उत्तराखंड में सियासी संकट

फोटोः तहलका अार्काइव
फोटोः तहलका अार्काइव

क्या है मामला?

पिछले दिनों कांग्रेस शासित राज्य उत्तराखंड में बजट पर चर्चा के बाद केंद्रीय मंत्री हरक सिंह रावत की अगुआई में नौ विधायकों ने पार्टी से बगावत कर दी. इसके बाद से मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार के सामने सियासी संकट पैदा हो गया. आरोप-प्रत्यारोप के बीच 28 मार्च को रावत सरकार को विधानसभा में विश्वास मत हासिल करना था. इसी बीच एक स्टिंग ऑपरेशन में मुख्यमंत्री द्वारा विधायकों की कथित खरीद-फरोख्त का मामला सामने आने के बाद केंद्र ने 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन लगा दिया. उत्तराखंड विधानसभा में कुल 70 में से कांग्रेस के 36 विधायक थे जिनमें से 9 बागी हो चुके हैं. भाजपा के 28 विधायक हैं जिनमें से एक निलंबित है. इसके अलावा तीन निर्दलीय, बसपा के दो और उत्तराखंड क्रांति दल का एक विधायक है.

क्यों है विवाद?

इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और पूर्व कृषि मंत्री हरक सिंह रावत सहित कांग्रेस के नौ बागी विधायकों की सदस्यता समाप्त कर दी गई थी. इसके बाद केंद्र सरकार ने हरीश रावत सरकार को सदन में बहुमत साबित करने का मौका ही नहीं दिया और राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया. इसके खिलाफ रावत ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट की एकल पीठ ने निर्देश दिया कि रावत 31 मार्च को विधानसभा में विश्वास मत हासिल करेंगे. लेकिन बाद में हाई कोर्ट के दो जजों की पीठ ने एकल पीठ के निर्देश पर रोक लगा दी. अगली सुनवाई छह अप्रैल को है. हाई कोर्ट के न्यायाधीश वीके बिष्ट और एएम जोजफ के सामने केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने एकल पीठ के जज यूसी ध्यानी के फैसले के खिलाफ रोक लगाने की याचिका दायर की थी.

क्या है संभावना?

उत्तराखंड में आगे की राह कोर्ट के फैसले पर निर्भर करती है. यदि अदालत हरीश रावत को मौका देती है तो उनके पास अब भी सरकार को बचाए रखने की संभावना है क्योंकि उन्होंने 34 विधायकों की सूची राज्यपाल को दी है. इसके अलावा उन्हें भाजपा के एक बागी विधायक का समर्थन भी हासिल है. यदि कांग्रेस शक्ति परीक्षण में असफल होती है तो भाजपा को अंतरिम सरकार बनानी ही होगी. इसके अलावा यदि अपने निलंबन के खिलाफ अदालत पहुंचे बागी विधायकों के पक्ष में फैसला आता है तो भाजपा आसानी से सरकार बना सकती है, जिसकी संभावना ज्यादा है. जानकारों का कहना है कि व्हिप के जिस उल्लंघन के आरोप में नौ विधायकों की सदस्यता समाप्त की गई, वह उल्लंघन असल में हुआ ही नहीं था, क्योंकि वहां बजट के दौरान कोई वोट डिवीजन या वोटिंग नहीं हुई थी.