अखिल भारतीय अश्रुमहोत्सव

एक ढेला उठाइए और उसे सनसना दीजिए! जिसे लगा देखिए वह आंसू बहा रहा है. अरे, अब अपराधबोध से ग्रस्त न हो जाइए! जो रो रहा है उसके आंसू तो पहले से बह रहे थे. आप को यह बताते हुए ही आंखें भर आती हैं कि यहां आंसू बहाने वाले बहुतायत में पाए जाते हैं. जिधर नजर घुमाइए, उधर ही कोई न कोई आंसू बहाते दिख जाएगा. और ऐसे आंसू बहा रहा होगा कि उसे देख कर न चाहते हुए भी उसके बोलने से पहले पूछ लेंगे,‘भाई! सब कुशल-मंगल तो है न!’ और जब आप उसका जवाब सुनेंगे तो आपके आंसू निकल जाएंगे. जिसे आप उसका प्राइवेट मामला समझ रहे थे, वह तो जनहित का निकला. आपके सामने वाला देश को लेकर रो रहा है, देश की दुर्दशा को लेकर. 

देश की दुर्दशा पर आंसू बहाने वाला जब आंसू बहाना शुरू करता है, तो जल्दी रुकने का नाम नहीं लेता. अक्सर समझ में ही नहीं आता, यह जो सामने बैठा बहुत चाव से आंसू बहा रहा है, उसके आंसू खुशी के हैं या गम के! लेकिन जब वह कहता है कि वह देश के लिए रो रहा है, तब आपको मानना ही पड़ता है कि वह चाव से नहीं व्यथित हो कर आंसू बहा रहा है. देश की दुर्दशा आंसू बहाने वालो कभी-कभी तो स्वयं भारत दिखने लगते हैं. इतने पीड़ित कि देश से ज्यादा उन पर दया भाव जाग्रत होता है. 

यहां आपसे मिलने वाला हर दूसरा व्यक्ति देश की दुर्दशा के नाम पर आंसू बहाता आता है और आपकी दुर्दशा करके किसी तीसरे की दुर्दशा करने निकल जाता है. इन आंसू बहाने वाले प्राणियों को देख कर आप का स्वयं के प्रति विरक्ति भाव पैदा होने लगता है. हाय! एक उसको देखो देश के लिए मरा जा रहा है, एक हम हैं कि पेट के लिए मरे जा रहे हैं. आपके मन में ‘मर गया देश, अरे जीवित रह गए तुम’ वाला भाव पैदा होता है. आंसू बहाने वाला यकायक आपको मुक्तिबोध का ब्रह्म राक्षस दिखने लगता है, और आप स्वयं को अंधेरे में पाते है. उसके सजल नैनों को देखकर ‘मैं ब्रह्म राक्षस का सजल-उर शिष्य होना चाहता’ की इच्छा जाग्रत हो उठती है. आपके मन में प्रबल वेग से यही भाव उठता है कि देश की दुर्दशा पर अगर हम हर समय आंसू नहीं बहा सकते, तो कम से कम रुआंसे तो दिख ही सकते हैं!  

दिन प्रतिदिन देश की दुर्दशा को लेकर आंसू बहाने वालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है. यदि ये ऐसे ही बढ़ते रहे, तो डर है कि कहीं देश में आंसुओं की बाढ़ न आ जाए. देखिए, इस वक्त भी देश की दुर्दशा पर कितने आंसू बहा रहे हैं- बडे़ बाबू अपनी कुर्सी छोड़ पान की दुकान में, आला अधिकारी दफ्तर छोड़ नेता जी के आलीशान आवास में, सत्तारूढ़ दल का नेता मंत्रालय छोड़ टीवी चैनल के स्टूडियो में, विपक्षी पार्टी का नेता पार्लियामेंट हाउस क्षेत्र छोड़ फार्म हाउस में, दरोगा अपराधी छोड़ बार में, एनजीओ बस्ती छोड़ अखबार में, रिपोर्टर खबर छोड़ बाजार में देश की दुर्दशा पर आठ-आठ आंसू बहा रहे हैं. देश की दुर्दशा पर आंसू बहाने का अखिल भारतीय महोत्सव चल रहा है , ऐसे में आप क्यों-कैसे दूर हैं. झिझकिए नहीं. कूद जाइए. आप भी देश की दुर्दशा पर मोटे-मोटे आंसू बहाइए. देखते नहीं, जो देश की दुर्दशा पर आंसू बहाता है, कुछ दिन बाद स्वतः मोटा हो जाता है.

-अनूप मणि त्रिपाठी