बीते 29 फरवरी को आए आम बजट में सोने और हीरे के आभूषणों पर केंद्र सरकार की ओर से लगाए गए एक प्रतिशत के उत्पाद शुल्क के विरोध में देश भर के सराफा कारोबारी बीते दो मार्च से आंदोलन कर रहे हैं. उत्पाद शुल्क में सिर्फ सोने और हीरे के आभूषणों को शामिल किया गया है. चांदी के आभूषण इसके दायरे में नहीं आएंगे.
कारोबारियों का आरोप है कि सोने के व्यवसाय से जुड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है. इससे सबसे ज्यादा नुकसान आभूषण बनाने वाले कारीगरों को होने वाला है. कारोबारियों के अनुसार, आभूषण निर्माण कुटीर उद्योग है. इस पर उत्पाद शुल्क लागू करना कहीं से भी उचित नहीं. उत्पाद शुल्क मशीनों से होने वाले उत्पादन पर लगता है, जबकि आभूषण बनाने का पूरा कारोबार कारीगरी पर आधारित है.
दरअसल, आभूषण बनाने की प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है. बताया जा रहा है कि इन सभी चरणों पर उत्पाद शुल्क देना होगा और जिससे आभूषणों पर खर्च बढ़ेगा और ग्राहकों के लिए मुश्किलें भी खड़ी होंगी. सोना खरीदने के बाद सबसे पहले उसे पिघलाया जाता है. इसके बाद फिर मशीन से उनकी तारपट्टी खींची जाती है. इसके बाद आभूषणों के डिजाइन में इस्तेमाल होने वाले अलग-अलग हिस्सों के लिए डाई काटी जाती है. फिर कारीगर इन हिस्सों को जोड़कर आभूषण तैयार करता है, जिसके बाद उसकी धुलाई करवाई जाती है और फिर आभूषणों पर चमक लाने के लिए छिलाई की जाती है. इसके बाद मीनाकारी (आभूषणों को रंगना) का काम होता है. फिर उन्हें पॉलिश किया जाता है.
लखनऊ के कारोबारी और उत्तर प्रदेश सराफा एसोसिएशन के उपाध्यक्ष लोकेश अग्रवाल बताते हैं, ‘जैसे आपको 50 ग्राम के आभूषण बनवाने हैं तो वर्तमान भाव (तकरीबन 30 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम) से इसकी कीमत तकरीबन 1,50,000 रुपये होगी. गलाई कराए जाने पर इस पर एक प्रतिशत उत्पाद शुल्क के हिसाब से 1500 रुपये अलग से देने होंगे. फिर तारपट्टी पर 1500, डाई कटिंग पर 1500, आभूषण बनाने पर 1500, छिलाई पर 1500, मीनाकारी पर 1500 और फिर पॉलिश पर 1500 रुपये का उत्पाद शुल्क देना होगा. इस तरह सात बार हमें उत्पाद शुल्क देना होगा, जो 10,500 रुपये हो जाता है. इसके अलावा सोना खरीदते समय ही हम पहले ही दस प्रतिशत कस्टम ड्यूटी देते हैं. यानी 50 ग्राम पर पांच ग्राम की कस्टम ड्यूटी पहले ही दे रखी है. ये 15,000 रुपये होते हैं. अब इस पर एक प्रतिशत वैट देना होगा. ये भी 1500 से 2000 हजार रुपये होता है. अब देखा जाए तो 50 ग्राम सोने पर हम तकरीबन 27 से 28 हजार रुपये तक शुल्क चुकाएंगे, आखिर में जिसकी मार ग्राहकों की जेब पर पड़ेगी.’
आभूषण बनाने की प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है. जैसे- गलाई, तार-पट्टी, डाई, कारीगरी, धुलाई, छिलाई, मीनाकारी और फिर पॉलिश. अब हर चरण पर उत्पाद शुल्क देना होगा जिसका बोझ ग्राहकों पर पड़ेगा
मामले को लेकर देश भर के सराफा कारोबारी लगभग एक महीने से हड़ताल पर हैं, वहीं उत्पाद शुल्क को लेकर भ्रम की स्थितियां भी बनी हुई हैं. सराफा कारोबारी इस व्यवसाय से जुड़े छोटे कारोबारियों के लिए मुश्किलें खड़ी होने का दावा कर रहे हैं तो केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क से छोटे कारोबारियों को बाहर रखने की बात कर रही है. दरअसल आभूषण बनाने में सहयोग देने वाले कारीगरों (गलाई, छिलाई और पॉलिश करने वाले) की मजदूरी ही इतनी नहीं होती कि वे उत्पाद शुल्क चुका सकें. व्यापारियों का कहना है कि सोना खरीदने से उसका आभूषण बनने और फिर उनकी बिक्री तक की प्रक्रिया काफी लंबी है और उत्पाद शुल्क लागू होने के बाद हर प्रक्रिया का दस्तावेज तैयार करना होगा. यानी हर चरण का दस्तावेज उपलब्ध होना चाहिए. उनके अनुसार, आभूषणों को हस्तकला से बाहर प्रमुख उत्पाद वर्ग में रखना ही गलत है क्योंकि इस कवायद में कारीगर भी शामिल होंगे, जिनके लिए नियम-कायदे से हिसाब-किताब रख पाना संभव नहीं होगा. ऐसा इसलिए कि इस कारोबार से जुड़े अधिकांश कारीगर अनपढ़ हैं, उनमें इतनी लिखा-पढ़ी करने की दक्षता नहीं होती. छोटा-सा हिसाब लिखने के लिए भी उन्हें दूसरे पर निर्भर रहना होता है. ऐसी स्थिति में जब कारीगर प्रभावित होंगे तो कारोबार से जुड़े दूसरे लोगों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा, जो देश भर के विभिन्न शहरों के सराफा कारोबार पर चोट होगी. व्यापारियों का आरोप है कि उत्पाद शुल्क लगाने का सीधा फायदा इस कारोबार से जुड़े बड़े कॉरपोरेट घरानों को होगा जिनका सारा काम एक ही फर्म के अंदर हो जाता है, जबकि छोटे कारोबारियों के पास इतनी पूंजी नहीं होती कि वे गलाई से लेकर पॉलिश तक का काम एक साथ एक जगह करा सकें. बड़े शहरों में बसे सराफा बाजारों में यह तंत्र है, जिसके तहत स्थानीय स्तर पर आभूषण तैयार होते हैं. छोटे शहरों में ऐसी कोई सुविधा भी उपलब्ध नहीं है जहां सारा काम एक ही जगह हो जाए.
इस बीच सराफा कारोबारियों के संगठन और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच यह गतिरोध दूर करने केे लिए बातचीत लगातार जारी है. देश भर में चल रहे प्रदर्शन के कारण बढ़ते दबाव से वित्त मंत्री इस फैसले की समीक्षा करने वाले हैं. वहीं कारोबारी इस बात को लेकर आश्वस्त नजर आ रहे हैं कि देर-सवेेर सरकार को झुकना ही पड़ेगा और तब तक उनका विभिन्न तरीकों से विरोध-प्रदर्शन जारी रहेगा. कारोबारियों ने सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम पर भी सवाल उठाए हैं. मुंबई के सोना-चांदी महामंडल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष अशोक वारेगांवकर कहते हैं, ‘ये सरकार मेक इन इंडिया की बात करती है, जबकि इस कदम से लगता है कि सरकार की मंशा हस्तकला से जुड़े इस कारोबार को खत्म करने की है. ये कैसा मेक इन इंडिया है? ये कदम बहुत ही घातक है. आभूषण निर्माण काे हस्तकला की श्रेणी से हटाकर प्रमुख उत्पाद श्रेणी में रखने से ये कारोबार और कारोबारी टूट जाएंगे. सरकार छोटे कारोबारियों को राहत का झांसा देकर बाजार में इंस्पेक्टर राज लागू करने की कोशिश कर रही है. उत्पाद शुल्क काे वापस लेने तक हम हड़ताल वापस नहीं ले सकते.’
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उत्पाद शुल्क लागू करने का व्यापक असर सीधे तौर पर विकास दर पर पड़ेगा. एक तरफ सरकार व्यापार को आसान बनाने की बात कहती है और दूसरी ओर शुल्क लगा देती है. सरकार ने कहा था कि वह टैक्स को कम करेगी लेकिन इस बजट में इसके उलट कदम उठाया गया. खासकर यह सराफा कारोबार पर लागू किया गया जो सरकार के राजस्व में इजाफा करता है. आगे चलकर यह घट जाएगा. सरकार को निश्चित तौर पर इस फैसले पर विचार करने की गुंजाइश बननी चाहिए. इसका बुरा असर हमारे विदेशी निवेशकों पर पड़ सकता है. इस शुल्क से व्यापार की दर घट जाएगी. इस कारोबार से जुड़े कारोबारियों को चाहिए कि वे एकजुट होकर अपना पक्ष मजबूती से रखते हुए वित्त मंत्रालय को मेमोरेंडम दें. टैक्स निश्चित तौर पर रखना चाहिए लेकिन उतना ही रखना चाहिए जिससे कारोबार और राजस्व प्रभावित न हो.’
डॉ. आसमी रजा, प्रोफेसर, अर्थशास्त्र विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय
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सराफा कारोबारियों के विरोध प्रदर्शन को देखते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने सभी मुख्यमंत्रियों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखने का आग्रह किया है. पत्र में उन्होंने मुख्यमंत्रियों से अपील करते हुए कहा है, ‘मैं आप सभी से अनुरोध करना चाहता हूं कि आभूषणों पर बढ़ाई गई एक प्रतिशत की एक्साइज ड्यूटी पर विरोध दर्ज कराते हुए केंद्र सरकार को पत्र लिखें. मुझे विश्वास है कि सभी सराफा कारोबारी इसके लिए आप सभी मुख्यमंत्रियों के आभारी रहेंगे.’ उन्होंने कहा, ‘दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ कड़ाई से विरोध दर्ज कराया है और प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि वे एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी को वापस लें.’ इससे पहले 17 मार्च को केजरीवाल इस संबंध में प्रधानमंत्री को भी पत्र लिख चुके हैं. सूत्रों के मुताबिक सराफा कारोबारियों की समस्याओं के हल के लिए अलग से एक बोर्ड के गठन की भी मांग की जा रही है. बीते 29 मार्च को केजरीवाल के नेतृत्व में सराफा कारोबारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात करके उन्हें पूरे मामले की जानकारी दी और उनसे हस्तक्षेप करने का आग्रह किया. सूत्रों ने बताया कि केजरीवाल ने उन्हें इस बात का भी ध्यान दिलाया कि 2012 में तत्कालीन संप्रग सरकार के समय भी उत्पाद शुल्क लागू करने की कोशिश की गई थी जिसे तब कारोबारियों के विरोध के बाद वापस ले लिया गया था और उस वक्त राष्ट्रपति ही वित्त मंत्री थे. तब भी सराफा कारोबारियों ने तकरीबन 25 दिन तक विरोध-प्रदर्शन किया था. इतना ही नहीं, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, ने संप्रग सरकार के फैसले का विरोध किया था. यह पहली बार है जब सराफा कारोबारियों को विरोध-प्रदर्शन करते हुए एक महीना हो चुका है.
वैसे सराफा कारोबारी इससे पहले भी लिए गए सरकार के फैसलों से नाखुश नजर आ रहे हैं. इस साल जनवरी में सरकार ने दो लाख और इससे अधिक के लेन-देन पर पैन कार्ड दिखाना अनिवार्य कर दिया. लोकेश बताते हैं, ‘हमारे देश में सोना स्त्री-धन के रूप में बिकता है. आभूषणों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल महिलाएं करती हैं. महिलाएं छोटी-छोटी बचत करके जेवर खरीदती हैं और कई बार तो अपने पतियों को भी नहीं बताती हैं. किसान छोटी-छोटी बचत कर जेवर खरीदते हैं. उनके लिए इतना महंगा सामान ले पाना मुश्किल हो जाएगा. अब दो लाख के लेन-देन पर पैन कार्ड अनिवार्य कर देने से आभूषणों की कीमत बढ़ जाएगी. इस तरह से किसान और महिलाओें के लिए इन्हें खरीदना आसान नहीं रह जाएगा.’
‘मोदी हम व्यापारियों के वोट से जीतने वाले व्यक्ति हैं. अब वे हम लोगों को ही कुछ नहीं समझ रहे हैं. इसका खामियाजा इन्हें भुगतना पड़ेगा. अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में इनकी बोहनी तक नहीं होगी’
इस मामले को लेकर देश भर में तकरीबन 40 से 50 संगठन सक्रिय रूप से विरोध कर रहे हैं. इस बीच 20 मार्च को कुछ संगठनों ने वित्त मंत्री से मुलाकात के बाद अपना विरोध वापस भी ले लिया है. इन संगठनों में ऑल इंडिया जेम्स ऐंड ज्वेलरी ट्रेड फेडरेशन (जीजेएफ), इंडिया बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन (आईबीजेए) और जेम्स ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल आदि हैं. इनके अलावा बाकी संगठनों का विरोध- प्रदर्शन जारी है. इस बारे में ऑल इंडिया बुलियन ज्वेलर ऐंड स्वर्णकार फेडरेशन के महासचिव योगेश सिंघल बताते हैं, ‘19 मार्च को हमारी सरकार के प्रतिनिधियों से मीटिंग हुई थी जिसमें हमसे कहा गया था कि आप अगर उत्पाद शुल्क हटाने की बात कर रहे हैं तो वो नहीं हो पाएगा लेकिन जो भी आपत्तियां हैं उन्हें वापस ले लिया जाएगा तो हमने कहा चलिए हम दूसरे कारोबारियों से बात करके अपना पक्ष रखेंगे. हालांकि सरकार के प्रस्ताव पर सभी संगठन और कारोबारी एकमत नहीं हुए. इसी मीटिंग के बाद कुछ संगठनों ने अपना विरोध वापस ले लिया. तो जिन संगठनों में रोष था उन्होंने अपना विरोध जारी रखा और सारे संगठन हमारे संगठन के बैनर तले आ गए.’ उधर, सरकार छोटे व्यापारियों के प्रभावित न होने की बात कर रही है. एक मीडिया रिपोर्ट में कारोबारियों की आशंका को दूर करते हुए केंद्रीय उत्पाद शुल्क के मुख्य आयुक्त जेएम केनेडी ने कहा, ‘सरकार का यह कदम बेहद सामान्य प्रक्रिया है. उत्पाद शुल्क सिर्फ उन कारोबारियों को चुकाना होगा जिनका पिछले साल में कुल कारोबार 12 करोड़ रुपये का रहा है. इसके अलावा अगले वित्त वर्ष में 12 करोड़ रुपये से कम का कारोबार करने वाला व्यापारी छह करोड़ रुपये तक की छूट का हकदार होगा. ऐसे छोटे व्यापारी मार्च 2016 तक 50 लाख रुपये की छूट पाने के हकदार होंगे.’ लोकेश कहते हैं, ‘हम सरकार से अपील कर रहे हैं कि वो हमसे राजस्व शुल्क वसूल ले, लेकिन उत्पाद शुल्क न लगाए. इससे इंस्पेक्टर राज की वापसी होगी और एक्साइज और कस्टम विभाग कारोबारियों के ऊपर हावी हो जाएगा. हमारा कारोबार लघु उद्योग और हस्तकला की श्रेणी में आता है. उत्पाद शुल्क कानूनन उन वस्तुओं पर लागू होता है जिनका निर्माण मशीन से होता है. उत्पाद शुल्क लागू होने से छोटे कारोबारियों काे परेशान किया जाएगा. नियमों के मुताबिक कई तरह के फॉर्म भरने पड़ेंगे. पेपर वर्क बहुत बढ़ जाएगा. हर प्रक्रिया के लिए रजिस्टर मेनटेन करना होगा. एक्साइज विभाग का अधिकारी कभी भी छापा मार सकता है. दस्तावेज पूरे न होने पर जुर्माना और सजा का भी प्रावधान होगा.’ वे कहते हैं, ‘वित्त मंत्री छोटे कारोबारियों को इससे बाहर रखने की बात कर रहे हैं. ये सरासर धोखा देने वाली बात है. जब ऐक्ट लागू हो गया तो चाहे छोटा व्यापारी हो या बड़ा, वह किसी न किसी तरह से इससे प्रभावित ही होगा. मान लिया कि एक विशेष दायरे में आने वाले कारोबारियों पर ही उत्पाद शुल्क लगेगा, लेकिन लिखा-पढ़ी का अतिरिक्त काम और नियमों का पालन तो सबको करना होगा. वित्तमंत्री जी हमें बेवकूफ बना रहे हैं. वे कह रहे हैं कि छह करोड़ रुपये सालाना के टर्नओवर पर ही उप्ताद शुल्क लगाया जा रहा है. ऐसे में तो देश के 90 प्रतिशत कारोबारी इसके दायरे से ही बाहर हो जाएंगे तो फिर 10 प्रतिशत कारोबारियों पर ये शुल्क क्यों लगा रहे हो? हम तो पहले ही राजस्व शुल्क देने काे राजी हैं फिर उत्पाद शुल्क की क्या जरूरत है? मोदी कहते हैं कि इंस्पेक्टर राज को खत्म करेंगे. इससे तो ये और बढ़ेगा और कारोबार में भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिलेगा. सरकार की मंशा स्थानीय सराफा कारोबार को खत्म कर देने की है.’
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मोटी बात ये है कि टैक्स तो देना ही पड़ेगा. हर कोई चाहता है कि टैक्स न देना पड़े. सरकार को टैक्स चाहिए होता है और उसे वह कहीं न कहीं तो लगाना ही पड़ेगा. सराफा पर जो टैक्स लगाया है वह मूल रूप से सही है और इसका मैं स्वागत करता हूं. जहां तक मेरी समझ है इन्होंने छह करोड़ रुपये सालाना कारोबार करने वाले व्यापारियों को इससे मुक्त रखा है, मैं जिसे समझता हूं ठीक ही है और विरोध तो होता ही रहता है. देखिए सराफा में नंबर दो का धंधा बहुत ज्यादा होता है तो शायद यह कदम इस पर रोक लगाने के लिए उठाया गया होगा. जीविका का सवाल है तो विरोध-प्रदर्शन चल रहा है. विरोध करने से कोई चीज सही और गलत नहीं होती.’
भरत झुनझुनवाला, अर्थशास्त्री
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गोरखपुर के कारोबारी श्याम बरनवाल कहते हैं, ‘हमें टैक्स देने से इनकार नहीं है. हमारा विरोध उत्पाद शुल्क लगाने से है. सरकार इसके बजाय वैट या कस्टम ड्यूटी बढ़ा दे हमें कोई दिक्कत नहीं.’ बहरहाल, पिछले एक महीने से जारी हड़ताल से छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई है क्योंकि सराफा कारोबार ठप होने से सबसे ज्यादा मार उन पर ही पड़ी है. अलग-अलग शहरों के बड़े व्यापारियों द्वारा अपने स्तर पर फंड बनाकर या चंदा जमा करके उनकी मदद की कोशिश की जा रही है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में सराफा मंडल अध्यक्ष शरद चंद्र अग्रहरि ‘बबलू’ बताते हैं, ‘हमारे आंदोलन को एक महीना हो गया है, लेकिन सरकार की ओर से कोई माकूल जवाब नहीं आया है. भाई साहब! हमारे शहर के कारोबारियों की स्थिति गड़बड़ हो चुकी है. छोटे कारीगर भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं. हम बड़े कारोबारियों से चंदा इकट्ठा करके छोटे कारोबारियों के लिए राशन-पानी की व्यवस्था कर रहे हैं. मोदी हम व्यापारियों के वोट से जीतने वाले व्यक्ति हैं. अब वे हम लोगों को ही कुछ नहीं समझ रहे हैं. इसका खामियाजा इन्हें भुगतना पड़ेगा. अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इनकी बोहनी तक नहीं होगी. ये सब इस व्यवसाय से जुड़े 10 फीसदी मल्टीनेशनल कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है. ये रिलायंस, टाटा जैसी कंपनियों का कुचक्र है जिसमें छोटे कारोबारियों को फंसाया जा रहा है. सरकार चाह रही है कि यही लोग व्यापार करें. हम लोग कोई ऐसा काम नहीं कर रहे हैं जो लोकतंत्र के खिलाफ हो. अगर सरकार नहीं मानती है तो विरोध-प्रदर्शन और तेज किया जाएगा.’