‘कश्मीर में अत्याचार के लिए उमर अब्दुल्ला जिम्मेदार हैं, मैं नहीं’

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फोटोः फैसल खान

जेल से रिहाई पर हो रहे विवाद पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

जेल से मेरी रिहाई न्यायिक प्रक्रिया के तहत हुई है. कोर्ट ने सरकार की तरफ से मेरे ऊपर लगाए आरोपों के बावजूद मुझे बेल पर छोड़ा है. मुझे किसी गैर कानूनी प्रक्रिया के तहत नहीं छोड़ा गया है. इस पर इतना विवाद क्यों हो रहा है, मैं समझ नहीं पा रहा हूं. कोर्ट के आदेश के बाद भी क्या मुझे जेल से बाहर आने का अधिकार नहीं है? इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि सिर्फ विचारधारा अलग होने की वजह से मुझे आजादी के संवैधानिक अधिकार से भी वंचित रखा जाए.

क्या आप अपनी रिहाई का श्रेय मुफ्ती को देंगे?

नहीं! बिल्कुल नहीं. मुझे कानूनी तौर पर रिहा किया गया, इसमें राज्य सरकार की क्या भूमिका हो सकती है? मैंने जिंदगी के 17 वर्ष जेल में बिताए हैं. 90 के दशक में और उसके बाद 2001. 2008, 2010, और फिर 2015 में कई दफा गिरफ्तार किया गया, फिर छोड़ दिया गया. मैं साढ़े चार साल बाद जेल से छूटा हूं, इसमें राज्य सरकार की दयादृष्टि का सवाल कहां से आता है?

आप पर 2010 से विरोध प्रदर्शन के नेतृत्व का आरोप है?

पहली बात, कोर्ट ने मेरे खिलाफ लगाए आरोपों को निराधार बताया. इससे पहले भी कई दफा जब जन सुरक्षा कानून के तहत मुझे गिरफ्तार किया गया, कोर्ट ने उन आरोपों को भी पूरी तरह निरस्त कर दिया था. दूसरी बात मैं, 2010 में विरोध करनेवाले उस जनसमूह में शामिल था, जो भारत सरकार से अपने ‘आत्मनिणर्य’ के अधिकार को लेकर प्रदर्शन कर रहा था. लेकिन मैं इसका नेतृत्व नहीं कर रहा था. ध्यान रहे कि भारत सरकार की तरफ से संयुक्त राष्ट्र में ‘आत्मनिणर्य’ का वादा कश्मीर के लिए किया गया था. जनआंदोलन किसी नेता के मोहताज नहीं होते. यह लोगों के आक्रोश की परिणति थी. लेकिन तत्कालीन उमर अब्दुल्ला की सरकार ने 120 युवाओं की मौत का जिम्मेदार मुझे बना दिया. कश्मीर में हुए अत्याचार के लिए उमर अब्दुल्ला जिम्मेदार हैं, मैं नहीं. मैंने बचपन से ही अपनी ज्यादातर उम्र जेल में काटी है इसलिए अगर मुझे दोबारा गिरफ्तार किया जाता है तो वह भी कोई बड़ी बात नहीं होगी।

पाक उच्चायोग से हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी की मुलाकात और फिर आपकी रिहाई के बीच क्या कोई संबंध है?

इन दो घटनाओं के बीच कैसा संबंध हो सकता है? गिलानी जब दिल्ली में थे तो पाक उच्चायोग ने उनसे मुलाकात की. यह मुलाकात हर वर्ष होती है, इसमें नया क्या है? यह एक किस्म की शिष्टाचार मुलाकात होती है. इस वर्ष भी इस मुलाकात के बाद उन्हें 23 मार्च को होनेवाले ‘पाकिस्तान दिवस’ के लिए आमंत्रित किया गया. महज संयोग है कि जिस वक्त गिलानी की पाक उच्चायोग से मुलाकात हुई, तभी मैं भी जेल से रिहा हुआ.

राज्य में जिस तरह का राजनीतिक परिदृश्य बना है उसे देखते हुए क्या आपको लगता है कि अलगाववादियों को अपनी रणनीति बदलने की जरूरत है? यदि जवाब हां है तो फिर वह क्या होगी ?

हमारा लक्ष्य है कि संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के लिए भारत सरकार ने जो वादा किया है, उसे लागू किया जाए. इस मुद्दे पर हम कोई समझौता नहीं कर सकते है. रणनीति में बदलाव किया जा सकता है. लेकिन रातों-रात यह बदलाव भी संभव नहीं है. इस पर हमें गहराई व गंभीरता से विचार करना होगा. सभी पहलुओं पर चर्चा करनी होगी. गिलानी समेत सभी हुर्रियत नेताओं के साथ मिलकर हम इस पर चर्चा अवश्य करेंगे.

राजनीतिक प्रक्रिया में हुर्रियत की भागीदारी पर आपका क्या कहना है?

मैं पिछले साढ़े चार वर्षों से जेल में बंद था. इस दौरान यहां की स्थिति में क्या बदलाव हुए हैं, उससे परिचित होने में मुझे थोड़ा वक्त लगेगा. चुनावों में जनता की भागीदारी बढ़ रही है, हमें इसके कारणों की पड़ताल करनी होगी. गिलानी के दिल्ली लौटने के बाद हम उनसे चर्चा करेंगे. कोई भी रणनीति आपसी सहमति से बनेगी.

जेल से बाहर आने के बाद प्राथमिकताएं क्या हैं? अलगाववादी आंदोलन के लिए आपके पास कोई नई दृष्टि है ?

फिलहाल मैं अपने परिवार और परिजनों से मिलूंगा. इस बीच उन्होंने अपने जिन करीबियों को खो दिया है, मैं उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करूंगा. इसके बाद हम मिल-बैठकर भविष्य की योजनाओं पर बात करेंगे. कश्मीर की आजादी के लिए शांतिपूर्ण तरीके से संघर्ष करेंगे. न ही मैं और न आम कश्मीरी आतंकवादी है. हम अपने संवैधानिक अधिकारों की मांग कर रहे हैं.