उत्पीड़न, प्रेम और पराभव

चंबल की महिला डकैतों की कहानी फूलन देवी के अस्तित्व में आने के दशकों पहले शुरू हो चुकी थी और सीमा परिहार की गिरफ्तारी के सालों बाद तक चलती रही. मगर अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है. महिलाओं के चलते  हुई कई नामी डकैतों की मौत के बाद चंबल घाटी में सक्रिय आज के गैंग इन्हें पहले की तरह अपने गिरोहों में शामिल नहीं करना चाहते.

आज भी चंबल की दस्यु सुंदरियों का जिक्र आते ही जेहन में सबसे पहला नाम फूलन देवी का ही उभरता है. माथे पर लाल पट्टा,  खाकी कमीज के ऊपर बंधी बारूदी गोलियां और कंधे पर राइफल लटका कर चलने वाली यह महिला हमारे मानस में बैठी महिला डाकुओं की प्रतिनिधि छवि है. मगर महिला डकैतों की ‘अन्याय के खिलाफ हथियार उठाने वाली दुर्गा’ जैसी मीडिया निर्मित छवि और चंबल में उनके किस्से-कहानियों से उभरने वाली छवि में जमीन आसमान का अंतर है.

‘मीडिया में बैंडिट क्वीन और फूलन देवी को मिली अपार लोकप्रियता ने महिलाओं के डाकू गिरोहों में शामिल होने की प्रवृत्ति को काफी बढ़ावा दिया’

फूलन देवी सहित दर्जनों महिला डकैतों से बातचीत कर उनपर शोध करने वाले लेखक मनमोहन कुमार तमन्ना के अनुसार ज्यादातर डाकू गैंगों में महिलाओं का इस्तेमाल सिर्फ एक उपभोग की वस्तु की तरह ही किया जाता रहा है. वे कहते हैं, ‘ यह धारणा कि चंबल की औरतें अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेने के लिए डाकू बनतीं हैं, पूरी तरह से गलत है. फूलन देवी जैसे एक अपवाद के आधार पर यह भ्रम मीडिया ने फैलाया है. औरतें कभी अपना प्रतिशोध लेने के लिए खुद हथियार उठाकर बीहड़ में नया गैंग बनाने नहीं आईं. 50 के दशक में सक्रिय रही भारत की पहली महिला डकैत पुतली बाई से लेकर सन 2000 में आत्मसमर्पण करने वाली सीमा परिहार तक सभी का पुरुष डाकुओं द्वारा अपहरण किया गया था. उनके लिए ये उपभोग की वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं थीं.’

महिला डाकुओं के जीवन को देखें तो साफ हो जाता है कि चंबल के डाकू जिस सामाजिक उत्पीड़न के खिलाफ अपना तथाकथित विद्रोह दर्ज करने के लिए ‘बागी’ बनते रहे, वही सारी बुराइयां उनके गिरोह में भी मौजूद थीं. 50 के दशक में सुल्ताना डाकू द्वारा बीहड़ के गावों में नाचने-गाने वाली पुतली बाई के अपहरण से लेकर सन 1970-80 के बीच हुए कुसमा नाइन, फूलन देवी और सीमा परिहार के अपहरण तक घाटी ऐसे कई बड़े उदाहरणों से भरी पड़ी है. ज्यादातर महिला डकैतों का गैंग में शामिल होना एक नियत पैटर्न के आधार पर ही होता रहा है. क्षेत्र के प्रभावशाली अपराध सरगना बीहड़ के पास बसे गावों से सुंदर औरतों का अपहरण करके उन्हें जंगल में ले आते. यहां उनका शारीरिक शोषण किया जाता. कुछ हफ्तों के संघर्ष और विरोध के बाद ज्यादातर महिलाएं अपनी इस बदली स्थिति को मजबूरी में स्वीकार कर लेतीं. अपने घरों और गांवों में वापसी के सभी रास्ते बंद होने बाद इन महिलाओं का डकैत बन जाना मजबूरी होती थी.

चंबल में ऐसे भी कुछ उदाहरण हैं जहां पुलिस एनकाउंटर में गैंग के पुुरुष सरगना की मौत होने के बाद महिला डकैतों ने दूसरे डाकू के साथ मिलकर नया गैंग बनाया. चंबल की पहली महिला डाकू के नाम से मशहूर पुतली बाई ने सुल्ताना डाकू की मौत के बाद कल्ला गुर्जर के साथ अपना गैंग बनाया था. इसी तरह विक्रम मल्लाह की मौत के बाद फूलन देवी ने मान सिंह के साथ मिलकर बीहड़ का सबसे खतरनाक गैंग बनाया था.

चंबल घाटी में महिला डाकुओं की उपस्थिति के लिहाज से 90 का दशक बेहद खास रहा है. इसी समय चंबल में गुर्जर डाकुओं की एक नई खेप उभरी जिसने घाटी का पूरा परिदृश्य बदल दिया. वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली बताते हैं, ‘गुर्जरों ने पहली बार बड़ी संख्या में औरतों को अपने गैंगों में शामिल करना शुरू किया. 70 के दशक तक तो पुराने डाकू औरत और शराब, दोनों से तौबा करते थे. गुर्जरों ने इस परिपाटी को बदल दिया. इनके सफाए की एक बड़ी वजह भी यही रहीं. सुंदर औरतें डाकुओं की प्रतिष्ठा और ताकत का प्रतीक थीं, इसलिए उन्हें हासिल करने के लिए होने वाली लड़ाइयों में अक्सर डाकुओं की मुखबिरी होने लगी और वे पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने लगा. आपसी गैंगवार में भी कई डाकू मारे गए. मान सिंह जैसे पुराने डाकू तो 30 -30 साल बीहड़ में रहे और पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाई और ये नए डाकू पांच साल भी नहीं टिक सके.’

गुर्जर डाकुओं में सलीम गुर्जर और निर्भय गुर्जर ने सबसे पहले महिलाओं को अपने गैंग में शामिल किया था. सलीम गुर्जर के गैंग में अनीसा बेगम, सुनीता उर्फ स्नेहलता और डॉली तिवारी समेत नौ महिलाएं रहीं, वहीं निर्भय गुर्जर के सीमा परिहार, मुन्नी पांडेय, पार्वती उर्फ चमको, नीलम और सरला जाटव से प्रेम संबंध काफी चर्चित रहे हैं. यूं तो घाटी में आने वाली महिला डकैत कभी मर्जी और कभी मजबूरी की वजह से गैंग के साथ साथ अपने पुरूष साथी भी बदलती रहीं पर चंबल के आम लोगों के बीच रज्जन गुर्जर-लवली पाण्डेय, चंदन यादव-रेणु यादव, फक्कड़-कुसमा नाइन, जगन गुर्जर-कोमेश और श्याम जाटव-नीलम गुप्ता जैसी जोड़ियों को उनकी प्रेम कहानी के लिए भी याद किया जाता है.

इन महिला डकैतों में भी अपने क्रूर तौर-तरीकों के साथ-साथ प्रेम में अपने समर्पण के मामले में कुसमा नाइन, सीमा परिहार और लवली पांडेय सबसे नामचीन हैं. कुसमा घाटी की सबसे दुर्दांत डकैतों में से थी जो प्रेम और हिंसा, दोनों में ही अपने चरम और विस्फोटक स्वभाव के लिए जानी जाती थी. फूलन देवी द्वारा बेहमई में मारे गए 22 ठाकुरों का बदला लेने के लिए कुसमा ने उत्तर प्रदेश के औरैया में 13 मल्लाहों की हत्या की थी. शुरुआत में कुसमा लालाराम के साथ रहती थी पर सीमा परिहार से लालाराम की बढ़ती निकटता के चलते वह फक्कड़ के गैंग में शामिल हो गई. फक्कड़ के साथ बीहड़ में बिताए गए 10  सालों के दौरान कुसमा फक्कड़ की ढाल बनकर उसकी सुरक्षा भी करती रही और घायल हो जाने पर उसका इलाज भी करवाया.

इसी दशक के मध्य में एक दौर ऐसा आया जब महिला डकैतों की मौजूदगी अचानक चंबल में बढ़ने लगी और डाकुओं के गैंग में शामिल होने वाली महिलाओं में एक नई प्रवृत्ति देखी गई. अब दिल्ली-इंदौर जैसे शहरों की पढ़ी लिखी लड़कियां सिर्फ रोमांच और डाकुओं के तथाकथित ग्लैमर से आकर्षित होकर बीहड़ों का हिस्सा बन गईं. राजकन्या, स्नेहलता, लवली पांडेय, मनोरमा, सरला जाटव, डॉली तिवारी और सुनीता पांडेय ऐसी ही महिला डकैत थीं. स्नेहलता को उसी आदमी ने सलीम गुर्जर के गैंग को सौंपा था जिसके साथ वह घर से भागी थी. दिल्ली की इस लड़की की शुरुआती शिक्षा कॉन्वेंट स्कूल में हुई थी. उसने विज्ञान में स्नातक की डिग्री भी हासिल की थी. कहा जाता है कि सलीम गुर्जर उसे छोड़ने को तैयार था लेकिन उसने खुद ही बीहड़ में रहने का फैसला किया.

सुनीता पांडे और सरला जाटव जैसी महिला डकैत बीहड़ में इसलिए आईं क्योंकि वे यहां वे सभी सुखसुविधाएं पा रही थीं जो उन्हें अपने घरों में नसीब नहीं हुईं. सरला ने अपनी गिरफ्तारी के बाद पुलिस के सामने बयान दिया था कि गैंग में  उसका बहुत ध्यान रखा जाता था इसलिए उसे बीहड़ पसंद था. चंबल रेंज के पुलिस महानिरीक्षक गाजी राम मीणा तहलका को बताते हैं, ‘ लवली पांडेय के गांव तो मैं खुद भी गया था. उसके घर-वालों ने यह जानकारी दी थी कि उसके साथ कोई अत्याचार नहीं हुआ था. रज्जन गुर्जर उनके गांव आता था और एक दिन वह उसके साथ खुद ही चली गई. इसी तरह सरला जब बीहड़ों में पहुंची तब वह 13 -14 साल की छोटी-सी आदिवासी लड़की थी. उसके साथ कोइ अत्याचार नहीं हुआ था. गिरफ्तारी के बाद उसने कहा भी कि निर्भय उसका बहुत ख्याल रखता था. इस तरह के कई मामले हैं. ये बहुत आम लड़कियां थीं जिन्हें गहने, कपड़े और डाकू बनने का ‘थ्रिल’ बीहड़ में ले गया. और हां,  फूलन देवी को मिली  लोकप्रियता ने भी इस ट्रेंड को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.’