काली कमाई से उपजी क्रांति

पिछले कुछ वर्षों के दौरान बिहार के शहरी इलाकों में जमीन और मकान की कीमतें 700 फीसदी तक उछली हैं. रियल एस्टेट के क्षेत्र में आई इस क्रांति में एक बड़ा हाथ मलाईदार पदों पर तैनात सरकारी सेवकों की काली पूंजी का भी है. इर्शादुल हक की रिपोर्ट

यह 19 नवंबर की बात है. पटना हाई कोर्ट के आदेश के बाद जिला प्रशासन ने कोषागार के क्लर्क गिरीश कुमार के भवन को जब्त कर लिया. प्रशासन द्वारा जब्त किए इस मकान में जल्द ही बच्चे पढ़ाई करते नजर आएंगे. इससे पहले सितंबर में निलंबित आईएएस अधिकारी शिव शंकर वर्मा के आलीशान भवन को प्रशासन ने जब्त करके उसमें गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल खोल दिया था. इन दोनों सरकारी सेवकों ने अपने ज्ञात स्रोतों से ज्यादा धन अर्जित किया था. दोनों ने अपने काले धन का निवेश जमीन और मकान खरीदने में किया था.

भले ही शिव शंकर वर्मा और गिरीश कुमार कानून के शिकंजे में आ गए हों लेकिन इसमें तनिक भी शक नहीं कि ऐसे हजारों सरकारी सेवक और भी हैं जिन्होंने अपने ज्ञात स्रोतों से ज्यादा धन अर्जित कर रखा है और वे किसी न किसी तरह से कानून के शिकंजे से अब तक बचते आ रहे हैं. पटना स्थित आयकर विभाग के एक दस्तावेज से इस सच्चाई से पर्दा उठ जाता है. इस दस्तावेज से यह साबित होता है कि राजधानी पटना में आसमान छूती कीमतों वाली जमीन, मकान और फ्लैटों के 60 प्रतिशत खरीददार सरकारी सेवक ही हैं. दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि रियलिटी सेक्टर में 60 प्रतिशत तक का निवेश काले धन का हो रहा है.

आयकर विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी गोपनीयता की शर्त पर इस दस्तावेज का हवाला देते हुए तहलका को बताते हैं कि काले धन के इन निवेशकों में वैसे अधिकारी हैं जो आम तौर पर सरकारी योजनाओं को जनता के हित में लागू करने का अधिकार रखते हैं. इन पदों पर लाखों-करोड़ों रुपये भ्रष्ट तरीके से उगाहने के अवसर होते हैं. आयकर द्वारा कराए गए इस गुप्त सर्वे के मुताबिक इन सरकारी सेवकों में प्रखंड विकास अधिकारी, बाल विकास पदाधिकारी, सर्कल अधिकारी, रजिस्ट्रार, पुलिस महकमे से जुड़े अधिकारी, पंचायतों के विकास में लगे अधिकारी व कर्मचारी, पंचायतों से जुड़े जन प्रतिनिधियों के अलावा और भी अनेक पदों पर काम करने वाले लोग शामिल हैं.

मकसद यह जानना था कि रियल एस्टेट में बेतहाशा निवेश के बावजूद आयकर में कोई इजाफा क्यों नहीं हो रहा

जाहिर तौर पर आयकर विभाग के इस सर्वे का मकसद यह पता लगाना था कि रियल एस्टेट क्षेत्र में हो रहे बेतहाशा निवेश के बावजूद आयकर के राजस्व में कोई इजाफा क्यों नहीं हो रहा. विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘बिहार (झारखंड समेत) सर्कल के आयकर राजस्व का योगदान 2004-05 के स्तर पर ही रुका हुआ है. वह भी तब जब बिहार के पटना, भागलपुर और गया जैसे बड़े शहरों में पिछले चार-पांच सालों में रियल एस्टेट सेक्टर का कारोबार 500 से बढ़ कर 2000 करोड़ तक पहुंच चुका है. यह हैरान करने वाली बात है और आयकर विभाग के लिए गंभीर चुनौती भी.’

गौर करें कि 2000 करोड़ रुपये का यह अनुमानित कारोबार सिर्फ रजिस्टर्ड बिल्डरों द्वारा बनाए जा रहे अपार्टमेंटों तक सीमित है. इसमें निजी तौर पर खरीदी जा रही जमीनें और मकान शामिल नहीं हैं. माना जाता है कि पटना जैसे बड़े शहरों में निजी तौर पर खरीदी जा रही जमीनों और मकानों में किया जाने वाला निवेश अपार्टमेंटों में किए जाने वाले निवेश से कहीं ज्यादा है. इस बात की पुष्टि अपना आवास कंस्ट्रक्शन्स के प्रबंध निदेशक प्रभात सिंह भी करते हैं. वे कहते हैं, ‘निजी स्तर पर खरीदी जाने वाली जमीन और मकान का बाजार रजिस्टर्ड बिल्डरों के बाजार से काफी बड़ा है.’
पिछले कुछ वर्षो में जमीन, मकान और फ्लैटों की खरीददारी में आई तेजी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2007-08, 2010-11 के दौरान इनकी कीमतों में 600 से 700 प्रतिशत का विशाल इजाफा हो चुका है. यह इजाफा नोएडा, गाजियाबाद, गुड़गांव और हैदराबाद जैसे शहरों से भी ज्यादा है. साकार कंस्ट्रक्शन्स के प्रबंध निदेशक सुदीप कुमार स्वीकार करते हैं कि पटना में फिलहाल चार से साढ़े चार हजार रुपये प्रति वर्ग फुट तक फ्लैट का दाम लग रहा है.

अब सवाल यह है कि कुछ लोगों के पास इस तेज रफ्तार से धन कहां से आ रहा है कि वे एक अदद फ्लैट, जमीन के एक टुकड़े या मकान के लिए औसतन 40-70 लाख रुपये तक निवेश कर रहे हैं जबकि इस बढ़ती आमदनी पर दिए जाने वाले आयकर में सरकार के खाते में कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही है. वरिष्ठ समाजशास्त्री आरएन शर्मा कहते हैं, ‘पिछले पांच साल में बिहार सरकार का योजना आकार 1600 करोड़ रुपये से बढ़ कर 24 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है. पहले की तुलना में 15 गुना ज्यादा. ऐसे में सरकारी धन की लूट में भी 15 गुना की वृद्धि तो हुई ही होगी. इसका मतलब साफ है कि आम आदमी तक जितना विकास पहुंचना चाहिए वह नहीं पहुंच पाया और विकास के पैसे की सरकारी अधिकारियों ने मिलकर बंदरबांट कर ली है?

शर्मा की बातें भले ही काल्पनिक लगें पर आयकर विभाग के कमिश्नर अजय कुमार भी कुछ इसी तरह का आकलन करते हुए दिखते हैं. वे कहते हैं,  ‘मैं अपने प्रशासनिक अनुभव से कह सकता हूं कि काले धन का सुरक्षित निवेश धन को जमीन में गाड़ देना ही माना जाता है.’ यहां धन को जमीन में गाड़ने का कुमार का स्पष्ट इशारा रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश से ही है. हालांकि एक वर्ग का मानना है कि ऐसा कहना पूरी तरह से सही नहीं है कि रियल एस्टेट सेक्टर में सिर्फ काला धन निवेश किया जा रहा है क्योंकि फ्लैटों की खरीददारी करने वालों में निजी या सरकारी क्षेत्र के ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जो अपने घर का सपना साकार करने के लिए बैंकों से कर्ज लेते हैं और इन पैसों को किस्तों में चुकाते हैं. अपना आवास कंस्ट्रक्शन्स के प्रभात सिंह कहते हैं, ‘नौकरीपेशा लोग घर खरीदने के लिए बैंकों से कर्ज लेते हैं. यह लेन-देन काफी पारदर्शी होता है.’ हालांकि कई अन्य बिल्डर स्वीकार करते हैं कि गड़बड़ी की गुंजाइश हर खरीद पर बनी ही रहती है.

पिछले कुछ सालों में रियल एस्टेट क्षेत्र में आए जबरदस्त उछाल का नजारा पटना, गया और भागलपुर जैसे शहरों में देखने को मिलता है. पिछले चार-पांच सालों में अपार्टमेंटों ने तो पटना की सूरत ही बदल कर रख दी है जहां हजारों अपार्टमेंट वजूद में आ चुके हैं. अंधाधुंध कमाई के लालच में दूसरे क्षेत्रों के कारोबारी अपना कारोबार छोड़ कर इस क्षेत्र में कूद पड़े हैं. एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ राजधानी पटना में ऐसे 200 से अधिक कारोबारी हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में अपने पुराने कारोबार को छोड़ कर प्रवेश किया है. प्रभात सिंह कहते हैं, ‘जो लोग पहले जमीनों की दलाली करते थे, बिल्डिंग मैटेरियल सप्लाई करते थे या अन्य कारोबार में लगे थे वे भी इस क्षेत्र में आ धमके हैं.’ रियल स्टेट के दिग्गजों का तो यह भी कहना है कि इस क्षेत्र में राजनेता भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कूद पड़े हैं. इसमें सत्ताधारियों के साथ-साथ विरोधी पार्टियों के नेता भी शामिल हैं. जेडीयू के बागी नेता ललन सिंह से लेकर नागमणि और हरिनारायण सिंह जैसे नेता भी किसी न किसी रूप में इस कारोबार से जुड़े बताए जाते हैं.

इससे सवाल उठता है कि आखिर पारंपरिक रूप से दूसरे क्षेत्रों में रहे लोगों के इस कारोबार में कूदने का क्या असर हुआ है. प्रभात सिंह का मानना है कि ऐसे लोगों के काम करने का तरीका पेशेवर नहीं होता. वे कहते हैं, ‘ऐसे ही लोगों ने इस सेक्टर की विश्वसनीयता को कमजोर किया है, जिसके कारण खरीददारों और प्रोफेशनल बिल्डरों दोनों को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है.’ वे आगे कहते हैं, ‘ब्रोकर या जमीन के दलालों ने अफवाह के सहारे जमीन की कीमतें आसमान पर पहुंचा दी हैं. नतीजतन फ्लैटों के दाम भी आसमान छूने लगे हैं.’ पिछले दस साल से जमीन व मकान की खरीद-फरोख्त से जुड़े़ और अब अपने साथियों के साथ मिल कर अपार्टमेंट बनाने और बेचने का काम कर रहे शैलेश सिंह कहते हैं, ‘राजधानी में जिस अनुपात में जमीन और मकान के खरीददार बढ़ रहे हैं उस अनुपात में यहां जमीन है ही नहीं. इस कारण हर दूसरे दिन जमीन की कीमत में इजाफा हो रहा है’. शैलेश भी स्वीकार करते हैं कि जमीन-मकान का बाजार पूरी तरह से अफवाही बाजार है जहां कीमतें मांग और आपूर्ति के सिद्धांत की बजाय बाजार में फैलाए गए अफवाह के पंखों के सहारे आसमानी उड़ान भरती हैं. वे कहते हैं, ‘आश्चर्य तो इस बात पर है कि लगातार बढ़ती कीमतों के बावजूद खरीददारों में लगातार मांग बनी हुई है.’

हालांकि पिछले छह महीने के दौरान इस मुद्दे में एक नया पहलू भी जुड़ा है. भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े तेवर दिखाती सरकार ने भ्रष्ट अधिकारियों की अचल संपत्ति को भी जब्त करके उसे सरकारी संपत्ति घोषित करने का विधेयक भी बना डाला है. ऐसी हालत में भ्रष्ट सरकारी सेवकों का मनोबल गिरा है. पिछले चार महीने में कुछ भ्रष्ट सरकारी सेवकों के मकानों में स्कूल खोलने के फैसले के बाद माना जा रहा है कि भ्रष्ट लोग अपनी पूंजी को जमीन और मकानों में निवेश करने से बचने लगे हैं. विभाग के एक बड़े अधिकारी बताते हैं कि ऐसे में स्वाभाविक तौर पर यह पैसा दूसरी दिशा, जैसे सोना आदि पर निवेश किया जा सकता है. विभागीय सूत्रों का कहना है कि काले धन के इस तरह के निवेश की जानकारी के बावजूद उस पर नकेल कसने में सबसे बड़ी बाधा राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है. उन्हें उम्मीद है कि जैसे-जैसे स्थितियां बदलेंगी काले धन का यह तिलिस्म भी टूटेगा.