जनता दल (यूनाइटेड) नेता और राज्यसभा सांसद शरद यादव संसद में किसी विषय पर चल रही बहस को रहस्यमयी तरीके से भटकाने के लिए जाने जाते हैं. हाल ही में जब संसद में बीमा विधेयक पर बहस चल रही थी, तब अचानक शरद यादव ने लीक से हटकर गोरी त्वचा और दक्षिण भारतीय महिलाओं की नृत्य क्षमता के बारे में बोलना शुरू कर दिया. इस घटना से न सिर्फ उनके हंसी-मजाक में प्रवीण होने के बारे में पता लगा बल्कि उनके हठी होने का भी प्रमाण मिला. राज्यसभा में विधेयक के पारित होने से पहले ही वे सदन से बाहर चले गए. इस घटना से ये भी साफ हुआ कि जदयूू अध्यक्ष की दिलचस्पी मुद्दे पर चल रही बहस में न होकर अप्रासंगिक विषयों में थी.
अगले कुछ महीनों में बिहार विधानसभा चुनाव हैं और इसके मद्देनजर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने मिलकर चुनाव लड़ना तय किया है. चर्चा है कि दोनों के बीच बढ़ रही नजदीकियों को लेकर शरद यादव असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. इस अफवाह को सिरे से खारिज करते हुए वे कहते हैं, ‘हाल के दिनों में जदयू और राजद का करीब आना बहुत अच्छी बात है. यह महागठबंधन राज्य में राजनीति की दिशा बदल देगा. हम लोगों के बीच लंबे समय तक दूरी बनी रही पर अब हम मित्र हैं और मिलकर काम करेंगे, जैसा हम पहले करते रहे हैं. ये गठबंधन हमारे लिए अच्छा है.’
जदयूू और राजद के बीच लंबे समय तक दूरी बन जाने की वजह से उनकी पार्टी को काफी नुकसान हुआ है और वे इसे स्वीकारते भी हैं, ‘जदयू और राजद के गठबंधन को लेकर पार्टी के कार्यकर्ता खुश हैं. इसका असर चुनाव परिणामों पर भी दिखेगा. दोनों दलों के बीच दरार पड़ने का सर्वाधिक लाभ (भाजपा) को मिला है. कई सालों की इस दरार का खामियाजा हमें पिछले चुनावों में हार के बतौर उठाना पड़ा था. 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपीए की असफलता की वजह से ही उन्हें पूर्ण बहुमत मिल सका.’
हालांकि जब उनसे जदयू और राजद के बीच 80 के दशक में बने गठबंधन और फिर 90 के दशक में दोनों दलों के बीच आई दूरी के बारे में सवाल पूछा तो टालते हुए उन्होंने कहा, ‘यह बहुत पुरानी बात है इसलिए उस बारे में बात करना ठीक नहीं होगा. दोनों ही पार्टियों की विचारधारा एक ही है और अब दोनों साथ हैं.’
जीतन राम मांझी के बारे में पूछने पर वे कहते हैं, ‘उन्होंने संविधान के किसी नियम का अनुसरण नहीं किया. उन्हें वित्त और राजकोष की कोई समझ नहीं है. हमें उनसे उम्मीद थी और यही वजह थी कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी दी गई थी. मुख्यमंत्री का पदभार संभालते ही उन्होंने पार्टी की विचारधारा को ही भुला दिया.’
जीतन राम मांझी द्वारा गठित पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (एचएएम) और भाजपा के बीच हुए गठजोड़ के बारे में शरद यादव कहते हैं, ‘हमें उनके (मांझी) दलित वोट बैंक की फिक्र नहीं है. वे दरअसल कांग्रेस में थे और बाद में हमारे साथ आ गए तो पार्टी ने उनके पक्ष में वोट किया और फिर हम लोगों ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया.’
पिछले दिनों बिहार विधान परिषद चुनावों में पार्टी के लचर प्रदर्शन को लेकर शरद यादव ज्यादा चिंतित नहीं हैं. उनका मानना है कि चुनावों में धन का दुरुपयोग लोकतंत्र की सेहत के लिए ठीक नहीं है और इससे हुए नुकसान की भरपाई मुश्किल है. वे बताते हैं, ‘उन चुनावों से हमारा ज्यादा लेना-देना नहीं था. हमने कभी भी ऐसे चुनावों में दिलचस्पी नहीं ली है. भाजपा ने वोट के लिए पैसे दिए. उन्होंने पैसा बांटकर चुनाव में जीत हासिल की.’
यादव के अनुसार, आज की तारीख में चुनाव केवल पैसों से नहीं बल्कि जाति के आधार पर भी लड़ा जा रहा है. जदयू अध्यक्ष का कहना है, ‘चुनाव हर चीज को मिलाकर लड़ा जाता है. सामाजिक गैर-बराबरी और आर्थिक गैर-बराबरी की समस्या बरकरार है. यह सब सालों से चलता आ रहा है. जो लोग जाति आधारित राजनीति करते हैं, वे हर तरह के फायदे में हैं. वे हाशिये के लोगों, शोषितों और वंचितों के बारे में कभी बात नहीं करते हैं. हमारी पार्टी सभी के बारे में बात करती हैं लेकिन वे केवल हिंदू और मुस्लिमों के बारे में बात करते हैं.’
शरद यादव का कहना है कि वोट बैंक का किसी पार्टी से नाता नहीं होता है. ‘2014 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा को सफलता इसलिए मिली क्योंकि सपा और बसपा के बीच दरार थी. अगर ऐसा नहीं होता तो आम चुनावों के नतीजे कुछ अलग ही होते.’
भाजपा को शिकस्त देने के सवाल पर वे कहते हैं, ‘ये संभव है कि मोदी लहर हो लेकिन बिहार में इन बातों का असर नहीं पड़ेगा. एक बात तो तय है कि केवल वाक-चातुर्य से देश नहीं चल सकता. 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान किए गए वायदे अभी तक पूरे नहीं किए गए हैं. भाजपा के नेता भाषण देते समय सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी की नकल कर रहे हैं. हमारे पास जय प्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं की विरासत है लेकिन हम किसी की नकल नहीं करते.’
नरेंद्र मोदी के बारे में उनका कहना है, ‘मोदी जितना ज्यादा बिहार के दौरे पर जाएंगे, उसका उतना फायदा हम लोगों को मिलेगा.’
नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के गठजोड़ की वजह से बिहार में भाजपा को चुनौती तो मिलेगी. देखना दिलचस्प होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान शरद यादव की उम्मीदें पूरी होंगी या फिर आम चुनावों की तरह मोदी लहर का ही जादू चलेगा.