क्या जदयू व्यक्ति केंद्रित पार्टी बनने की राह पर है?

जदयू की तरफ से आगामी चार नवंबर को बिहार की राजधानी पटना में आयोजित हो रही ‘अधिकार रैली’ के मद्देनजर पूरे शहर को तरह-तरह के पोस्टर-बैनरों से पाट दिया गया है. अपने कलेवर और संदेशों में बेहद भिन्न दिख रहे इन सभी पोस्टर-बैनरों में तीन बातें समान हैं. जदयू के वरिष्ठतम नेता रहे जॉर्ज फर्नांडिज की अनुपस्थिति, पार्टी के अध्यक्ष शरद यादव की नाममात्र उपस्थिति और मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की हर पोस्टर में उपस्थिति. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर आयोजित हो रही इस रैली का नतीजा चाहे जो भी हो लेकिन एक छिपा संदेश यही है कि जदयू में नीतिश के आगे सब फीके हैं. निराला की रिपोर्ट. 

मजबूर बुढ़ापा जब सुनी राहों की धूल न फांकेगा, मासूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीख न मांगेगा. हक मांगनेवालों को जिस दिन सूली न दिखायी जाएगी, वह सुबह कभी तो आएगी…‘. ‘ज्ञान के लिए पढ़ो, अधिकार के लिए लड़ो. पढ़ाई-लड़ाई साथ-साथ…’. ‘ न ज्यादा, न कम, बिहारियों में है दम…’.‘ जब विकसित बिहार है आपका संकल्प, तो विशेष दर्जा ही एकमात्र विकल्प.’ विशेष राज्य की मांग उठी है, जन-जन के अरमानों से, हर हाथ को काम मिलेगा, खेत-खलिहान-कारखानों से…’

ऐसे ही तरह-तरह के नारे चमक रहे हैं पटना की सड़कों के दायें-बायें लगे पोस्टरों-बैनरों पर. करिश्माई नेतृत्व से बढ़ते बिहार का गुणगान भी है और साथ में गरीबी और भूख से तड़पते-विवश बिहार का नजारा भी. पोस्टरों में हाथ जोड़े खड़े नेताओं के साथ हुंकार भरे वाक्यों की भरमार है. जवान तो जवान, अधेड़ावस्था में भी कई नेता पोस्टरों के सहारे अपने को जवान साबित करने के लिए हैट, चश्मा आदि लगाकर मॉडल सरीखे उभार रहे हैं खुद को. कुछ जगहों पर रणक्षेत्र में रथ पर सवार कृष्ण(नीतीश कुमार) और रथ के सारथी बने शरद भी दिख रहे हैं.

बिहार प्रदेश कुशवाहा महासभा जैसी संस्थाओं ने तो अपनी पूरी कलात्मक प्रतिभा का परिचय पोस्टरों के जरिये देने की कोशिश की है. अस्त-व्यस्त बाल बिखेरे महिला की पेंटिंग लगायी गयी है, उसकी बायीं ओर डरावनी आंखों की पेंटिंग है और फिर तीर एक वाक्य को भेदते हुए गुजरता दिखता है- सोनिया गांधी आंखें खोलो.

चार नवंबर को राजधानी पटना के गांधी मैदान में सत्ताधारी जदयू की ओर से आयोजित अधिकार रैली की तैयारी के परवान चढ़ने के नजारे हैं ये सब. राजधानी पटना में पोस्टरों का मेला लगा हुआ है और इन पोस्टरों के बीच से कभी-कभार गुजर रहे वाहनों में गीत सुनायी पड़ रहे हैं- नीतीश के पीएम बना द हो बाबा, विशेष राज्य के दर्जा दिला द…

नजारा ऐसा बन पड़ा है कि शहर के प्रायः सभी गोलचक्करों के बीच स्थित महापुरूषों की प्रतिमाएं बड़े-बड़े बैनरों की वजह से अदृश्य से हो गए हैं. रैली के पहले बैनरों के जरिये अपनी पूरी प्रतिभा, अपनी पूरी ताकत का प्रदर्शन कर रहे जदयू नेताओं का कौशल पहले तो शहरवासियों के लिए कौतूहल और मजा लेने का विषय रहा, बाद में इंच दर इंच पाटने की होड़ ने मन भर दिया. जदयू नेताओं ने पब्लिक के इस मूड को भांपा. 31 अक्तूबर की दोपहर अचानक पटना के दो मुख्य चैराहे इनकम टैक्स गोलंबर और गांधी मैदान के पास मौर्या होटल गोलंबर के चारो ओर लगे पोस्टर-बैनर को हटा दिया गया.

दोनों जगह जेपी की ही प्रतिमा है, जेपी दिखने लगे लेकिन दूसरे गोलंबरों पर मौजूद महापुरूष बैनर-पोस्टर से छिपे हुए हैं. एक नवंबर को फिर वही अभियान चला. लेकिन जदयू नेताओं का उत्साह प्रशासन के इस अभियान पर पानी भी फेरता रहा. चूहे-बिल्ली का खेल चलता रहा. एक जगह से बैनर-पोस्टर हटते रहे, दूसरी जगह उसे लगाने का अभियान चलता रहा.

खैर! यह तो सत्ताधारी दल की एक विशाल महत्वाकांक्षी रैली है, सो यह नजारा दिख रहा है. इसमें आश्चर्य या असमान्य जैसा कुछ भी नहीं. बिहार में इस प्रवृत्ति के नजारे सामान्य दिनों में भी दिख जाते हैं. जमीन जंग से परहेज करनेवाले नेताओं की बढ़ती संख्या की वजह से जुबानी जंग की तरह ही  बैनर-पोस्टर वार भी यहां की नयी परंपरा है. उसका एक्सटेंशन कई रूपों में होते रहता है. अगर नीतीश कुमार को कोई चैनलवाला भी एक्सेलेंस जैसा अवार्ड दिया तो सरकारी विभागों से होर्डिंग दर होर्डिंग लगा दिये जाते हैं.अगर लालू प्रसाद को कुछ कहना हुआ तो उनके दूत संदेशों के साथ रातों-रात गोलंबरों को बैनरों से पाट देते हैं.

अगर किसी बड़े नेताजी के माताजी गुजर जाती हैं तो पटना के प्रमुख चैराहों पर रातों-रात ऐसे वाक्यों के साथ बैनर लगा दिये जाते हैं- आप धन्य हो मां!  अगर आप ना होती तो ऐसा लाल धरा पर न आया होता. और अगर यह लाल न आया होता तो पता नहीं क्या होता बिहार का? अगर कोई आयोजन-प्रायोजन न हो तो, किसी नेता के विदेश यात्रा को महान उपलब्धियों की तरह बखान करते हुए बैनर-पोस्टर पाटे जाते हैं. जयंती-पुण्यतिथि का खेलवाले पोस्टरों में तो प्रायः सभी राजनीतिक दलों की समाज रुचि रहती ही है. .

अधिकार रैली के मौके पर लगाये गये बैनर-पोस्टर मेले में उनकी संख्या अथवा उनके प्रकार या उनमें उभर रही कलात्मकता की बजाय आश्चर्य की कुछ दूसरी वजहें दिखती हैं. जदयू नेताओं द्वारा लाखों की संख्या में लगे छोटे-बड़े बैनर-होर्डिंग्स में अपने दल के दिग्गज नेताओं को गायब पाकर हैरत में पड़ सकते हैं. मसलन, पुराने नेता पूछ रहे हैं कि भाई कहीं तो किसी पोस्टर, बैनर, फ्लैक्स में जॉर्ज फर्नांडिस भी दिखते. वृद्ध हो गये हैं तो क्या हुआ, एक विरासत, थांति की तरह ही दिखते जैसे कि निष्क्रिय होने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी को भाजपा जरूर दिखाती है.

फिर बतकही चल रही है कि सबको पता है कि आज यदि नीतीश कुमार सत्ता में है, जदयू का अस्तित्व इतना मजबूत है तो उसमें जॉर्ज फर्नांडिस का खून-पसीना भी लगा हुआ है. फिलहाल अधिकार रैली के पहले के इस पोस्टर-बैनर रैली में जलवा बिखेरनेवाले जदयू के पोस्टर-बैनरबाज नये-नवेले नेताओं ने यह संदेश दिया है कि उनका बस चलेगा तो जॉर्ज के नाम तक लेने की दरकार नहीं समझी जाएगी! जॉर्ज ने अपना पूरा राजनीतिक जीवन ही बिहार में खपाया और जद, जदयू जैसे दलों को खड़ा किया.

खैर! जो जॉर्ज कहीं हैं ही नहीं, उनकी बात करने की बजाय जो हैं, उन पर नजर डालते हैं. नीतीश हर जगह छाये हुए हैं, शरद की उपस्थिति तुलनात्मक रूप से बेहद कम है. शरद से कहीं ज्यादा आइएएस से नेता बने आरसीपी सिन्हा जैसे नये उभार वालों की जगमगाहट है. शिवानंद तिवारी जैसे नेता टिमटिमाते तारे की तरह एकाध जगह दिख रहे हैं.

हाल में अपने ही दल के नेता नीतीश कुमार की सरकार का विरोध करनेवाले सीमांचल के दिग्गज तसलीमुद्दीन जैसे नेता भी नदारद-से ही हैं. जदयू को बनानेवाले और जो पुराने नेता रहे हैं, वे भी गायब-से ही हैं. अधिकार रैली के पहले माहौल बनाने के लिए फिलहाल चल रहे पोस्टर-बैनर मेले में जदयू नेताओं के नाम पर या तो सत्ता के गलियारे में चमकते ध्रुवतारों की जगमगाहट है या फिर सोना सिंह, बिट्टू सिंह, छोटु सिंह जैसे नये-नवेलों  का डंका है, जो शहर के मुख्य होर्डिंग पर सुंदर तस्वीरों के साथ कब्जा जमाये हुए हैं.

चार नवंबर को अधिकार रैली में केंद्र की सरकार का विरोध होगा. जदयू केंद्र की सरकार को अपने ताकत का अहसास करवायेगी. इसी के जरिये अपने सहयोगी भाजपा को मुगालते से बाहर निकलने का संदेश देगी.लालू प्रसाद, रामविलास पासवान जैसे नेताओं को भी ‘विशेष राज्य दर्जेवाले मसले पर अपार जनसमूह दिखाकर नीतीश उनकी नींद हराम करने की तैयारी में हैं. संभव है यह सब होगा लेकिन रैली के पहले पोस्टर-बैनर-होर्डिग्स रैली यह बता रहा है कि जदयू का मतलब मुख्य रूप से नीतीश को ही समझा जाए. भूत भी, वर्तमान भी और भविष्य भी.पार्टी के भविष्य का एक खाका भी दिख रहा है- जिसके पास पैसा होगा. जो होर्डिंग्स, बैनर, पोस्टर का किराया देकर अपनी तसवीरें लगवा सकता है, वही चमकेगा.