आप के 21 विधायकों की सदस्यता पर खतरा

फोटोः  तहलका आर्काइव
फोटोः तहलका आर्काइव

क्या है मामला?
दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत से आम आदमी पार्टी (आप) 24 फरवरी, 2015 को सत्ता में आई. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 15 मार्च, 2015 को अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था. इसके बाद राष्ट्रपति और चुनाव आयोग के पास एक शिकायत आई जिसमें कहा गया था कि यह पद ‘लाभ का पद’ है इसलिए आप विधायकों की सदस्यता रद्द की जानी चाहिए. हालांकि संसदीय सचिव बनाए जाने का यह पहला मौका नहीं था. परेशानी पद के नाम के साथ जुड़ी एक तकनीकी बाधा मात्र है. बाद में सरकार ने दिल्ली विधानसभा सदस्यता अयोग्यता निवारण संशोधन अधिनियम, 2015 विधानसभा से पारित कर दिया. इसमें संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान था. जिसे 13 जून, 2016 को राष्ट्रपति ने मंजूरी देने से इनकार कर दिया. अब इस मामले का फैसला चुनाव आयोग को करना है. मौजूदा विवाद यहीं से शुरू हुआ जिसमें केजरीवाल पर विपक्ष ने आरोप लगाया कि विधायकों को सत्ता सुख मुहैया कराने की जल्दी में उन्होंने कानूनी प्रक्रिया का पालन करना भी मुनासिब नहीं समझा.

क्या है संवैधानिक प्रावधान?
संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (अ) और 191 (1) (अ) के अनुसार संसद या फिर विधानसभा का कोई भी सदस्य अगर लाभ के किसी भी पद पर होता है उसकी सदस्यता जा सकती है. दिल्ली एमएलए (रिमूवल आॅफ डिसक्वालिफिकेशन) एेक्ट, 1997 के मुताबिक, संसदीय सचिव को भी इस लिस्ट से बाहर नहीं रखा गया है. यानी इस पद पर होना ‘लाभ का पद’ माना जाता है. दिल्ली सरकार ने 1997 में इसमें पहला संशोधन करके खादी ग्रामोद्योग बोर्ड और दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष को लाभ के पद से बाहर कर दिया. 2006 में दूसरा संशोधन करके पहली बार मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव सहित दस अन्य पदों को लाभ के पद के दायरे से बाहर किया गया. इसके बाद साल 2015 में केजरीवाल सरकार ने संशोधन प्रस्ताव के मार्फत मुख्यमंत्री और मंत्रियों के संसदीय सचिव शब्द जोड़ने की कोशिश की थी जिसे राष्ट्रपति ने अस्वीकार कर दिया.

विधायकों के सामने क्या विकल्प?
विधेयक पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से इनकार के बाद आप के 21 विधायकों की सदस्यता पर सवाल खड़े हो गए हैं. ऐसे में सभी विधायकों की सदस्यता रद्द हो जाएगी, जिसके बाद इन 21 सीटों पर दोबारा चुनाव कराया जा सकता है. जानकारों का कहना है कि अभी आप के पास समय है कि अपनी बात रखने के लिए वह अदालत का दरवाजा खटखटाए. वहीं लाभ के पद के मामले में चुनाव आयोग से शिकायत करने वाले वकील प्रशांत पटेल का कहना है कि लाभ के पद का मतलब केवल यह नहीं है कि आप सैलरी ले रहे हैं या नहीं. आप ऑफिस ले रहे हैं, तो यह भी उस परिभाषा में आता है. उन्होंने भाजपा से अपने किसी भी तरह के संबंध होने के आरोपों से इनकार किया है.