भाजपा से दूर होते मांझी

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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी कब क्या बोलेंगे, यह सिर्फ वही जानते हैं. वे सुबह कुछ और शाम को कुछ और बोल सकते हैं. वे इतनी बार बयान बदलते हैं कि भले ही उनके बयानों को गंभीरता से नहीं लिया जाए लेकिन वे चौंकाने वाले होने की वजह से परेशान तो कर ही देते हैं. अंकगणित के आधार पर देखें तो बिहार विधानसभा चुनाव में हार के बाद एक विधायक वाली पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के वे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो बिहार में फिलहाल वे कोई राजनीतिक ताकत नहीं हैं. निकट भविष्य में बिहार में कोई चुनाव नहीं इसलिए भी वे कोई खास महत्व की चीज नहीं हैं. भाजपा के ही दो सहयोगी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) इनसे बड़ी ताकत हैं लेकिन जीतन राम मांझी कुछ न होते हुए भी भाजपा को हर कुछ दिनों पर परेशान किए रहते हैं.

इस महीने की शुरुआत से ही उन्होंने बयानों का बदलाव इस तरह से शुरू किया है कि भाजपा सुबह खुश होती थी तो शाम होते-होते उसकी सांस अटकने लगती थी. पिछले महीने जीतन राम मांझी ने जदयू के नेता व बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी को निशाने पर लिया. उन्होंने आरोप लगाया कि चौधरी उनकी हत्या की साजिश रच रहे हैं इसलिए जब वे एक दलित नेता की हत्या के बाद परिजनों से मिलने गए तो अज्ञात लोगों ने उन पर हमला किया.
मांझी ने यह बात जोर-शोर से कही तो भाजपा ने सुर में सुर में मिलाना शुरू किया. कुछ दिनों बाद मांझी ने सीधे नीतीश कुमार पर आरोप लगाया कि राज्य में जो भ्रष्टाचार हो रहा है उसका पैसा सीधे मुख्यमंत्री आवास तक पहुंच रहा है. वे यहीं नहीं रुके. आगे उन्होंने जोड़ दिया कि मुख्यमंत्री आवास सीधे भ्रष्टाचार में लिप्त है, इसकी सीबीआई जांच करवाई जाए और अगर ऐसा नहीं होता है तो वे विधानसभा की सदस्यता भी छोड़ देंगे. इस बयान से भाजपा और खुश हुई. मांझी की पीठ थपथपाने लगी. होली के समय मांझी ने बयान दिया कि वे और उनकी पार्टी के लोग इस बार होली नहीं मनाएंगे क्योंकि बिहार में अपराध इतना बढ़ गया है कि इसमें होली क्या मनाना.

मांझी अपनी हर बात कहने के लिए अपने घर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते रहे. मांझी अपने बयानों से लगातार टूटे-बिखरे भाजपाइयों का मनोबल बढ़ाते रहे. राष्ट्रपति शासन के बाद जब उत्तराखंड में सरकार बनाने की जोड़-तोड़ चल रही थी तो नीतीश कुमार ने आरोप लगाया कि भाजपा उत्तराखंड में सरकार बनाने का गंदा खेल खेल रही है. इस बार भी भाजपा की ओर से कमान संभालते हुए मांझी ने जवाब दिया कि नीतीश कुमार को इस पर बोलने का अधिकार नहीं है क्योंकि उन्होंने मेरी सरकार भी इसी तरह से गिराई थी. इसके बाद मांझी ने नीतीश को नसीहत तक दे डाली. उन्होंने कहा कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है और वहां प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था है लेकिन बिहार की सरकार आरक्षण और दलित विरोधी है इसलिए उसे खत्म कर रही है.

भाजपा की सहयोगी पार्टी रालोसपा में भी उठापटक मची हुई है. रालोसपा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ उन्हीं की पार्टी के सांसद डॉ. अरुण कुमार मोर्चा खोले हुए हैं

मांझी एक के बाद एक पत्ते फेंकते रहे और नीतीश के प्रवक्ता जवाब पर जवाब देते रहे. उधर, भाजपाई खुश होते रहे. लेकिन पिछले हफ्ते मांझी ने सारा खेला बदल दिया है. बिहार में विधान परिषद का चुनाव और राज्यसभा का चुनाव हो जाने के बाद मांझी के बोल बदलने लगे हैं. बोल के बदलाव की शुरुआत उन्होंने भाजपा को नसीहत देने से की. मांझी ने कहा, ‘भाजपा कोई भी फैसला अकेले न ले, बल्कि हमारी पार्टी, लोजपा और रालोसपा को शामिल कर फैसला ले नहीं तो यह ठीक नहीं हो रहा.’

लालू प्रसाद यादव ने मांझी के बदलते मूड को पकड़ा, उन्होंने केंद्र में मंत्रिमंडल का विस्तार होने के पहले बयान दिया, ‘भाजपा को चाहिए कि बूढ़े हो चुके रामविलास पासवान को मंत्रिमंडल से हटाकर उनकी जगह जीतन राम मांझी को दे.’ मौके की नजाकत को समझने में उस्ताद लालू ने सही समय पर, सही तरीके से निशाना साधा जो बिल्कुल सटीक जगह लगा. लालू ने इस एक बयान से मांझी को शह दिया कि वे आगे भी अपने बयान को जारी रखें. रामविलास पासवान को उकसाया भी और लगे हाथ नीतीश कुमार को संकेत भी दे दिया कि वे अपने तरीके से बिहार में सक्रिय हैं. मांझी ने लालू के बयान का खंडन नहीं किया, वे अपने बयान को विस्तारित करने में लग गए. उधर, लालू के बयान पर रामविलास पासवान भड़क उठे. उन्होंने कहा, ‘पांच बार मैट्रिक फेल लालू प्रसाद कौन होते हैं बूढ़ा कहने वाले, वे अपने बेटों को सेट कर रहे हैं, वही काम करें.’ झगड़ा रामविलास पासवान और लालू प्रसाद यादव में लग गया.

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फिर क्या था, लालू मजा लेने में लगे रहे, दूसरी ओर मांझी ने भाजपा के रंग में भंग डालने की मात्रा बढ़ा दी. रमजान के महीने में बिहार में होने वाला हर इफ्तार राजनीति का अखाड़ा होता है, मांझी ने उस अखाड़े में भी दांव खेला. मांझी ने इफ्तार पार्टी दी तो लालू पहुंचे. वहां पहुंचकर फिर वही दोहराया कि भाजपा जीतन राम मांझी के साथ अन्याय कर रही है. उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलनी चाहिए.

लालू जानते हैं कि भाजपा की बुरी तरह से हार के बाद भी मांझी अगर चुपचाप भाजपा के साथ बने हुए हैं और नीतीश को निशाने पर ले रहे हैं तो इसी उम्मीद में कि मांझी को केंद्र में कोई जगह मिल जाएगी, राज्यसभा भेज दिया जाएगा और राजनीति में शामिल होने के इच्छुक उनके बेटे संतोष मांझी को बिहार की विधान परिषद में भाजपा एडजस्ट कर देगी. लालू यह भी जान गए हैं कि भाजपा ने मांझी की दोनों में से एक भी मुराद पूरी नहीं की है इसलिए अभी मांझी को उकसाने व पुचकारने से वे भाजपा को परेशान कर सकते हैं. मांझी ने यही करना शुरू भी कर दिया है. अपनी इफ्तारी पार्टी में तो वे ज्यादा नहीं बोले लेकिन जब लालू ने उन्हें इफ्तारी दी तो वहां पहुंचे मांझी की मुलाकात नीतीश कुमार से हो गई. दोनों साथ में बैठे और काफी देर तक बातचीत भी की.

राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के बयान पर रामविलास पासवान भड़क उठे. उन्होंने कहा, ‘पांच बार मैट्रिक फेल लालू कौन होते हैं बूढ़ा कहने वाले, वे अपने बेटों को सेट कर रहे हैं, वही काम करें’ 

इसके बाद मांझी ने एक नया बयान दिया कि जब लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार एक हो सकते हैं, जिनके बीच घनघोर झगड़ा था तो फिर वे नीतीश कुमार के साथ क्यों नहीं हो सकते. मांझी गदगद थे. वे यहीं नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा, ‘मैं आज जो भी हूं, नीतीश के कारण ही हूं. नीतीश ही मेरे राजनीतिक जन्मदाता हैं. मैं तो विधायक और मंत्री के बीच ही झूल रहा था लेकिन नीतीश ने ही मुझे मुख्यमंत्री बनाया. नीतीश ने कभी आलोचना भी नहीं की, उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाकर बड़ी भूल की. अगर वे यह बयान वापस ले लें तो मैं नीतीश कुमार के साथ आ सकता हूं.’ मांझी का यह बयान भाजपा की नींद हराम कर देने के लिए काफी था. मांझी से जब इन बयानों का निहितार्थ पूछा जाता है तो वे कहते हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल होता है, यहां कोई स्थायी दोस्त या स्थायी दुश्मन नहीं होता. मांझी दार्शनिक अंदाज में इतनी ही बात करते हैं, आगे कुछ नहीं कहते. मांझी जब संभावनाओं के खेल पर बात करते हैं तो भाजपा के एक बड़े नेता कहते हैं कि मांझी संभावना की ही तलाश में लगे नेता हैं और उन्हें किसी तरह से अपना और अपने बेटे का सेटलमेंट चाहिए.

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय कहते हैं, ‘राजग में ऐसा कुछ भी नहीं है, कोई खटपट नहीं है, सभी एकजुट हैं. मांझी जी के बयानों को दूसरे संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए. वे वरिष्ठ नेता हैं और उनकी पार्टी भाजपा के साथ है.’ सुशील मोदी भी यही बात दोहराते हैं. वे कहते हैं, ‘नीतीश के कार्यकाल में होने वाले कृत्यों पर मांझी लगातार मुखर रहे हैं, वे राजग के अभिन्न अंग हैं और रहेंगे.’

भाजपा नेता मांझी को बड़ा नेता, वरिष्ठ नेता, नीतीश विरोधी नेता बताकर डैमेज कंट्रोल में लगे हुए हैं. दूसरी ओर, नीतीश के पक्ष में जब से मांझी ने बयान दिया है, जदयू के नेता सक्रिय हो गए हैं. जदयू के प्रवक्ता संजय सिंह, जो पिछले महीने तक लगातार कहते थे कि मांझी एक चूके हुए और विश्वासघाती नेता हैं, उनका जदयू से कभी कोई संबंध नहीं हो सकता, वे कहते हैं, ‘मांझी जी के लिए तो जदयू का दरवाजा हमेशा खुला हुआ है, वे जब आएं, स्वागत है.’ मांझी ने अपने बयानों से खुद को केंद्र में ला दिया है. एक विधायक वाली पार्टी के मुखिया होकर भी ज्यादा विधायक वाली पार्टी के नेताओं से ज्यादा चर्चा में हैं.

‘राजग में ऐसा कुछ भी नहीं है, कोई खटपट नहीं है, सभी एकजुट हैं. मांझी जी के बयानों को दूसरे संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए. वे वरिष्ठ नेता हैं और उनकी पार्टी भाजपा के साथ है’

भाजपा परेशान हाल है. भाजपा की परेशानी सिर्फ मांझी को लेकर नहीं है. भाजपा की एक बड़ी सहयोगी पार्टी रालोसपा में भी पिछले माह से उठापटक मची हुई है. रालोसपा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा केंद्र में मंत्री हैं. वहीं रालोसपा से एक दूसरे सांसद डॉ. अरुण कुमार अपने ही अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं, जिसके बाद उपेंद्र कुशवाहा ने डॉ. अरुण कुमार को पार्टी से निलंबित कर दिया है. अरुण कुमार के साथ उपेंद्र कुशवाहा ने पांच और रालोसपा नेताओं को बर्खास्त किया है. जानकारी मिल रही है कि अभी उपेंद्र कुशवाहा और भी कई नेताओं को अपनी पार्टी से या तो बर्खास्त करेंगे या निलंबित करेंगे. यानी रालोसपा सीधे-सीधे दो गुटों में विभाजित होगा. सांसद डॉ. अरुण कुमार कहते हैं, ‘उपेंद्र कुशवाहा तानाशाह की तरह पार्टी चला रहे हैं. उनसे जवाब मांगा गया था लेकिन जवाब देने के बजाय उन्होंने पार्टी से हटाने का निर्णय लिया, इसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी.’ अरुण कुमार अपनी पार्टी की बात करते हैं. भाजपा के नेता इस मामले पर बोलने से बच रहे हैं. वे कह रहे हैं कि यह रालोसपा का अंदरूनी मामला है, इस पर बोलना ठीक नहीं. सब जानते हैं कि यह रालोसपा का अंदरूनी मामला है लेकिन यह भी सच है कि अगर निकट भविष्य में रालोसपा में दो फाड़ होता है तो फिर भाजपा के साथ कोई एक धड़ा ही रहेगा. यह भी एक तरीके से राजग का नुकसान ही होगा.

राजनीतिक विश्लेषक प्रेम कुमार मणि कहते हैं, ‘भाजपा का क्या कीजिएगा. बिहार में हारने के बाद उसे मजबूत विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए थी लेकिन उसकी तो पूरी ऊर्जा आपसी कलह और अपने कुनबे को संभालने में ही जा रही है. ये देख नहीं रहे हैं इसका असर क्या हो रहा है. भाजपा को बिहार में जिन मसलों को उठाना चाहिए, उस पर नहीं बोल रही. उसके नेता कभी नीतीश कुमार के आवासों की संख्या गिन रहे हैं तो कभी कुछ और कर रहे हैं.’

मणि की बात सही ही है. भाजपा के नेता ऐसी ही बातों में उलझे हुए हैं. इसी दौर में भाजपा के ही एक नेता ने और परेशानी बढ़ा दी है, लेकिन वे भाजपा नेता बिहार के न होकर गुजरात के हैं. गुजरात में भाजपा के पूर्व विधायक रहे और अब आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके यतिन ओझा ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर कहा है कि बिहार चुनाव में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और ओवैसी के बीच बड़ी डील हुई थी, जिसमें शाह ने ओवैसी को सीमांचल इलाके में लड़ने को, भड़काऊ भाषण देने को कहा था ताकि ध्रुवीकरण हो और भाजपा को फायदा हो. यतिन ओझा के इस आरोप का आधार भले ही न हो लेकिन भाजपा के आलोचकों को मजा लेने के लिए एक नया विषय तो मिल ही गया है. बिहार में यह पहले से ही माना जा रहा था कि ओवैसी एक फिक्स्ड गेम प्लेयर हैं और उनकी हार हुई तो यह भी कहा गया था कि ओवैसी भाजपा के साथ मिलकर खेल रहे थे, जिसे बिहारी जनता समझ गई थी, इसलिए उनकी दुर्गति तय ही थी.