और कितनी आहुतियां?

हरिद्वार में जिला प्रशासन और गायत्री परिवार की बदइंतजामियों के कारण नौ नवंबर को गायत्री महायज्ञ में मची भगदड़ ने 20 जिंदगियां लील लीं. पिछले साल ही हुए महाकुंभ में मची भगदड़ में नौ श्रद्धालु मरे थे. परंतु प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया. मरने वाले 20 साधकों में से देश के अलग-अलग हिस्सों से आई 18 महिलाएं थीं.

इस घटना ने एक बार फिर दिखाया कि बदइंतजामी के साथ जब पिछली गलतियों से न सीखने की जिद, अपने प्रभाव को दिखाने की होड़ और अमानवीयता जैसे दुर्गुण मिल जाएं तो इसके नतीजे कितने भयानक हो सकते हैं. यह हादसा गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य पंडित श्रीराम शर्मा की जन्म शताब्दी के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय गायत्री परिवार द्वारा आयोजित गायत्री महाकुंभ में हुआ. विज्ञापनों में इस आयोजन को गत वर्ष हुए हरिद्वार महाकुंभ को टक्कर देने वाला बताया जा रहा था. आयोजन के इंतजामों के सामने सरकार द्वारा आयोजित कराए गए महाकुंभ के इंतजामों को तुच्छ बताने वाली खबरें भी लगभग सभी अखबारों में छप रही थीं. आयोजन का बेस कैंप लालजीवाला था. वहीं 1551 कुंडीय यज्ञशाला बनी थी. महाकुंभ और इस आयोजन में अंतर इतना ही था कि महाकुंभ में दुनिया भर के हिंदू आस्थावान पुण्य प्राप्ति के लिए बिना किसी के बुलावे के खिंचे चले आते हैं जबकि गायत्री महाकुंभ में गायत्री परिवार ने अपने साधकों को महायज्ञ में आहुति देने के लिए एकत्रित किया था.

गायत्री परिवार संगठन की नींव पं. श्रीराम शर्मा ने रखी थी. यह संगठन दुनिया भर में अपने आठ करोड़ साधकों के होने का दावा करता है. युग निर्माण योजना और युग परिवर्तन इस धार्मिक संस्था के उद्देश्य हैं. पं. श्रीराम शर्मा के निधन के बाद गायत्री परिवार के प्रमुख अब उनके दामाद प्रणव पंड्या हैं.

पांच दिवसीय महाकुंभ की शुरुआत छह नवंबर को शोभा यात्रा (कलश यात्रा) के साथ हुई. अगले ही दिन सात नवंबर को देव पूजा के साथ गायत्री महायज्ञ शुरू हो गया. गायत्री परिवार के प्रवक्ता दिनेश व्यास के अनुसार इस आयोजन में हर दिन दो से लेकर पांच लाख तक साधकों के आने की संभावना थी. गायत्री परिवार ने पुलिस प्रशासन से बेहद कम मदद ली थी. भीड़ को स्वयंसेवक ही संभाल रहे थे. यज्ञ की समाप्ति (पूर्णाहुति) कार्तिक पूर्णिमा के दिन 10 नवंबर को होनी थी. व्यास के अनुसार पिछले दो महीनों से लगभग 25 हजार स्वयंसेवक दिन-रात महायज्ञ की तैयारियों में लगे थे.

खुद को बड़ा दिखाने की होड़ में संत कोशिश करते हैं कि उनके आयोजन में ज्यादा से ज्यादा लोग और वीआईपी आएं

आठ नवंबर को भी सुबह 7.45 बजे यज्ञ अग्नि प्रज्जवलित हुई. लेकिन यज्ञ में आहुति देने वालों की भीड़ तड़के चार बजे से ही जमा होने लगी थी. एक बार में 18  हजार साधकों को यज्ञ में आहुति देनी थी. आहुति के लिए एक बार में साधकों को 20 मिनट दिए गए थे. दो शिफ्टों के बीच समय नहीं रखा गया था. गायत्री परिवार ने पहले केवल कार्डधारक साधकों को ही यज्ञ में आहुति देने की अनुमति दी थी, परंतु बाद में आयोजकों की ओर से घोषणा की गई कि बाकी लोग भी यज्ञ में आहुति डाल सकते हैं. सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी कर रहे एक अधिकारी बताते हैं कि इस घोषणा के बाद बड़ी संख्या में हरिद्वार आने वाले आम यात्री भी आहुति डालने पहुंचने लगे जिससे अव्यवस्था पैदा होने लगी. गौरतलब है कि हरिद्वार में हर दिन हजारों यात्री पहुंचते हैं.

यज्ञशाला तक पहुंचने के लिए एक बार सीढ़ियां चढ़कर ऊपर प्लेटफॉर्म तक पहुंचना था और फिर ऊंचाई पर बने प्लेटफाॅर्म से सीिढ़यों द्वारा नीचे उतर कर ही यज्ञकुंडों तक पहुंचा जा सकता था. उस दिन वहां मौजूद एक साधक के अनुसार पंडाल में बने 1551 यज्ञकुंडों में एक साथ हवन होने से अंदर धुआं बढ़ता जा रहा था. पुरवाई हवा चल रही थी जिससे धुआं दक्षिण-पश्चिम की ओर जा रहा था. दिनेश व्यास कहते हैं, ‘कुछ साधक बाहर जाने वाले रास्ते से अंदर घुसने का प्रयास कर रहे थे, जिसमें एक बूढ़ी साधक नीचे गिर गई और फिर उसके बाद भगदड़ मच गई.’ यज्ञशाला में उपस्थित लोगों के अनुसार यज्ञशाला के अंदर से आते धुएं से उस दिन न केवल अंदर आहुति देने वालों का बल्कि बाहर लाइन पर खड़े साधकों का भी दम घुट रहा था. घटनास्थल पर उपस्थित एक साधक के अनुसार सुबह लगभग 10.20  मिनट पर एक बूढ़ी साधक सीढि़यों पर बेहोश हो कर गिर पड़ी. उसके गिरने से भगदड़ मच गई. इस भगदड़ को काबू करने के लिए गायत्री परिवार के स्वयंसेवकों ने लाठियां भांजीं. जिससे स्थिति और बिगड़ गई. बस कुछ मिनटों में ही एक के ऊपर दूसरे साधकों की भीड़ का रेला गिरने लगा. एक बार नीचे गिर गए श्रद्धालु के लिए फिर उठना मुश्किल था. नीचे दबने वालों में महिलाएं अधिक थीं.

इस सारे क्षेत्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी गायत्री परिवार के स्वयंसेवकों पर थी. सादी वरदी में भी कोई पुलिसकर्मी किसी अप्रिय स्थिति से उबरने के लिए नहीं लगाया गया था. अप्रशिक्षित स्वयंसेवक अचानक आई इस तरह की स्थितियों से निपटने में असफल थे, इसलिए बचाव कार्य समय रहते और ठीक तरह से नहीं हो पाया. इतने बड़े आयोजन का दावा करने वाले गायत्री परिवार के पास स्ट्रेचर तक नहीं थे, इसलिए किसी तरह घायलों और मृतकों को ढोते हुए अस्पताल तक पहुंचाया गया.

इस घटना ने राज्य में सुरक्षा व्यवस्था, सूचना तंत्र और दरकती प्रशासनिक मशीनरी की पोल खोल दी. जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक घटना के दो घंटे बाद तक किसी के भी न मरने का बयान दे रहे थे. देहरादून में भी शासन के अधिकारी और पुलिस महानिदेशक इस घटना में सुरक्षा की जिम्मेदारी गायत्री परिवार की होने का हास्यास्पद बयान दे कर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहे थे. देर शाम अंतरराष्ट्रीय गायत्री परिवार के प्रमुख प्रणव पंड्या ने घटना की नैतिक जिम्मेदारी तो ले ली लेकिन यह आरोप नकार दिया कि गायत्री परिवार ने प्रशासन को पुलिस व्यवस्था करने से रोका था. उन्होंने उलटे प्रशासन और पुलिस की कार्यप्रणाली पर संदेह व्यक्त करते हुए कहा कि पिछले एक साल से गायत्री परिवार प्रशासन औरशासन से महायज्ञ में आने वालों की संभावित संख्या और इंतजामों के विषय में पत्र व्यवहार कर रहा था लेकिन गायत्री महाकुंभ में एक बार भी प्रशासन और शांतिकुंज के बीच व्यवस्थाओं का समन्वय नहीं दिखा. या कहें कि अपने अप्रशिक्षित स्वयंसेवकों  को राज्य की व्यवस्थाओं से ऊपर दिखाने के गायत्री परिवार के दंभ और राजनीतिक प्रभाव के आगे अधिकारी अनिर्णय की स्थिति में थे. छह नवंबर को हुई कलश यात्रा में ही प्रशासन यातायात को नियंत्रित करने में विफल साबित हो गया था. अगले ही दिन यानी सात नवंबर को आयोजन स्थल में तीन जगहों पर भगदड़ मची. लेकिन इन संकेतों से भी शांतिकुंज और प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया.

भगदड़ के बाद आयोजकों का अमानवीय चेहरा सामने आया. किसी तरह यज्ञ को पुर्णाहुति तक पहुंचाने की जिद में वे किसी तरह घायलों और मृतकों के परिजनों को धकिया-लठिया कर चुप रखना चाहते थे ताकि अति विशिष्ट अतिथियों को घटना का पता ही न चल पाए. आयोजकों ने कई घंटों तक मृतकों के परिजनों को उनके शव देखने तक नहीं दिया. घटना में 16 लोगों के मरने की पुष्टि पहले ही दिन हो गई थी. पुलिस के अनुसार चार श्रद्धालुओं के शवों को गायत्री परिवार ने घंटों तक छिपा कर रखा था.

अमानवीयता का आलम देखिए कि गायत्री परिवार ने प्रशासन को इस दुर्घटना की जानकारी नहीं दी. दो घंटों तक गायत्री परिवार भगदड़ में केवल कुछ बीमारों के बेहोश होने की घोषणा करता रहा. दुर्घटना के घंटे भर बाद जिलाधिकारी और एसएसपी मौके पर पहुंचे. 12.40 बजे पर गायत्री परिवार  ने भगदड़ में चार लोगों के मरने की पुष्टि की.

उस दिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी, हिमाचल के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित अन्य कई अति विशिष्टजनों को यज्ञ में आहुति देनी थी. गडकरी की अगवानी के लिए राज्य भाजपा के लगभग सभी दिग्गज हरिद्वार में थे या पहुंचने वाले थे. बड़े अधिकारियों सहित जिला पुलिस का एक बड़ा हिस्सा इन महानुभावों की अगवानी और सुरक्षा में लगा था. आयोजन स्थल के पास के क्षेत्र में सामान्य दिनों में भी ट्रैफिक जाम होने की अधिक संभावना रहती है, पर महायज्ञ की भीड़ और उसके बाद हुई भगदड़ ने सारी सड़कें जाम कर दी थी. लिहाजा घटना की सूचना के बाद भी प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों को घटना स्थल तक पहुंचने में काफी समय लगा.

यज्ञशाला के बाहर भगदड़ में लोग मर रहे थे. घायल कराह रहे थे. लेकिन भीतर किसी ‘बड़े’ फल की प्राप्ति के लिए यज्ञ निर्विघ्न चल रहा था. दुर्घटना होने के बाद हिमाचल के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यज्ञकुंडों में आहुति दी. दुर्घटना होने के चार घंटे बाद दोपहर ढाई बजे डीआईजी संजय गुंज्याल ने यज्ञ बंद कराने का आदेश दिया तब जाकर आयोजकों ने यज्ञ बंद किया.
कई आरोपों-प्रत्यारोपों के बाद हरिद्वार के जिला प्रशासन ने इस हादसे के लिए गायत्री महाकुंभ के आयोजकों को जिम्मेदार माना है. आयोजकों के खिलाफ धारा 304-ए (लापरवाही से मौत) के तहत मामला दर्ज किया गया है. राज्य सरकार ने इस हादसे के कारणों की मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए हैं. इस जांच के बाद ही कानूनी कार्रवाई शुरू होगी.

लेकिन इस कवायद से एक वर्ग में असंतोष है. समाजवादी पार्टी के उपाध्यक्ष सुभाष वर्मा ने गायत्री परिवार के प्रमुख प्रणव पंड्या, उनकी पत्नी शैल जीजी और गौरी शंकर के विरुद्ध मुकदमा कायम करने का आवेदन दिया है. वर्मा कहते हैं, ‘इन लोगों ने आम जनता को यज्ञ में बुलाया और पर्याप्त सुरक्षा की व्यवस्था नहीं की. इसलिए ये तीनों आयोजक भगदड़ और 20 लोगों की मौत के जिम्मेदार हैं.’ उनका आरोप है कि पुलिस गुमनाम के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करके इन ताकतवर आयोजकों को बचा रही है. हरिद्वार के एक पत्रकार बताते हैं कि संतों के दरबार में आने वाले राजनेताओं के कद से संतों के कद का निर्धारण होता है. अपने कार्यक्रम में बड़े नेताओं और मुख्यमंत्रियों को कार्यक्रम में बुलाकार संत अपने भक्तों के सामने बड़े कद का प्रदर्शन करते हैं. संतो की यही जिद अधिकांशतया हरिद्वार में दुर्घटना का कारण बनती है. अखाड़ा परिषद के एक हिस्से के अध्यक्ष महंत ज्ञान दास ने भी इस भगदड़ के लिए गायत्री परिवार को दोषी ठहराया है.

15 जुलाई, 1996 को सोमवती अमावस्या पर्व में गउघाट पुल पर भगदड़ मचने से 20 श्रद्धालुओं की मृत्यु हो गई थी और कई घायल हुए थे. उस समय उत्तर प्रदेश सरकार ने इस घटना की जांच के लिए न्यायिक जांच आयोग बनाया था. न्यायाधीश आरके अग्रवाल आयोग ने घटना की जांच करके अपने सुझाव मुख्यमंत्री को भेजे थे. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा था, ‘मेरा सुझाव है कि स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ता मेला प्रशासन के नियंत्रण और मार्गदर्शन में ही कार्य करें. अन्यथा प्रशासन को इन संस्थाओं के क्रियाकलापों से कठिनाई उत्पन्न हो सकती है. जो भी संस्थाएं तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु कार्य करना चाहती हैं वे मेला प्रशासन के सक्षम अधिकारी को सूचित करें और अपने कार्यकर्ताओं की संख्या व नाम प्रस्तुत करें. उनकी (स्वयंसेवकों की) तैनाती मेला प्रशासन द्वारा विभिन्न जगहों पर की जाएगी. जस्टिस अग्रवाल ने अपनी रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया था कि मुख्य पर्वों पर विशिष्ट व्यक्ति हरिद्वार आने से बचें.

गायत्री महाकुंभ में आई भीड़ से यज्ञ स्थल के आसपास उतने ही लोग जमा हो गए थे जितने शाही स्नान में ब्रह्म कुंड या हर-की-पैड़ी के आसपास हो जाते हैं. महाकुंभ से पहले प्रशिक्षत पुलिसकर्मियों और अन्य कर्मचारियों को वृहत प्रशिक्षण दिया गया था. वे भीड़ को संभालने और भगदड़ मचने पर बचाव कार्य के लिए प्रशिक्षित थे.  दूसरी ओर गायत्री परिवार के स्वयंसेवक आम दिनों में तो अपने श्रद्धालुओं को संभाल सकते थे परंतु संकट के क्षणों से निपटना उनके बूते की बात नहीं थी. हरिद्वार में पूर्व में तैनात रहे एक पुलिस अधिकारी बताते हैं , ‘संतों का राजनीतिक लोगों पर बड़ा प्रभाव रहता है, इसलिए इन आयोजनों में प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की बजाय संतों द्वारा लिए गए निर्णयों को सहमति दी जाती है.’

उनकी बात में दम लगता है. भगदड़ के दिन पहुंचे  भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने दुर्घटना की जांच के विषय में सवाल पूछ रहे पत्रकार को झिड़क कर प्रणव पंड्या के रुतबे का संकेत दे दिया. 20 लोगों की मौत का कारण बनी घटना में खानापूरी करने के लिए बेहद हल्की धाराओं में लिखे गए मुकदमे को भी प्रणव पंड्या ने अपना उत्पीड़न बताया है. गायत्री महाकुंभ के शुभारंभ में शामिल रहे केंद्रीय मंत्री और हरिद्वार के लोकसभा सदस्य हरीश रावत ने भी पंड्या पर मुकदमा दर्ज करने को विश्व भर में जनकल्याण में लगी एक धार्मिक संस्था की छवि खराब करने का प्रयास बताया.

देवभूमि उत्तराखंड का द्वार हरिद्वार संतों को किसी भी आयोजन के लिए प्रिय है. धार्मिक माहात्म्य और पवित्र गंगा का किनारा यों ही हिंदुओं को खींचने के लिए काफी है. गायत्री महायज्ञ में आहुति डालकर पुण्य अर्जन की इच्छा से गायत्री महायज्ञ में आए लाखों श्रद्धालुओं में से 20 अभागे बदइंतजामियों के चलते पुण्य प्राप्त करने की बजाय पुण्य धाम को ही प्रस्थान कर गए और पीछे छोड़ गए रोते-बिलखते परिजनों को.