अमर सिंह होने का मतलब

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यह राजनीति का विरोधाभासी चरित्र ही है कि जिन जनेश्वर मिश्र के कहने पर मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी से अमर सिंह की विदाई पर अंतिम मोहर लगाई थी उन्हीं की जयंती पर लखनऊ में आयोजित एक समारोह के जरिए अमर सिंह की सपा में पुनः प्राण-प्रतिष्ठा की तैयारी सार्वजनिक हुई है. जब अमर सिंह सपा में थे तब पार्टी में उनके वर्चस्व और भूमिका को लेकर उठे हर विरोध के स्वर को मुलायम शांत कर देते थे. लेकिन जब जनेश्वर मिश्र यानी ‘छोटे लोहिया’ ने सिद्धांतों का सवाल उठा दिया तो मुलायम सिंह के लिए भी उन बातों की अनदेखी संभव नहीं रह गया.

फरवरी 2010 में अमर सिंह जयाप्रदा और अपने कुनबे को लेकर समाजवादी पार्टी से अलग हो गए. लेकिन चार साल तक राजनीति के अलग-अलग घाटों का पानी पी-पी कर अमर सिंह को यह समझ आ गया कि उनका असल घाट समाजवादी पार्टी ही हो सकती है. इसलिए सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ मंच साझा करने के दौरान अपने संबोधन में वे यह कहना नहीं भूले कि ‘एक बार जनेश्वर जी ने मुझसे कहा था, तुम बड़े घर के हो, तुम समाजवादी नहीं हो सकते. समाजवादी होने के लिए राजनीतिक कारणों से जेल जाना होता है. गरीब के पसीने की कीमत समझनी होती है. चुनाव लड़ना होता है. अगर आज वे होते तो मैं पूछता कि राजनीतिक कारणों से जेल हो आया. चुनाव भी लड़ लिए. गली-गली घूम रहा हूं तो क्या अब समाजवादी हो गया हूं.’

अमर सिंह और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव दोनों आज एक जैसी ही स्थिति में हैं. सपा से अलग होकर अमर सिंह को यह समझ में आ गया कि जिस तरह के राजनीतिक जलवे का चस्का उन्हें लग चुका है वह सिर्फ सपा ही उन्हें वापस दिलवा सकती है. उनकी सारी जनसंपर्क और धनसंपर्क की कलाएं अगर कहीं निखर सकती हैं तो सिर्फ समाजवादी पार्टी के ही मंच पर. एक व्यक्ति, एक नेता या एक प्रवक्ता के रूप में उनको अतिविशिष्ट बने रहने का महत्व भी अगर कहीं मिल सकता है, तो वह भी सिर्फ समाजवादी पार्टी में. राजनीति के गलियारों में खास बने रहने की आदत ने भी उनके मन में मुलायमवादी होने की छटपटाहट बढ़ा दी है.

ऐसा ही कुछ हाल मुलायम सिंह यादव का भी है. उनकी पार्टी भले ही उत्तर प्रदेश में सत्ता-सुख भोग रही है मगर उनका खुद के लिए तैयार किया गया मिशन 2014 मोदी की सूनामी में पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है. पांच साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में परिस्थितियां उनके कितने अनुकूल होती हैं, यह सोचना तो बाद की बात है फिलहाल तो अगला विधानसभा चुनाव ही हाथों से फिसलता दिख रहा है. लोकसभा के अंदर चार सदस्यों का उनका पारिवारिक समाजवादी कुनबा राष्ट्रीय राजनीति में उन्हें प्रासंगिक बनाने के लिए पर्याप्त नहीं. राज्यसभा में भी नरेश अग्रवाल और रामगोपाल यादव के बावजूद समाजवादी पार्टी बहुत चमक नहीं दिखा पा रही. ऐसे में मीडिया के जरिए चर्चा में बने रहने के लिए अमर सिंह समाजवादी पार्टी की हर जरूरत पूरी कर सकने के लिए सर्वाधिक सक्षम व्यक्ति साबित हो सकते हैं. इसलिए मुलायम भी अमर सिंह के सारे जुबानी गुनाह भूलने को तैयार दिखते हैं.

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