काबा में शिवलिंग! यह कहानी भी गांव-गुरबे में इतने भरोसे के साथ कही-सुनी जाती है मानो किस्सागो खुद काबा में गंगाजल और बेलपत्र चढ़ाकर आया हो. अगर आपके सामने कोई किस्सागो यह कहानी लेकर न आया हो तो एक बार फिर से पीएन ओक साहब की किताबों को पढ़े. वहां भी यही बात साबित करने की कोशिश है. मुसलमानों के पवित्र स्थल काबा की मस्जिद में मौजूद विशाल काला पत्थर शिवलिंग है. यह कहानी कहनेवाले ये बातें इतने पुरयकीन अंदाज में बताते हैं मानो उनके पुरखे पूरा जीवन काबा में ही बिताकर लौटे हों. इस कहानी में यह साबित करने की कोशिश की जाती है कि पुराने समय में जब यूनान और पश्चिम एशिया में हिंदू रहते थे और वहां मूर्ति पूजा का प्रचलन था तभी काबा में शिवलिंग की स्थापना की गई थी. काबा के पूर्वी कोने में जड़ा गया शिवलिंग और उसकी पूजा का सिलसिला दोनों इस्लाम की पैदाइश से बहुत पुराने हैं. इन कहानीकारों की मानें तो पैगंबर मोहम्मद साहब ने जिन लोगों को परास्तकर इस्लाम की स्थापना की वे और कोई नहीं बल्कि हिंदू ही थे. पैगंबर ने उनको पराजित करके मूर्ति पूजा तो बंद करवा दी लेकिन भगवान शिव की ताकत से वह भी बखूबी परिचित थे इसलिए बकायदा शिवलिंग की पूजा खुद भी की और बाकी मुसलमानों से भी करवाई. अपनी बात के समर्थन में कहानीकार यह तर्क भी देता है कि जिस तरह हिंदू समाज के लोग पूजा के दौरान केवल धोती पहनते हैं उसी तरह हज के दौरान मक्का जानेवाले भी बिना सिला हुआ सफेद वस्त्र पहनते हैं. यानी शिवलिंग की पूजा मुसलमान भी करते हैं.
गौर फरमाएं
इस्लामी मान्यता के मुताबिक इस पत्थर को काबा की पूर्वी दीवार में पैगंबर हजरत मोहम्मद ने 605 ईस्वी में जड़ा था. बीते सालों के दौरान यह कई टुकड़ों में विभाजित हो गया है और उनको एक साथ रखने के लिए बाहर से चांदी का आवरण लगाया गया है. इतिहासकारों के मुताबिक इस्लाम के आगमन से पूर्व काबा में करीब 360 ऐसी चीजें थीं जिनकी इबादत की जाती थी. ये वस्तुएं साल के प्रत्येक दिन का उदाहरण थीं. इन्हीं में से एक काले पत्थर को पैगंबर हजरत मोहम्मद ने काबा में स्थापित किया था और उसे इस तरह की ख्याति हासिल हो गई.