सबसे बड़ी चुनौती

photo-vikas-kumar-(4)
आप आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल. फोटो: विकास कुमार

दो तस्वीरें. चंद महीनों के फासले की. जिन्हें देखकर पता चलता है कि काफी कुछ बदल गया है. एक तस्वीर 28 दिसंबर की है जब दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक सफलता के बाद अरविंद केजरीवाल रामलीला मैदान में शपथ लेने जा रहे थे. खुद को आम दिखाने और आम से अपने संबंधों को खास करने के लिए अरविंद ने मेट्रो की सवारी को चुना था. कौशांबी से लेकर सेंट्रल सेक्रिटेरियट के मेट्रो स्टेशनों तक लोगों का समंदर उमड़ पड़ा था. लोग उस व्यक्ति की एक झलक पाने के लिए बेताब थे जो आंदोलन के रास्ते सत्ता की कुर्सी तक पहुंचा था. इनमें वे लोग तो थे ही जिनके सिर पर ‘मैं हूं आम आदमी’ वाली टोपी थी, उनसे कई गुना अधिक उन लोगों की संख्या थी जो आम आदमी ही थे.

दूसरी तस्वीर 21 मई की है. जब केजरीवाल ने 10 हजार रुपये का जमानती मुचलका भरने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने अरविंद को 15 दिन के लिए जेल भेजा. वे तिहाड़ जेल ले जाए गए. केजरीवाल की इस गिरफ्तारी के खिलाफ कहीं कोई बड़ा प्रदर्शन नहीं हुआ. जेल के गेट के बाहर आप के मुट्ठीभर कार्यकर्ता जरूर पहुंचे थे. जिनके साथ योगेंद्र यादव और पार्टी के अन्य नेता भी थे. पार्टी कार्यकर्ताओं के अलावा शायद ही कोई आम आदमी वहां पहुंचा था.

ये तस्वीरें आम जनमानस के बीच आप की लोकप्रियता के अर्श से फर्श पर आने की कहानी कहती हैं. ये बताती हैं कि आम आदमी पार्टी और अरविंद अपने छोटे से राजनीतिक करियर के सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं.

बीते लोकसभा चुनाव में आप के 96 फीसदी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. जिन दो सीटों – अमेठी और बनारस – को पार्टी ने अपनी नाक का सवाल बना लिया था, जिन पर आप का झंडा बुलंद कर अरविंद आगामी लोकसभा का राजनीतिक भविष्य लिखना चाहते थे, उन दोनों ही पर पार्टी की करारी हार हुई. पार्टी के पूरे संसाधनों को दूसरे संसदीय क्षेत्रों की कीमत पर बनारस में खर्च करने के बावजूद अरविंद वहां से हार गए. जिस दिल्ली के विधानसभा चुनाव में जनता ने आप पर ऐसा विश्वास जताया था कि पार्टी पूरे देश में फैल जाने को बेताब हो गई वहां पार्टी के सारे प्रत्याशी चुनाव हार गए. पार्टी ने कुल जमा चार सीटें जीतीं भी तो उन जगहों से जहां से शायद उसे खुद जीतने की उम्मीद नहीं थी. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच पिछले कुछ समय में उपजे विवाद और बाता-बाती ने भी पार्टी की स्थिति को बहुत कमजोर किया है. वर्तमान में पार्टी दिशाभ्रम की स्थिति में दिखाई देती है. लेकिन ये सब भी पार्टी के भविष्य के लिए उतने खतरनाक नहीं हैं जितना पार्टी की नींव की उन ईंटों का खिसकना है जिन पर पूरी पार्टी टिकी हुई है.

ये ईंट हैं पार्टी के वे वॉलंटियर/कार्यकर्ता जिन्होंने आंदोलन के समय से ही पार्टी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने का काम किया. पार्टी की जान यही वालंटियर थे जिनके दम पर पार्टी खड़ी हुई और चलना सीखा. लेकिन आज ये ही कार्यकर्ता हताश-निराश हैं. उनकी अरविंद और पार्टी से तमाम शिकायते हैं. जिन कार्यकर्ताओं से पार्टी और अरविंद की तारीफ के सिवा कुछ सुनाई नहीं देता था उनके मन में आज गुस्सा और पीड़ा है.

निराशा और नाउम्मीदी का आलम यह है कि पार्टी के भीतर के लोग ही बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद लगभग 30 से 40 फीसदी के करीब कार्यकर्ता पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स यह भी कहती हैं कि पार्टी में 3.50 लाख वॉलंटियर्स की तुलना में अब केवल 50 हजार ही बचे हैं. दिल्ली में ही 15 हजार शुरुआती कार्यकर्ताओं में से आधे से अधिक पार्टी छोड़कर जा चुके हैं. जो अभी पार्टी से जुड़े हुए हैं उनमें से लगभग 80 फीसदी से अधिक ने पूरा समय पार्टी के लिए देना बंद कर दिया है. इनमें से भी अधिकतर इस बात को दोहराते हैं कि कैसे पार्टी के लिए काम करने का उनका उत्साह अपने सबसे निचले स्तर पर जा पहुंचा है.

आप में ऐसे लोग एक बड़ी संख्या में थे जो अपनी नौकरी या पढ़ाई छोड़कर पार्टी के लिए काम करने आए थे. ये लोग शुरुआत में अन्ना आंदोलन से जुड़े थे. बाद में जब पार्टी बनी तो ये उसके लिए काम करने लगे. ये लोग देश के लिए कुछ करना चाहते थे. इन्हें लगता था कि आप वह मंच है जिसके माध्यम से देश बदलने, व्यवस्था बदलने, क्रांति करने का उनका सपना सच हो जाएगा. आईआईटी दिल्ली में पढ़ रहे पार्टी कार्यकर्ता प्रिंस कहते हैं, ‘पहले लगता था कि हर दिन कोई न कोई परिवर्तन हो रहा है. मंजिल बहुत पास दिख रही थी. लेकिन लोकसभा में भयानक हार के बाद बहुसंख्यक कार्यकर्ताओं के मन में ये बात घर कर गई की आगे लड़ाई बहुत लंबी होने वाली है. एक तरह से पार्टी को शून्य से शुरूआत करनी है. सफलता कब तक मिलेगी पता नहीं. इसमें 2, 5, 10 साल लगेंगे या उससे भी अधिक पता नहीं. ऐसे में कई कार्यकर्ता जो अपनी नौकरी और पढ़ाई आदि छोड़कर आए थे वो फिर वापस चले गए हैं.’

‘परिणाम आने के बाद से ही कार्यालय बंद है. किसी को यह तक नहीं पता कि आम आदमी पार्टी तक उसे अपनी बात पहुंचानी है तो वह किससे संपर्क करे’

सॉफ्टवेयर इंजीनियर की अपनी नौकरी छोड़कर पार्टी के साथ जुड़ने वाले और हाल ही में पार्टी छोड़ कर जाने वाले संजीव वर्मा कहते हैं, ‘मैं अपना करियर छोड़कर पार्टी के साथ आया था लेकिन अब मुझे कोई उम्मीद नहीं दिखती. चीजें बहुत खराब हो चुकी हैं. मैंने पार्टी छोड़ दी. अब नौकरी करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है मेरे पास.’ यही कहानी देवेंद्र राजावत की भी है. मुंबई स्थित एक प्राईवट बैंक में काम कर रहे देवेंद्र नौकरी छोड़कर पार्टी से जुड़े थे. लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी. अब फिर से नए सिरे से नौकरी की तलाश कर रहे हैं. वे कहते हैं, ‘हां, मैंने पार्टी छोड़ दी है. मुझे ऐसा लगा कि इस पार्टी को जितना करना था वो कर चुकी है. अब वो भी भाजपा कांग्रेस के रास्तों पर जा चुकी है. कार्यकर्ताओं की अब यहां कोई सुनता नहीं है.’

Arvind-Kejriwal-oath-by-vij
यह तस्वीर 28 दिसंबर की है जब दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक सफलता के बाद अरविंद केजरीवाल रामलीला मैदान में शपथ लेने जा रहे थे. फोटो: विजय पांडे

दिल्ली के वसंत विहार में पार्टी के लिए पिछले डेढ़ साल से वॉलिटियर का काम कर रहे अनुराग राय कहते हैं, ‘मैंने अपनी बीटेक फर्स्ट ईयर की पढ़ाई छोड़कर पार्टी के लिए काम करना शुरू किया था. घरवाले पहले पार्टी से जुड़ने पर नाराज हुए. मेरे नहीं मानने पर बोले बीटेक पूरा कर लो फिर पार्टी के लिए काम कर लेना. मैं नहीं माना. पिछले एक साल तक पार्टी के लिए बिना कुछ सोचे काम करता रहा लेकिन लोकसभा में जिस तरह से पार्टी ने गलत लोगों को टिकट दिया. कार्यकर्ताओं की सुनवाई खत्म हो गई. आंतरिक लोकतंत्र और पारदर्शिता का जिस तरह से मजाक बनाया गया उससे मैं बहुत दुखी हुआ. मैंने पार्टी छोड़ दी. अब फिर से अपनी बीटेक की पढ़ाई शुरू करने की तैयारी कर रहा हूं. इस बीच घरवाले उस खबर की कतरनें सैकड़ों बार दिखा चुके हैं जिनमें लिखा है कि अरविंद केजरीवाल की बेटी का आईआईटी में सलेक्शन हो गया है. घरवाले ये कहते हुए कोसते हैं कि देखो तुम बीटेक की पढ़ाई छोड़कर क्रांति कर रहे थे वहीं तुम्हारे नेता जी की बेटी आईआईटी में दाखिले की तैयारी कर रही थी.’

पार्टी कार्यकर्ता चंद्रभान कहते हैं, ‘ऐसे कार्यकर्ताओं की अब बड़ी तादाद है जो नौकरी के साथ पार्टी के लिए जितना बन पड़ता है उतना कर रहे हैं. पार्टी के लिए फुलटाइम काम करने वाले पार्टी में तेजी से कम हुए हैं.’

ऐसा नहीं है कि पार्टी से दूर जाने की यह प्रक्रिया सिर्फ दिल्ली तक सीमित है. राज्यों में तो स्थिति इससे भी बुरी है. ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां पार्टी कार्यकर्ताओं का पार्टी से मोहभंग न हुआ हो. और जगहों को छोड़कर सिर्फ बनारस की ही बात करें तो आज यहां के दोनों कार्यालयों पर ताला लगा हुआ है. बनारस में पार्टी कार्यकर्ता रहे देवेश यादव कहते हैं, ‘रिज्लट आने के बाद से ही कार्यालय बंद है. किसी को यह तक नहीं पता कि आम आदमी पार्टी तक उसे अपनी बात पहुंचानी है तो वह किससे संपर्क करे. जो नंबर था वो भी बंद हो गया है. सारे लोग वापस चले गए हैं. न यहां संगठन है और न लोग. जिन लोगों ने चुनाव में हमें समर्थन किया था वो अब ये तंज कस रहे हैं कि अरविंद ने जाने से पहले एक बार भी हम लोगों से नहीं पूछा कि जाएं या यहीं रहें.’

पार्टी के कार्यकर्ताओं से बात करने पर पता चलता है कि पार्टी को लेकर उनके मोहभंग की शुरुआत बहुत पहले ही हो चुकी थी. पार्टी नेतृत्व के कार्य-व्यवहार को लेकर उनकी नाराजगी लंबे समय से पल रही थी जो समय के साथ और बढ़ती गई.

कार्यकर्ता बताते हैं कि मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद से कार्यकर्ताओं से किसी तरह का संवाद करना या उनकी राय लेना पार्टी ने बंद कर दिया

नाराजगी की शुरुआत होती है दिल्ली विधानसभा के बाद बनी पार्टी की सरकार से. पार्टी कार्यकर्ता दिनेश शर्मा कहते हैं, ‘सरकार बनने के बाद हम सभी लोग बहुत खुश थे. लेकिन कुछ समय बाद ही चीजें बदलनी शुरू हो गईं.’ दिनेश बताते हैं कि कैसे सरकार बनने से पहले पार्टी द्वारा लिए गए हर निर्णय से पहले वालंटियरों की राय ली जाती थी. उनसे पूछा जाता था कि वे क्या चाहते हैं? लेकिन सरकार बनने के बाद सब कुछ बदल गया. दिन गुजरने के साथ स्थिति ऐसी बनती गई कि कार्यकर्ताओं की सुनवाई बंद हो गई. पार्टी को जो भी निर्णय लेना होता था वह सेंट्रल ऑफिस में बैठे लोग तय कर लेते थे. पार्टी के अन्य कार्यकर्ता भी बताते हैं कि पहले जहां एक निश्चित अंतराल के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई जाती थी वहीं सरकार बनने के बाद यह सिलसिला बंद हो गया. चंद्रभान कहते हैं, ‘सरकार बनने के बाद लोगों में ईगो आ गया. जब तक सरकार नहीं बनी थी तब तक लोगों से उनकी राय ली जाती थी, उन्हें मैसेज जाता था या फोन करके बुलाया जाता था. अरविंद से मीटिंग होती थी. बाद में कार्यकर्ताओं को इग्नोर किया जाने लगा.’

यह तस्वीर 21 मई की है. जब केजरीवाल ने 10 हजार रुपये का जमानती मुचलका भरने से इनकार कर दिया. जेल के गेट के बाहर आप के मुट्ठीभर कार्यकर्ता जरूर पहुंचे थे.

पार्टी के कई कार्यकर्ता कहते हैं कि उनके लिए सबसे बड़ा चौंकाने वाला समय तब आया जब उन्हें खुद टीवी के माध्यम से पता चला कि अरविंद दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी से इस्तीफा देने वाले हैं. ‘एक दिन पहले तक हम लोगों को भी पक्की खबर नहीं थी कि अरविंद इस्तीफा देने वाले हैं. हालांकि टीवी वाले ये चलाना शुरू कर चुके थे.’ पार्टी के एक वॉलंटियर राजीव कुमार कहते हैं, ‘मैंने ऑफिस में बात की तो पता चला कि ऐसी चर्चा चल रही है. मैंने सेंट्रल ऑफिस के एक कोऑर्डिनेटर से कहा कि आप लोगों को हमें भी सूचित करना चाहिए था. लेकिन सामने वाले ने ये कहते हुए फोन काट दिया कि वालंटियर फैसला नहीं करेंगे कि उन्हें क्या बताया जाए क्या नहीं. आप अपना काम कीजिए.’

ऐसे तमाम कार्यकर्ता हैं जिनसे बात करने पर पता चलता है कि वे अरविंद के सीएम पद छोड़ने से आहत थे. इसलिए नहीं कि अरविंद ने मुख्यमंत्री पद छोड़ा था बल्कि इसलिए कि किसी ने न तो उन्हें बताया कि वे पद छोड़ने वाले हैं और न उनकी राय पूछी गई. राजीव कहते हैं, ‘जब आप एसएमएस के माध्यम से लाखों लोगों को इकट्ठा कर सकते हैं. जब आप वॉलंटियर से इस बारे में राय ले सकते हैं कि हम सरकार बनाएं या नहीं तो फिर आप ये क्यों नहीं पूछ पाए कि मैं सरकार छोड़ूं या नहीं.’

पार्टी कार्यकर्ता बताते हैं कि अरविंद के मुख्यमंत्री पद छोड़ने का सबसे अधिक खामियाजा कार्यकर्ताओं को ही भुगतना पड़ा. चांदनी चौक में पार्टी के लिए काम कर चुके अनुपम कहते हैं, ‘कार्यकर्ता ही जमीन पर लोगों के बीच में था. सो जो लोग अरविंद के इस निर्णय से खफा थे उन्होंने कार्यकर्ताओं पर ही गुस्सा निकालना शरू कर दिया. इस कारण से भी कई कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर चले गए. कौन रोज सुबह-शाम लोगों की गालियां सुनता. जिस निर्णय में आपका रोल नहीं है उसके लिए आपको कोई कोसे तो चिढ़ मचना स्वाभाविक है.’ मालवीय नगर में पार्टी का काम देखने वाले एक कार्यकर्ता कहते हैं, ‘अरविंद जी को चंद रैलियों और कार्यक्रर्मों में इस सवाल का जबाव देना पड़ा तो वो ये कहते नजर आए कि उनसे गलती हो गई. आगे से वो ऐसा नहीं करेंगे. ऐसे में ये कल्पना कीजिए कि जो कार्यकर्ता जनता के बीच 24 घंटे रहता है उसकी क्या फजीहत हुई होगी.’

कार्यकर्ता बताते हैं कि मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद से कार्यकर्ताओं से किसी तरह का संवाद करना या उनकी राय लेना पार्टी ने बंद कर दिया. इसके बाद कोई भी एक फैसला ऐसा नहीं हुआ जिसमें अरविंद ने या पार्टी ने कार्यकर्ताओं को विश्वास में लिया गया हो. सबकुछ पार्टी की राजनीतिक समिति या अरविंद और उनके करीबी चंद लोगों ने मिलकर तय कर लिया. प्रिंस कहते हैं, ‘सीएम का पद छोड़ने के बाद से ही गलतियां होनी शुरू हुईं. वहीं से हड़बड़ी में काम होना शुरू हुआ. कार्यकर्ता बेवजह खुद को पिसा महसूस करता था. पार्टी ने उससे उसका मन नहीं पूछा. उससे अगर पूछा गया होता तो उन्हें भी लगता कि मैं भी इस निर्णय में जिम्मेदार हूं.’ कार्यकर्ता बताते हैं कि इस कारण से कई जगहों पर जब अरविंद के पद छोड़ने के संबंध में उनसे पूछा गया तो उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि आप जाकर अरविंद से ही पूछ लें.

2 COMMENTS

  1. It is difficult to keep everybody happy. Any Change For The Country Not Possible Within Few Months. We Must Keep Patient If We Want Change. The People Who Has Left
    The Party Did Good Because They Want Immediate Change Which is Not Possible. AAP Is An Honest Option We Should Have Faith. For example…We can see the work of the MLAs In DELHI They are still Doing Job For Their Constituencies. Why Not BJP’s And Congress Doing.
    So Nobody Is Perfect They Are Trying For Their best Job To The People Mistake Will Happen And They Are Learning From The Mistakes. HAVE FAITH IN AAP/SUPPORT AAP. DEFINETELY CHANGE WILL COME WE ARE WAITING FOR.

  2. sir… you hv not added our point of view as well… give me ur email id… i will share that me nd my team, what we had done….but how the party people behaved. This is Raman Bishnoi, from Abohar Punjab…job chhodi aur sab kuch kiya….but at the end…. u can understand. Arvind said to me… tum party bna lo… etna to tumhe aata hai… saali party hi aur bnani hoti to waha jhak marne gye the. Arvind haarne ke baad bhi Ghamand ki charam seema par tha… Punjab ki wajah se naak bachi aur achha hua hamara candidate nhi jita…. warna yeh log to hamari baat bhi na sunte…. khair enki samajh lag chuki thi esiliye wapis job join kar li.

    email id – [email protected]

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here