कर्ज़ की दलदल में किसान

किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड दे रही सरकार, देनी चाहिए फ़सलों पर एमएसपी

योगेश

स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी हमारे कृषि प्रधान देश के किसान क़र्ज़ में डूबे हूए हैं। अब केंद्र सरकार 01 अक्टूबर से घर-घर केसीसी अभियान चलाकर देश के डेढ़ करोड़ किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड देगी। बड़े बुजुर्ग कहा करते हैं कि क़र्ज़ में डूबा व्यक्ति अपना क़र्ज़ उतारने के लिए और क़र्ज़ ले लेता है। किसानों पर भी क़र्ज़ बहुत है, जिससे ज़्यादातर किसान क्रेडिट कार्ड लेने से मना नहीं करेंगे। क्रेडिट कार्ड देने की जगह सरकार को फ़सलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़रीदना चाहिए।

इसके अलावा सरकार को सस्ती खाद, सस्ते बीज, सस्ता डीजल और सस्ती कीटनाशक दवाएँ उपलब्ध कराना चाहिए। क्या किसानों को इस राहत से क़र्ज़े में राहत मिलेगी? क्रेडिट कार्ड देने से तो उन पर क़र्ज़ और बढ़ेगा। क़र्ज़ का दबाव बढ़ेगा, तो किसानों की आत्महत्या दर में बढ़ोतरी होगी। सरकार किसानों को क्रेडिट कार्ड देकर किसानों की आय दोगुनी करने की अपनी नाकामी को छुपा रही है। किसान क्रेडिट कार्ड पाकर उसका इस्तेमाल करेंगे और उन पर क़र्ज़ बढ़ेगा। इससे भाजपा को वोट तो मिल सकते हैं; लेकिन किसानों पर क़र्ज़ बढ़ जाएगा।

दरअसल 19 सितम्बर, 2023 को गणेश चतुर्थी के अवसर पर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने केसीसी घर-घर अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान के तहत पूरे देश में किसानों के घरों में जाकर सरकारी लोग हर किसान को किसान क्रेडिट कार्ड, जिसे संक्षेप में केसीसी नाम दिया गया है; देंगे। सरकार ने पूरे देश के लगभग डेढ़ करोड़ किसानों को ये क्रेडिट कार्ड देने का मन बनाया है। माना जा रहा है कि पहले भी केसीसी क्रेडिट कार्ड का लाभ प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लाभार्थी किसानों को मिल चुका है, जिसमें सरकार ने अभी तक दो करोड़ किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड दे रखे हैं। अब इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए उन डेढ़ करोड़ किसानों को क्रेडिट कार्ड दिये जाएँगे, जो प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से नहीं जुड़े हैं। इस बारे में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया था कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत लगभग नौ करोड़ लाभार्थी हैं और केसीसी घर-घर अभियान का उद्देश्य लगभग डेढ़ करोड़ किसानों को जोडऩा है, जो अभी तक केसीसी योजना से नहीं जुड़े हैं।

कृषि मंत्री ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान भी किसानों को लगभग दो करोड़ केसीसी क्रेडिट कार्ड दिये गये थे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बारे में कहा है कि सरकार ने किसानों को कम समय के लिए आसान क़र्ज़ सुनिश्चित करने और केसीसी अभियान के तहत पर्याप्त धन आवंटित किया है। इस क्रेडिट कार्ड के होने से किसान इसका इस्तेमाल करेंगे, जिससे वे और क़र्ज़ में डूबेंगे। सन् 2022 के आँकड़ों के अनुसार, देश के लगभग 16 करोड़ किसानों पर 21 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ है। इस आधार पर 16 करोड़ किसानों में हर किसान पर औसत 1.35 लाख रुपये का क़र्ज़ है। ये आँकड़े वित्त मंत्रालय की 2022 की एक रिपोर्ट के है। किसानों को क़र्ज़ मुक्त करने और उनको आय दोगुनी करने का वादा करके सरकार में आने वाली पार्टी ने न किसानों का क़र्ज़ माफ़ किया और न उनकी आय दोगुनी कर पायी। बस कुछ किसानों को 500 रुपये महीने के हिसाब से मदद दी है, जिससे किसानों का कुछ $खास भला नहीं हुआ है।

इसके उलट देश की सरकार ने पूँजीपतियों का अरबों रुपये का क़र्ज़ माफ़ कर दिया है। वित्त मंत्रालय के अनुसार कमर्शियल कैटेगिरी के बैंकों के क़र्ज़ में देश के लगभग 10.80 करोड़ किसान लगभग 16.40 लाख करोड़ रुपये के क़र्ज़े में डूबे हैं। दूसरी तरफ़ को-ऑपरेटिव बैंकों के लगभग दो लाख करोड़ के क़र्ज़ में देश के लगभग 2.67 करोड़ किसान डूबे हैं। इन बैंको से क़र्ज़ लेने वाले सिर्फ़ 28 राज्य के किसान हैं। इस क़र्ज़ को बाँट भी दें, तो देश के हर क़र्ज़दार किसान पर लगभग 75,241 रुपये का क़र्ज़ होता है।

दूसरी तरफ़ आंचलिक बैंकों से सन् 2022 तक देश के 27 राज्यों के लगभग 2.76 करोड़ किसानों पर लगभग 2.58 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ था। इन लगभग 2.76 करोड़ किसानों में हर किसान औसत लगभग 93,657 रुपये का रीजनल बैंकों का क़र्ज़दार है। क़र्ज़ के मामले में अगस्त 2023 में सरकार ने लोकसभा में नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट यानी नाबार्ड का आँकड़ा पेश किया। इन आँकड़ों के अनुसार, 21.42 लाख किसानों ने 64,694 करोड़ रुपये का क़र्ज़ कमर्शियल बैंकों से, 50,635 किसानों ने 1,130 करोड़ का क़र्ज़ सहकारी बैंकों से और 2.99 लाख किसानों ने 7,849.46 करोड़ रुपये का क़र्ज़ ग्रामीण बैंकों से लिया हुआ है। राज्यों में सर्वाधिक क़र्ज़ राजस्थान के किसानों पर है। राजस्थान के लगभग 99.97 लाख किसानों पर बैंकों का 1.47 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा का क़र्ज़ है। क़र्ज़ लेने में दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश के किसान हैं। उत्तर प्रदेश के लगभग 1.51 करोड़ किसानों ने बैंकों से लगभग 1.71 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा का क़र्ज़ है। तीसरे स्थान पर गुजरात में लगभग 47.51 लाख किसानों ने पर एक लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा का क़र्ज़ है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के 77वें दौर के सर्वेक्षण में जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि सन् 2019 में देश के लगभग 50 प्रतिशत से अधिक कृषि परिवार क़र्ज़ में डूबे थे और हर कृषि परिवार पर औसत बक़ाया क़र्ज़ लगभग 74,121 रुपये था।

एनएसओ ने 77वें दौर का यह सर्वेक्षण 01 जनवरी, 2019 से 31 दिसंबर, 2019 के बीच 45,000 कृषि परिवारों का किया गया। इसकी रिपोर्ट 10 सितंबर को एनएसओ की और ग्रामीण भारत में परिवारों की स्थिति का परिवारों की भूमि जोत, 2019 के नाम से जारी की गयी। इस निष्कर्ष रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में पेश किये गये सर्वेक्षण की तुलना में क़र्ज़ में डूबे कृषि परिवारों का प्रतिशत 51.9 प्रतिशत से थोड़ा कम हुआ है। वहीं हर कृषि परिवार के औसत क़र्ज़ में 57 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। राजस्थान, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, असम, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, कर्नाटक, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और केरल के किसानों पर भी काफ़ी क़र्ज़ है।

सरकार का दावा है कि किसानों की आय सन् 2014 के बाद 2023 आने तक बढक़र दोगुनी हो गयी है। लेकिन ज़मीनी स्तर पर ऐसा नहीं है। क्योंकि किसानों की आत्महत्या के मामले कम होने की जगह बढ़े हैं और लगातार बढ़ रहे हैं। अगर किसानों की आय बढ़ी होती, तो वे बड़ी संख्या में आत्महत्या क्यों करते? सन् 2017 में देश में 10,655 किसानों और खेतीहर मज़दूरों ने आत्महत्या की थी।

सन् 2018 में देश में 10,349 किसानों और खेतीहर मज़दूरों ने आत्महत्या की थी। सन् 2019 में देश में 10,281 किसानों और खेतीहर मज़दूरों ने आत्महत्या की थी। सन् 2020 के दौरान देश में 10,677 किसानों और खेतीहर मज़दूरों ने आत्महत्या की थी। सन् 2021 में देश में 10,881 किसानों ने आत्महत्या की थी।

रिपोर्ट के अनुसार, कृषि क्षेत्र से जुड़े सबसे ज़्यादा 37.3 प्रतिशत किसानों और खेतीहर मज़दूरों ने महाराष्ट्र में आत्महत्या की। महाराष्ट्र में एक ही क्षेत्र में 01 जनवरी, 2023 से 31 अगस्त, 2023 के बीच 685 किसानों ने आत्महत्या की थी। इनमें से 294 किसानों ने जून से अगस्त के बीच आत्महत्या की थी। कर्नाटक में मई और जून, 2023 में 42 किसानों ने आत्महत्या की। देश में किसानों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर सरकार को चिन्ता करनी चाहिए। क्योंकि देश के किसान 48.9 प्रतिशत लोगों को रोज़गार देते हैं। आँकड़ों के अनुसार, कुछ राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में किसी किसान या खेतीहर मज़दूर ने आत्महत्या नहीं की। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संसद में एक सवाल के लिखित जवाब में कहा था कि सन् 2017 से सन् 2021 के बीच देश में कुल 28,572 किसानों ने आत्महत्या की है।

वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, सन् 1995 और सन् 2014 के बीच 2,96,438 किसानों और खेतीहर मज़दूरों ने आत्महत्या की थी। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, सन् 2021 में आत्महत्या करने वाले 1,64,033 लोगों में से निजी क्षेत्र के 11,431 लोग थे और 1,898 सरकारी कर्मचारी थे। वहीं स्वरोज़गार से जुड़े 20,231 लोग थे। इस आधार पर देखें, तो कह सकते हैं कि आत्महत्या करने वाले किसान और मज़दूर 1,30,473 लोग रहे होंगे।

रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में आत्महत्या करने वालों में से 1,05,242 लोगों की वार्षिक औसत आय एक लाख रुपये से कम थी। वहीं 51,812 लोगों की औसत आय एक लाख रुपये से पाँच लाख रुपये तक वार्षिक थी। एक लाख रुपये से कम आय वाले ज़्यादातर किसान और मज़दूर थे। अब क्रेडिट कार्ड के देने से किसानों पर क़र्ज़ और बढ़ेगा, जिससे आत्महत्या के मामले भी देश में बढ़ेंगे। इससे किसानों की दशा सुधरने की जगह और बिगड़ जाएगी। इसलिए सरकार को किसानों को तेलंगाना सरकार की तरह क़र्ज़े से मुक्ति देनी चाहिए और उन्हें क्रेडिट कार्ड न देकर उनकी फ़सलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़रीदना चाहिए।