‘मुझसे ऐसा व्यवहार किया गया जैसे मानो मैं अपराधी हूं’

बतौर वालंटियर ग्रीनपीस से मैं लंबे समय से जुड़ी रही मगर एक कर्मचारी के रूप में मैंने 2010 में जॉइन किया. वहां के माहौल में ही ये घटियापन घुल चुका है. आते-जाते कमेंट करना, महिलाओं की वेशभूषा पर टिप्पणी करना, अश्लील और भद्दे मजाक करना वहां आम है. चूंकि मैं उम्र और पद में बड़ी थी तो इन लड़कियों ने मुझे इस बारे में बताया. मैं इस तरह के मुद्दे मैनेजमेंट तक पहुंचाती, उस पर उनसे सवाल-जवाब करती. पर कभी भी इस बारे में उनका रवैया ठीक नहीं रहा. मुझे याद है एक एचआर डायरेक्टर सरेआम मुझ पर चिल्लाने लगा. उसने मुझसे कहा, ‘क्योंकि आपकी निजी जिंदगी के अनुभव ठीक नहीं रहे इसलिए आपको हर आदमी गलत ही लगता है. आप मानसिक रूप से असंतुलित हैं, आपको मनोचिकित्सक की सलाह की जरूरत है.’

उनका ये जवाब तब था जब मैंने उनसे एक महिला कर्मचारी द्वारा एक पुरुष सहकर्मी पर लगाए गए उत्पीड़न के आरोपों के बारे में बात करनी चाही. मेरा मानना है कि ग्रीनपीस जैसे नामी एनजीओ में इस तरह की घटनाएं होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और उससे भी ज्यादा शर्मनाक है उनके प्रबंधन का रवैया. सीनियर मैनेजमेंट में दिव्या रघुनंदन, समित एच, विनुता गोपाल और प्रिया पिल्लई सब ये जानते थे, अगर उस समय कोई कड़ा कदम उठा लिया गया होता तो बलात्कार की ये घटना नहीं होती. उनके कड़े कदम से बाकी कर्मचारियों को भी चेतावनी मिल जाती. उन्होंने लगातार इसे छिपाया. जब इन लोगों ने कोई कार्रवाई नहीं की तब मैंने ये बात ग्रीनपीस बोर्ड में बताई पर उनके प्रबंधन से पूछने पर वे साफ मुकर गए कि ऐसा कोई केस यहां हुआ है. प्रिया पिल्लई ने मुझसे कहा था कि उनके पास इससे बड़े मुद्दे हैं और इसमें मुझे नहीं पड़ना है. इसके बाद से वे लोग मुझे निकालने के बारे में सोचने लगे. बार-बार अपमानित किया गया. इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया. एक दिन कहा गया कि आपकी मानसिक हालत ठीक नहीं है, या तो आप ‘कंपलसरी लीव’ पर जाइए या आपको अभी नौकरी से निकालकर बाहर कर दिया जाएगा. मैंने पूछा, ‘क्या इसके अलावा कोई विकल्प है?’ ‘इस्तीफा दे दीजिये’, जवाब मिला. मैंने ईमेल पर अपना इस्तीफा भेज दिया. आप यकीन नहीं करेंगे कि ईमेल भेजने के पांच मिनट के अंदर ही मेरा लैपटॉप छीन लिया गया, ऑफिशियल ईमेल आईडी बंद कर दी गई और एक घंटे में सामान लेकर निकल जाने को कहा गया. ऐसा व्यवहार किया गया जैसे मानो मैं अपराधी हूं… और अब अपराधियों को वे ‘गुड लीडरशिप’ सर्टिफिकेट से नवाज रहे हैं!

कीर्ति