ख़तरे में ‘नफ़रती’ पत्रकारों की स्वीकार्यता

विपक्षी गठबंधन इंडिया द्वारा 14 एंकरों के बहिष्कार की सूची पर मचा हडक़ंप

सुशील मानव

‘पत्रकार हूँ’ कहकर किसी से अपना तआरुफ़ करवाओ, तो लोग पलटकर पूछते हैं- ‘किस पार्टी के?’ यह कोई चुटकुला नहीं, बल्कि मौज़ूदा वक़्त की हक़ीक़त है। सत्ता का स्थायी विपक्ष कहा जाने वाला पत्रकार आजकल सत्ता का चरणचुम्बक हो गया है। अब वह सरकार से नहीं, विपक्ष से सवाल पूछता है। न्यूजरूम के स्टूडियो में एंकर सत्ताधारी दल के प्रवक्ता-सा बोलता है। विपक्ष पर चीखता है। चिल्लाता है। विपक्षी प्रवक्ता प्रतिनिधि को डराता, धमकाता है। कभी-कभार तमाचे भी मार देता है। लेकिन सहनशीलता की भी एक हद होती है।

प्रमुख विपक्षी दलों के संगठन इंडिया के 26 दलों की कोऑर्डिनेशन कमेटी के सदस्यों ने 13 सितंबर को विचार विमर्श के बाद नौ टीवी चैनल्स के 14 एंकरों को उनकी द्वेषपूर्ण बहसों, विपक्ष विरोधी नैरेटिव, जनहित के मुद्दों को ब्लैकआउट करने और उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल के आधार पर बहिष्कार करने का फ़ैसला लिया। इन 14 एंकरों के नफ़रती और साम्प्रदायिक शो में विपक्षी गुट के प्रतिनिधि नहीं जाएँगे। इस सूची में सुधीर चौधरी, अर्णब गोस्वामी, अमन चोपड़ा, अमिश देवगन, आनंद नरसिम्हा, अशोक श्रीवास्तव, अदिति त्यागी, चित्रा त्रिपाठी, गौरव सावंत, नविका कुमार, प्राची पराशर, रूबिका लियाक़त, शिव अरूर और सुशांत सिन्हा का नाम शामिल है। हालाँकि अंजना ओम कश्यप, श्वेता सिंह, सुमित अवस्थी जैसे कई नाम अभी सूची से बाहर हैं। लेकिन इंडिया गठबंधन के मीडिया कमेटी से जुड़े सूत्रों ने कहा है कि एंकरों की दूसरी सूची भी जारी करेंगे।

कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख और विपक्षी गठबंधन की मीडिया समिति सदस्य पवन खेड़ा ने कहा- ‘यह कोई बॉयकाट या बहिष्कार नहीं, बल्कि एक असहयोग आन्दोलन है। हम ऐसे किसी भी श$ख्स को सहयोग नहीं कर सकते, जो समाज में नफ़रत फैलाते हैं। रोज़ शाम 5:00 बजे से कुछ चैनल्स पर नफ़रत के दुकानें सजायी जाती हैं। हम नफ़रत के बाज़ार के ग्राहक नहीं बनेंगे। हमारा उद्देश्य है- नफ़रत मुक्त भारत।’

देश में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राजनीतिक दल या गठबंधन ने सामूहिक तौर पर इस तरह का फ़ैसला लिया है। पर इसे इन एंकरों के प्रति विपक्षी गठबंधन का राजनीतिक पूर्वाग्रह कहकर नहीं ख़ारिज कर सकते। ऐसे कई सर्वे और तथ्य हैं, जो बताते हैं कि टीवी न्यूज चैनल विपक्ष विरोधी हैं और इन्होंने सिर्फ़ साम्प्रदायिक नफ़रत और वैमनस्य बढ़ाने का काम किया है। 13 जनवरी, 2023 को हेट स्पीच के मामलों पर सुनवाई करते हुए देश की सर्वोच्च अदालत ने टीवी न्यूज चैनल और एंकरों पर टिप्पणी करते हुए कहा था- ‘टीवी चैनल और उनके एंकर्स शक्तिशाली विजुअल मीडियम के ज़रिये अपनी टीआरपी के लिए समाज में विभाजनकारी और हिंसक प्रवृत्ति पैदा करने के लिए कुछ ख़ास एजेंडा को बेंचने का औज़ार बन गये हैं। चैनल के पीछे लगे पैसे से वो सब तय होता है।’

27 जुलाई, 2023 को जारी ‘मीडिया इन इंडिया : ट्रेंड्स एंड पैटन्र्स’ शीर्षक वाली लोकनीति- सीएसडीएस मीडिया सर्वे रिपोर्ट में 82 प्रतिशत पत्रकारों ने माना कि उनके मीडिया संगठन भाजपा का समर्थन करते हैं। सरकारी विज्ञापन के लिए लार चुआने वाले टीवी न्यूज चैनल्स ने अपने अपने एंकरों को सरकार का वफ़ादार बना दिया है। ये एंकर लगातार सरकार के मुस्लिम विरोधी, दलित विरोधी, आदिवासी विरोधी, महिला विरोधी, छात्र विरोधी, जनविरोधी, मज़दूर विरोधी, किसान विरोधी नीतियों और एजेंडों को आगे बढ़ाने में लगे रहते हैं। राजनीतिक विपक्ष सरकार के एजेंडों को लेकर सडक़ और सदन में सरकार को घेरती है, तो सरकार उन पर अपने ख़ूँ-ख़्वार एंकर छोड़ देती है। ये ख़ूँ-ख़्वार भूखे भेडि़ए की तरह विपक्षी प्रतिनिधियों का शिकार करते हैं। ये एंकर विपक्षी दलों के प्रवक्ताओं पर ज़ोर-ज़ोर से चीख-चिल्लाकर उनके 70 साल का हिसाब माँगते हैं। स्टूडियो में बैठे सत्तादल के समर्थकों से हूटिंग करवाते हैं। विपक्षी प्रवक्ता प्रतिनिधि का बयान आने से पहले ही उनका माइक बन्द कर देते हैं या ख़ुद बोलने लगते हैं और विपक्ष का वक़्त काटकर विज्ञापन चला देते हैं। याद करें कि कैसे मई, 2018 में एक न्यूज चैनल के डिबेट शो में एंकर सुमित अवस्थी ने कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी को थप्पड़ मार दिया था।

यूँ तो 3 मई, 2023 विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के मौक़े ‘रिपोट्र्स विदाउट बॉर्डर्स’ की 180 देशों की सालाना रिपोर्ट में भारत की मीडिया को मिली 161वीं रैंक इनके पतन की कहानी बयाँ करती ही है। लेकिन विपक्षी गठबंधन द्वारा 14 न्यूज एंकरों के बहिष्कार के फ़ैसले से भारत की सत्तापरस्त मीडिया देश दुनिया में बुरी तरह एक्सपोज हो गयी है। इस घटना से दुनिया ने जाना कि भारत की कथित मेनस्ट्रीम मीडिया में पत्रकारिता के मूलभूत बुनियादी मूल्यों का भी क्षय हो चुका है। ‘मीडिया के पास इतनी ताक़त है कि वह आपके मन में पीडि़त के प्रति घृणा भर दे और उत्पीडक़ के प्रति प्रेम’- मैल्कम एक्स का यह कथन भारत की मीडिया पर हू-ब-हू लागू होता है। अजीब विडम्बना है कि निर्वाचन आयोग ने इन पर कभी कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि आज तमाम न्यूज चैनल्स और इनके एंकर सरकारी भोंपू बनकर लगातार जनमत को प्रभावित करते आ रहे हैं।

कैथरीन ग्राहम का कथन है कि ‘न्यूज वह होती है, जिसे कोई दबाना चाहता है। बाक़ी सब विज्ञापन है’। पर ये 14 एंकर और अन्य सरकार की ख़ुशामद और उनके एजेंडे वाली फ़र्ज़ी और बनायी हुई ख़बरें चलाते हैं। ये ऐसी कोई ख़बर नहीं चलाते, जिसे सरकार दबाना चाहती हो। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने पिछले डेढ़ महीने में कुल 22 रिपोर्ट जारी कीं। इन रिपोट्र्स ने केंद्र सरकार के कई घोटालों और वित्तीय हेराफेरी का पर्दाफाश किया है।

‘खातों की गुणवत्ता और वित्तीय रिपोर्टिंग प्रथा’ शीर्षक वाली केंद्र सरकार के खातों से सम्बन्धित सीएजी की रिपोर्ट संख्या 21 में कई गम्भीर सवाल उठाये गये हैं। पर सूचीबद्ध 14 में से एक भी एंकर ने कैग की एक भी रिपोर्ट पर कोई कार्यक्रम नहीं किया है। अगर हम पिछले नौ साल का मेनस्ट्रीम मीडिया का काम करने के पैटर्न देखें, तो इनका कार्य करने का यही पैटर्न रहा है। सरकार के ख़िलाफ़ जाने वाली ख़बरों घटनाओं और रिपोट्र्स का मेनस्ट्रीम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अघोषित बहिष्कार-सा कर रखा है। पेगासस स्पाईवेयर का मसला हो या राफेल डील का, अडानी के मुंद्रा बंदरगाह पर 3,000 किलोग्राम ड्रग्स बरामदगी हो, मीडिया ने इन ख़बरों से बराबर दूरी बनाकर रखी।

सिर्फ़ न्यूज स्टूडियो तक ही नहीं निजी सोशल मीडिया अकाउंट पर भी ये लोग विपक्षी पार्टियों और विपक्षी नेताओं को अपने निशाने पर लेते आ रहे हैं। किसान आन्दोलन को बदनाम करने के लिए इन्होंने खालिस्तान फंडिंग और ड्रग्स तस्करी और टूलकिट विवाद खड़ा करने का काम किया। एनआरसी सीएए विरोधी आन्दोलन और शाहीन बाग़ को बदनाम करने के लिए इन्होंने फ़र्ज़ी ख़बरें चलायीं। मणिपुर में 4 मई को तीन कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र करके परेड कराने और सामूहिक बलात्कार के वीडियो को पूरे देश ने देखा। लेकिन इन एंकरों ने सरकार को कटघरे में खड़े करने के बजाय विपक्षी दलों के सत्ता वाले राज्यों की फ़र्ज़ी ख़बरें गढक़र चलानी शुरू कर दीं।

मीडिया की धुलाई करने वाली न्यूज पोर्टल न्यूजलॉन्ड्री ने जून, 2022 में कई टीवी न्यूज एंकरों के तीन महीने के कार्यक्रमों के विषय और मुद्दों पर शोध करके यह निष्कर्ष निकाला कि अधिकांश एंकरों ने लगभग आधे कार्यक्रम हिन्दू-मुस्लिम पर किये। एक-चौथाई कार्यक्रम विपक्ष के ख़िलाफ़ और बाक़ी एक-चौथाई हिस्से में अन्य चीज़ें कवर कीं। जैसे सुधीर चौधरी ने अपने डेली न्यूज एनालिसिस के 73 कार्यक्रमों में 28 कार्यक्रम साम्प्रदायिक मुद्दे पर, पाँच कार्यक्रम विपक्ष के ख़िलाफ़ किये; पर बेरोज़गारी पर कोई कार्यक्रम नहीं। नविका कुमार ने अपने शो ‘सवाल पब्लिक का’ के 68 कार्यक्रमों में 29 कार्यक्रम साम्प्रदायिक मुद्दे पर और 13 विपक्ष विरोधी अभियान पर किये; पर महँगाई, बेरोज़गारी पर एक भी कार्यक्रम नहीं किया। ऐश्वर्य कपूर ने अपने शो ‘पूछता है भारत’ के 96 कार्यक्रमों में 45 कार्यक्रम साम्प्रदायिक मुद्दों पर, 34 कार्यक्रम यूक्रेन पर और दो विपक्ष विरोध पर किये। अमिश देवगन ने ‘नंबर वन शो’ के 68 कार्यक्रमों में 43 कार्यक्रम साम्प्रदायिक मुद्दों पर और छ: कार्यक्रम विपक्ष विरोध पर किये। पर महँगाई और बेरोज़गारी पर कोई कार्यक्रम नहीं किया। अर्णव गोस्वामी ने 182 क्रार्यक्रमों में 60 कार्यक्रम साम्प्रदायिकता पर, 34 कार्यक्रम विपक्ष विरोध पर किये। पर महँगाई बेरोज़गारी पर एक भी कार्यक्रम नहीं किया। इसी तरह रूबिका लियाक़त ने ‘हुंकार’ शो के 56 कार्यक्रमों में 36 साम्प्रदायिकता वाले किये; जबकि महँगाई, बेरोज़गारी पर एक भी कार्यक्रम नहीं किया।

जून, 1928 में ‘किरती’ नामक अख़बार में लिखे अपने लेख में शहीद भगत सिंह ने मीडिया और साम्प्रदायिक नेता के गठजोड़ वाले उस चरित्र को उजागर किया, जो उस वक़्त साम्प्रदायिक विभाजनकारी माहौल बना रहा था; और जिस पर चलकर अगस्त, 1947 में देश का साम्प्रदायिक विभाजन हुआ। यह देश का दुर्भाग्य है कि 95 साल पहले लिखा उनका वो लेख आज भी अक्षरश: सच है; यदि हम अख़बार की जगह एंकर या न्यूज चैनल करके पढ़ें तो। शहीद भगत सिंह ने लिखा है- ‘मीडिया का असली कर्तव्य शिक्षा देना, लोगों से संकीर्णता निकालना, साम्प्रदायिक भावनाएँ हटाना, परस्पर मेल-मिलाप बढ़ाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता बनाना था। लेकिन इन्होंने अपना प्रमुख कर्तव्य अज्ञान फैलाना, संकीर्णता का प्रचार करना, साम्प्रदायिक बनाना, लड़ाई-झगड़े करवाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है। यही कारण है कि भारतवर्ष की वर्तमान दशा पर विचार कर आँखों से रक्त के आँसू बहने लगे हैं, और दिल से सवाल उठता है कि भविष्य का भारत बनेगा कैसा?’