक लाभ ढूंढ़ रहे हैं. 

मणिपुर सरकार ने 30 अगस्त से अवैध प्रवासियों की पहचान का अभियान शुरू किया है. इस अभियान के तहत बांग्लादेश और म्यांमार से अवैध रूप से आए 43 लोगों को पूर्वी इम्फाल और थोउबाल जिले से गिरफ्तार भी किया गया है. विरोध का रुख सिर्फ असम तक सीमित नहीं है. मणिपुर के सीमावर्ती शहर जिरिबाम में बीते दिनों लगभग 100 अवैध प्रवासियों को सीमा से ही वापस भेज दिया गया. मणिपुर सरकार ने 30 अगस्त से अवैध प्रवासियों की पहचान का अभियान शुरू किया है. इस अभियान के तहत बांग्लादेश और म्यांमार से अवैध रूप से आए 43 लोगों को पूर्वी इम्फाल और थोउबाल जिले से गिरफ्तार भी किया गया है. मणिपुर पुलिस की स्पेशल ब्रांच के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ‘असम में हुए दंगे के बाद एक ही दिन में असम-मणिपुर सीमा के पास 60  अवैध प्रवासियों की पहचान हुई है. हमें शक है कि असम से कई लोग भाग कर मणिपुर में घुसने की कोशिश में हैं. हमने असम पुलिस से भी इस बारे में बात की है.’  

उधर, एक और राज्य मेघालय में भी इस मुद्दे पर विरोध शुरू हो चुका है. प्रदेश के 10 प्रभावशाली संगठनों ने विदेशी प्रवासियों के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी है. वे राज्य सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि वह राज्य में इनर लाइन परमिट की व्यवस्था लागू करे. गौरतलब है कि इससे राज्य से बाहर का कोई व्यक्ति बिना यह परमिट लिए राज्य में दाखिल नहीं हो सकता. फेडेरेशन ऑफ खासी-जैंतिया एंड गारो पीपल के कार्यकारी अध्यक्ष जो मार्वेन तहलका से बातचीत में कहते हैं, ‘हमें चाहिए कि आने वाले विधान सभा सत्र में राज्य के सभी 60 जनप्रतिनिधि इनर लाइन परमिट के मुद्दे को सदन में उठाएं और उसे लागू किए जाने पर चर्चा हो.’ वर्तमान में उत्तर-पूर्व के तीन राज्यों में ही इनर लाइन परमिट लागू किया गया है. ये राज्य हैं अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड. उधर, मेघालय के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा ने शिलांग में पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा, ‘हमारी सरकार इनर लाइन परमिट के खिलाफ नहीं है बल्कि हम एक मजबूत कानून बनाना चाहते हैं जो इनर लाइन परमिट से भी ज्यादा प्रभावशाली होगा.’

पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में सामाजिक संगठनों ने स्थानीय व्यापारियों, ठेकेदारों और होटल मालिकों से अनुरोध किया है कि वे अवैध रूप से आए प्रवासियों को काम न दें. नागालैंड में नागा काउंसिल नामक एक सामाजिक संगठन ने तो बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार की भी मांग उठाई है. गुवाहाटी के एक दैनिक अंग्रेजी समाचारपत्र के प्रबंध संपादक राजीव भट्टाचार्य कहते हैं, ‘स्थानीय और बाहरी लोगों के बीच जमीन और अधिकारों की लड़ाई का यहां पुराना इतिहास रहा है. समस्या यह है कि अगर मणिपुर या मेघालय में कोई हादसा होता है तो प्रवासी यहां असम में आ जाएंगे और अगर यहां उनको रोका गया तो वो देश के किसी और राज्य की तरफ कूच कर जाएंगे.’

बांग्लादेश सीमा से लगते त्रिपुरा में राज्य पुलिस की एक इकाई द्वारा करीब दो लाख लोगों की पहचान की गई है जो बांग्लादेश से अवैध रूप से आए हैं. गौरतलब है कि त्रिपुरा और बांग्लादेश के बीच 856 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है. वैसे बाकी राज्यों में भी अवैध घुसपैठियों की संख्या कम नहीं है. 

कोकराझार के हालात तो देश कुछ दिनों पहले तक देख ही चुका है. अब मूल निवासी बनाम प्रवासी की यह लड़ाई फैलती जा रही है. समय रहते इसका स्थायी समाधान नहीं किया गया तो देश में कई इलाके कोकराझार की राह जाते दिख रहे हैं.