हरप्रीत कौर की अजब कहानी

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फोटो: विजय पांडे

साल 2013. दिल्ली में इस साल की शुरुआत धरनों, प्रदर्शनों, भूख हड़ताल और नारों से हुई थी. 16 दिसंबर 2012 की शाम जो हादसा निर्भया के साथ हुआ उसने दिल्ली ही नहीं पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. इसके बाद लाखों लोग सड़कों पर उतर आए थे. कहीं निर्भया को न्याय दिलाने की मांग थी तो कहीं महिलाओं की सुरक्षा के लिए नए कानून बनाने के आंदोलन हो रहे थे. दिल्ली का जंतर मंतर इस आंदोलन का सबसे बड़ा प्रतीक बना. देश के कोने-कोने से आए आंदोलनकारी यहां एकजुट हुए. लुधियाना (पंजाब) से आई हरप्रीत कौर (बदला हुआ नाम) भी इन्हीं में से एक थीं. हरप्रीत सिर्फ निर्भया के लिए ही नहीं बल्कि अपने लिए भी न्याय की मांग लेकर यहां आई थीं. उनका आरोप था कि पंजाब कैडर के एक आईपीएस अफसर ने उनके साथ बलात्कार किया है.

अप्रैल 2013 में बलात्कार संबंधी कानूनों को राष्ट्रपति की सहमति मिलने के बाद निर्भया आंदोलन समाप्त हो गया. इसके साथ ही देश भर से आए आंदोलनकारी भी अपने-अपने घर लौट गए. लेकिन हरप्रीत आज भी न्याय के इंतजार में जंतर मंतर पर ही बैठी हैं. निर्भया के अपराधियों को तो सितम्बर 2013 में फांसी की सजा सुना दी गई थी लेकिन हरप्रीत की शिकायत पर आज तक प्रथम सूचना रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हुई है. हरप्रीत को जंतर मंतर पर धरना देते 16 महीने बीत चुके हैं. उनकी मांग है कि उनकी शिकायत पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जाए और मामले की जांच हो. हरप्रीत के अनुसार यह घटना 2010 की है. तब से अब तक वे इस संबंध में पंजाब और दिल्ली के पुलिस थानों से लेकर पुलिस के सर्वोच्च अधिकारियों, राज्य और केंद्र के लगभग सभी मंत्रालयों, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और संयुक्त राष्ट्र संघ तक को शिकायत भेज चुकी हैं. उनकी शिकायतों पर विभागीय जांच तो कई बार हो चुकी है लेकिन दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार आज तक कुछ भी नहीं हुआ.

कानूनी प्रक्रिया के अनुसार बलात्कार की सूचना मिलने पर पुलिस का पहला काम प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करना होता है. पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रक्रिया को और भी मजबूती दी है. नवंबर 2013 में मुख्य न्यायाधीश सदाशिवम की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने इस संबंध में एक ऐतिहासिक फैसला दिया. इसके बाद से पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करना अनिवार्य हो गया है. फैसले में न्यायालय ने यह भी कहा था कि प्रथम सूचना दर्ज न करने पर संबंधित पुलिस अधिकारी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी की जाएगी. लेकिन हरप्रीत का मामला इस फैसले से भी प्रभावित नहीं हुआ. दिल्ली पुलिस के सहयोग से महिलाओं के हित में काम करने वाली संस्था ‘प्रतिधि’ के प्रतिनिधि योगेश कुमार बताते हैं, ‘प्रभावशाली लोगों के खिलाफ आज भी आसानी से रिपोर्ट दर्ज नहीं होती. हालांकि निर्भया मामले के बाद हालात बदले हैं और पुलिस पर रिपोर्ट दर्ज करने का दबाव काफी बढ़ गया है. लेकिन अब भी बड़े अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करना आसान नहीं है. दिल्ली से बाहर तो स्थिति और भी ज्यादा गंभीर है.’

पिछले लगभग डेढ़ साल से देश की राजधानी में धरना दे रहीं हरप्रीत के अनुसार चार साल पहले उनके साथ बलात्कार हुआ था. इतने समय में सामान्यतः बलात्कार के मामलों की जांच पूरी होकर न्यायालय का फैसला भी आ जाता है. लेकिन हरप्रीत का मामला अब तक आपराधिक प्रक्रिया की पहली सीढ़ी भी नहीं चढ़ सका है. दिलचस्प यह है कि उनके मामले में एकमात्र यही विरोधाभास नहीं है. यह पूरा मामला विरोधाभासों की एक ऐसी श्रृंखला है जो देश के बलात्कार संबंधी कानूनों की हर तस्वीर बयान करती है. हरप्रीत का मामला बलात्कार संबंधी कानूनों के उपयोग, दुरूपयोग और सुविधानुसार उपयोग का एक दुर्लभ उदाहरण है. इस मामले को समझने की शुरुआत जंतर मंतर से ही करते हैं जहां हरप्रीत कई महीनों से धरने पर बैठी हैं.

जंतर मंतर पर सड़क के दोनों ओर लगे दर्जनों टेंटों में से एक हरप्रीत का है. टेंट के बाहर एक बड़ा-सा बैनर लगा है. इस पर एक तरफ पंजाब कैडर के आईपीएस अफसर डीआईजी नौनिहाल सिंह की तस्वीर बनी है और दूसरी तरफ उतनी ही बड़ी तस्वीर हरप्रीत की है. बैनर पर लिखा है ‘हरप्रीत कौर से बलात्कार करने और जान से मारने की धमकी देने के आरोप में नौनिहाल सिंह के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट और गिरफ्तारी की मांग हेतु 12 जनवरी 2013 से अनिश्चितकालीन धरना.’ टेंट के अंदर दो बक्से, कुछ कपड़े और एक चारपाई रखी है. हरप्रीत अपने कुछ साथियों के साथ इसी चारपाई पर बैठी हैं. उनसे बात शुरू करने से पहले ही एक व्यक्ति हरप्रीत के पास एक पत्र लेकर आता है. इस पत्र पर बाहर लिखा है – ‘हरप्रीत कौर, कैंप नंबर 7, जंतर मंतर. दिल्ली.’ यह पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय से आया है. पिछले काफी समय से हरप्रीत के सभी पत्र इसी पते पर आते हैं. जंतर-मंतर उनकी पहचान से अब इस तरह जुड़ चुका है कि उनके आधार कार्ड पर भी यही पता लिखा गया है. लंबे समय से यहीं रह रही हरप्रीत सबसे पहले अपने इसी अनुभव के बारे में बताती हैं. वे कहती हैं, ‘पिछले डेढ़ साल से मैं यहां हूं. यहां धरना देने के लिए सिर्फ सर्दी या गर्मी ही नहीं बल्कि और भी बहुत कुछ सहना होता है. कई बार नगर निगम वाले आकर मेरा टेंट उखाड़ देते हैं. पुलिस वाले भी कई तरह के आते हैं. कुछ अच्छे से बात करते हैं तो कुछ बदतमीजी की सारी हदें पार कर जाते हैं.’ सब तकलीफों के बावजूद भी हरप्रीत ने खुद को जंतर मंतर के अनुसार ढाल लिया है. सुबह उठकर वे पास के गुरुद्वारे चली जाती हैं. स्नान आदि के साथ ही नाश्ते की व्यवस्था भी गुरुद्वारे में ही हो जाती है. इसके बाद जब वे लौटकर जंतर मंतर आती हैं तो अन्य लोगों के धरनों में भी शामिल हो जाती हैं. अपने मन का गुबार निकालने के लिए उन्हें यहां किसी न किसी नेता के पुतले को जूता मारने का मौका लगभग रोज ही मिल जाता है.

जंतर-मंतर पर बने अपने अस्थाई ठिकाने में हरप्रीत कौर. फोटो: विजय पांडेय

अपनी कहानी सुनाते हुए हरप्रीत बताती हैं, ‘मैं ह्यूमन राइट्स मंच नाम की एक संस्था में कई सालों से काम करती थी. इसके चलते मैं कई अधिकारियों से भी मिलती रहती थी. 16 जून 2010 को मैं एक शिकायत लेकर नौनिहाल सिंह के ऑफिस गई थी. मेरे साथ तीन अन्य लोग भी थे. मैंने एक व्यक्ति को 40 हजार रुपये उधार दिए थे जो मुझे वापस नहीं मिल रहे थे. वह व्यक्ति संगरूर जिले का रहने वाला था. नौनिहाल सिंह उस वक्त संगरूर का एसएसपी था.’ हरप्रीत आगे बताती हैं, ‘जब हम नौनिहाल के ऑफिस पहुंचे तो संत्री ने बताया कि साहब अपने आवास पर हैं. उनका आवास ऑफिस के साथ ही पिछली तरफ था. मेरे साथ आए लोगों को संत्री ने बाहर ही बैठने को कहा और मुझे अकेले नौनिहाल के पास भेज दिया. नौनिहाल ने मेरी शिकायत सुनी और मुझे कॉफी के लिए भी पूछा. मैं जब बैठ कर कॉफी पी रही थी तो नौनिहाल कमरे में इधर-उधर घूम रहा था. मुझे नहीं पता उसने कब कमरे का दरवाजा बंद किया. इसके बाद उसने मुझे पीछे से आकर पकड़ लिया. मेरे शोर मचाने पर मेरे साथ आए लोगों ने अंदर आने की कोशिश की लेकिन पुलिस वालों ने उन्हें अंदर नहीं आने दिया. नौनिहाल ने मेरा बलात्कार किया और मुझे धमकी दी कि मैं किसी को भी ये नहीं बताऊं.’

हरप्रीत आगे बताती हैं, ‘मैं जब नौनिहाल के कमरे से बाहर निकली तो मेरे साथ आए लोग वहां मौजूद नहीं थे. मैंने उनके बारे में पता किया तो मालूम हुआ कि पुलिस ने उनसे मारपीट की है और उन्हें वहीं एक कमरे में बंद कर दिया है. मैंने जब बाकी पुलिसवालों को यह बताया कि एसएसपी नौनिहाल सिंह ने मेरे साथ बलात्कार किया है तो उन्होंने नौनिहाल को बुला लिया. इसके बाद नौनिहाल ने उन्हें मुझे मारने के आदेश दिए. नौनिहाल के आदेश पर उसके स्टाफ के गुरमैल सिंह और परमजीत सिंह ने मुझे लाठियों से पीटा. मेरे पूरे शरीर में चोटें आई और हाथ और पैर की हड्डी टूट गई.’

हरप्रीत के अनुसार इस घटना के बाद पुलिस उन्हें थाने ले गई और उनसे एक डीडीआर (डेली डायरी रिपोर्ट) पर हस्ताक्षर करवाए गए. इस डीडीआर में लिखा था कि हरप्रीत और उनके साथियों को बस के दरवाजे से फिसलने के कारण चोटें आई हैं. हरप्रीत बताती हैं, ‘घटना के अगले दिन जब मेरे गांव वालों को यह बात पता लगी तो गांव के सैकड़ों लोग शिकायत दर्ज कराने पहुंचे. हमने पुलिस अधिकारियों से लेकर जिलाधिकारी तक को शिकायत की. मामले की विभागीय जांच हुई और दो पुलिस वाले कुछ महीनों के लिए सस्पेंड भी हुए लेकिन आज तक बलात्कार की प्रथम सूचना रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हुई.’ इसके कुछ समय बाद ही नौनिहाल सिंह का तबादला चंडीगढ़ हो गया था.

दिल्ली आने के बारे में हरप्रीत कहती हैं, ‘पंजाब और चंडीगढ़ में मेरी कोई सुनवाई नहीं हुई. मैं उच्च न्यायालय  और सर्वोच्च न्यायालय तक अपना मामला लेकर जा चुकी हूं. लेकिन पुलिस ने न्यायालय को बताया कि इस मामले में पहले ही कई बार जांच हो चुकी है. न्यायालय ने पुलिस के इस जवाब को स्वीकार भी कर लिया. 2012 में जब निर्भया मामले के बाद दिल्ली में आंदोलन हुआ तो मुझे लगा कि शायद मुझे भी न्याय मिल जाए. मैं 12 जनवरी 2013 को दिल्ली आ गई. मैंने यहां आकर कई दिनों तक भूख हड़ताल की. मेरी इतनी तबीयत बिगड़ गई कि मुझे अस्पताल में दाखिल किया गया. मैंने तब भी भूख हड़ताल जारी रखी. इसी बीच मेरे पिताजी की भी दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. मुझे घरवालों ने पिताजी की मौत के बारे में नहीं बताया क्योंकि मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. मैंने कई दिनों के बाद अपनी भूख हड़ताल तब तोड़ी जब किरण बेदी ने मुझे विश्वास दिलाया कि वे मुझे न्याय दिलाएंगी. आज मेरे साथ कोई नहीं है. लेकिन मुझे यकीन है कि भगवान मेरे साथ है और मुझे एक दिन न्याय मिलेगा.’

अब तक लिखी गई बातें हरप्रीत की कहानी का वह हिस्सा हैं जो हरप्रीत ने खुद तहलका को पहली मुलाकात में बताया. कहानी का यही पहलू हरप्रीत अपने हालिया पत्रों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा समेत अन्य कई लोगों को भी भेज चुकी हैं. इसके बाद जब तहलका ने हरप्रीत से उनके दस्तावेज मांगे तो कुछ आना-कानी के बाद हरप्रीत दो दिन बाद दस्तावेज देने को तैयार हुई. अपने बक्से में से लगभग पांच सौ पन्नों की एक फाइल निकाल कर हरप्रीत ने अपने सहयोगी को उसकी एक फोटो-कॉपी कराने को कहा. दिल्ली में हरप्रीत के साथ उनके तीन सहयोगी ऐसे हैं जिन्हें उन्होंने नौकरी पर रखा है. ये सहयोगी हरप्रीत के साथ ही जंतर मंतर पर ही रहते हैं और विभिन्न विभागों को पत्र पहुंचाने से लेकर सभी छोटे-बड़े काम करते हैं. जंतर मंतर पर हरप्रीत अपने दस्तावेजों की नकल ही रखती हैं. असली दस्तावेजों के लिए उन्होंने पास के ही ओवरसीज बैंक में एक लॉकर ले लिया है. कुछ पंजाबी और कुछ अंग्रेजी भाषा के लगभग पांच सौ पन्नों के इन दस्तावेजों को खंगालने पर हरप्रीत की कहानी का एक नया ही पहलू सामने आता है.

नौनिहाल सिंह पर बलात्कार का आरोप लगा रहीं हरप्रीत कौर की शुरूआती शिकायतों में कहीं भी बलात्कार का जिक्र तक नहीं है. 16 जून 2010 की इस घटना के बाद जो शिकायत हरप्रीत ने जमा कराई थी उसमें सिर्फ यह कहा गया था कि गुरमैल सिंह और परमजीत सिंह नाम के दो पुलिस वालों द्वारा हरप्रीत को बुरी तरह पीटा गया है. दिलचस्प बात यह भी है कि यह शिकायत सबसे पहले हरप्रीत और उसके साथियों द्वारा नौनिहाल सिंह को ही दी गई थी. नौनिहाल सिंह ने ही 16 जून की घटना पर जांच के आदेश दिए थे और आज नौनिहाल सिंह पर ही 16 जून को हरप्रीत से बलात्कार करने का आरोप है. साल 2010 में हरप्रीत ने नौनिहाल सिंह के अलावा जिलाधिकारी संगरूर, डीजीपी पंजाब और पंजाब मानवाधिकार आयोग को भी अपनी शिकायत भेजी थी. इन शिकायतों में भी पुलिस द्वारा मारपीट के ही आरोप लगाए गए थे और बलात्कार का कहीं जिक्र नहीं था. हरप्रीत की इन शिकायतों पर संगरूर जिले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक लखविंदर सिंह को जांच सौंपी गई. इस जांच के दौरान उन दोनों पुलिस कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया गया था जिन पर हरप्रीत ने मारपीट के आरोप लगाए थे.

पुलिस अधीक्षक लखविंदर सिंह द्वारा की गई जांच में हरप्रीत की तरफ से 64 गवाहों के बयान दर्ज किए गए. इन गवाहों में वे तीन लोग भी शामिल थे जो घटना वाले दिन हरप्रीत के साथ ही नौनिहाल सिंह के ऑफिस गए थे. इन तीनों में से एक भी गवाह ने यह बयान नहीं दिए कि हरप्रीत के साथ बलात्कार हुआ है. इनके अलावा सभी 64 गवाहों ने अपने बयानों में कहा कि पुलिस ने हरप्रीत को बुरी तरह से पीटा और जूतों की माला पहना कर पूरे परिसर में घुमाया. पुलिस अधीक्षक ने जब इन 64 लोगों की वहां मौजूदगी पर सवाल किए तो इनमें से अधिकतर का कहना था कि वे एक फॉर्म जमा करने नौनिहाल सिंह के ऑफिस पहुंचे थे. लेकिन जांच अधिकारी की रिपोर्ट में लिखा है कि उस दिन छुट्टी थी और बहुत ही सीमित स्टाफ ऑफिस में मौजूद था. साथ ही जांच रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उस तारीख को सिर्फ दो ही फॉर्म जमा हुए हैं. ये दो फॉर्म भी जिन लोगों के थे वे हरप्रीत के गवाहों में शामिल नहीं थे. ऐसे में जांच अधिकारी ने इनकी गवाही को झूठा पाया और अंततः दोनों पुलिस कर्मचारियों को दोषमुक्त कर दिया. इस जांच में यह भी पाया गया कि हरप्रीत और उसके भाई के खिलाफ पहले से ही कई आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं. जनवरी 2011 में जांच पूरी हुई और दोनों पुलिस वालों की नौकरी बहाल कर दी गई.

हरप्रीत के गवाहों में शामिल रहे लोगों से भी तहलका ने संपर्क किया. मुर्थला मंडेर गांव के रहने वाले जसप्रीत सिंह इस मामले में गवाह नंबर 12 थे. ‘मैं हरप्रीत को नहीं जानता था. मुझे अपने मामा की बेटी की पुलिस में भर्ती करानी थी. मुझे गांव के एक आदमी ने हरप्रीत से मिलवाया और कहा कि ये भर्ती करवा देगी. हरप्रीत ने मुझसे एक कागज पर दस्तखत करवाए. मुझे बाद में पता चला कि मेरी गवाही हो गई है. उसके बाद अगर हरप्रीत मुझे मिल जाती तो मैं उसका गला दबा देता.’ अपनी गवाही के बारे में पूछे जाने पर जसप्रीत सिंह बताते हैं, ‘मैंने चंडीगढ़ जाकर भी पुलिस को बताया था कि मैंने कोई गवाही नहीं दी थी.’

पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में भी हरप्रीत ने एक याचिका दाखिल की थी. इस याचिका में हरप्रीत ने नौनिहाल सिंह से जान का खतरा बताते हुए सुरक्षा की मांग की थी. न्यायालय ने पाया कि हरप्रीत के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं और उन्हें सुरक्षा देने का कोई भी आधार नहीं है. हरप्रीत की इस याचिका को न्यायालय ने खारिज कर दिया. कुछ समय बाद हरप्रीत यही मामला लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंचीं लेकिन वहां से भी उनकी याचिका खारिज हुई. चंडीगढ़ में हरप्रीत के वकील रहे फरियाद सिंह बताते हैं, ‘हरप्रीत ने बलात्कार की कोई बात नहीं की थी. उन्होंने सिर्फ सुरक्षा मांगी थी लेकिन वो याचिका खारिज हो गई थी.’

हरप्रीत द्वारा दो पुलिस अधिकारियों पर लगाए गए मारपीट के आरोप जब साबित नहीं हुए तो उन्होंने कई अन्य मंत्रालयों और लोगों को शिकायत भेजना शुरू किया. इसी कड़ी में 23 मार्च 2011 को हरप्रीत ने पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल को एक पत्र भेजा. इस पत्र में पहली बार हरप्रीत ने नौनिहाल सिंह पर बलात्कार का आरोप लगाया था. यह आरोप भी उस कहानी से बिलकुल अलग था जो हरप्रीत आज बताती हैं. इस पत्र में मुख्य तौर से उन्हीं दो पुलिसवालों की शिकायत की गई थी जिनकी शिकायत हरप्रीत पहले ही करती आ रही थीं और जिनकी जांच संगरूर के पुलिस अधीक्षक कर चुके थे. लेकिन मुख्य शिकायत के साथ ही इस पत्र में लिखा था, ‘आईपीएस नौनिहाल सिंह न सिर्फ 2001 से मेरा बलात्कार कर रहा है बल्कि अब उसने मेरा जीना मुश्किल कर दिया है. मैं इस डर से इसकी यातनाएं झेल रही हूं कि कहीं ये मेरे पति या घरवालों को न बता दे. मेरे पास चंडीगढ़ के शिवालिक व्यू होटल में कमरे की बुकिंग की रसीद है और एक वीडियो भी है. यह वीडियो मैंने ही सबूत के तौर पर बनाई थी. मैं कभी भी यह वीडियो पेश कर सकती हूं.’

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  1. Initially she made complaint against a few police officers for manhandling her along wih two others to the SSP. The SSP suspended police officers. This matter became media hyped. But soon investigation went against her. She was compelling police for interference in civil matter of money. हरप्रीत यही मामला लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंचीं लेकिन वहां से भी उनकी याचिका खारिज हुई. चंडीगढ़ में हरप्रीत के वकील रहे फरियाद सिंह बताते हैं, ‘हरप्रीत ने बलात्कार की कोई बात नहीं की थी. उन्होंने सिर्फ सुरक्षा मांगी थी लेकिन वो याचिका खारिज हो गई थी.
    But now she has tried her luck by raising rapes charges. He is not a common man. She could not frame him in a rape case. But such a lady will quit only when she will find counterclaim by this IPS officer.

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