पाक की संप्रभुता स्वीकार नहीं कर पाए हैं दक्षिणपंथी

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पहली बात तो जिस एकीकरण के विचार की बात की जा रही है मैं उस पर ज्यादा जानकारी नहीं रखती. पहली बार मार्च 2006 में वर्ल्ड सोशल फोरम के आयोजन के दौरान कुछ भारतीय, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मित्रों ने बांग्लादेश-भारत-पाकिस्तान पीपुल फोरम (बीबीपीपीएफ) के विचार पर चर्चा की. फोरम में लोगों का लोगों से आपसी विमर्श होता है. इसके सदस्य साल में एक बार किसी भी संबंधित देश में मिलते हैं. फिर भारत यात्रा के दौरान अखंड भारत के लिए अभियान चला रहे दक्षिणपंथी भारतीयों के एक समूह से वाघा बॉर्डर पर बातचीत हुई.

ये वे लोग थे जो पाकिस्तान का भारत में विलय करना चाहते हैं क्योंकि वे कभी यह स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि पाकिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र है. लेकिन हम वीजा मुक्त और परमाणु मुक्त दक्षिण एशिया और एक दक्षिण एशियाई संघ के लिए अभियान चला रहे हैं. संघ बनाने और एकीकरण करने में बहुत बड़ा अंतर है. मुझे लगता है भारत और पाकिस्तान के लोगों को अपनी सरकारों पर आपसी रिश्ते सुधारने और अच्छे पड़ोसी की तरह व्यवहार करने का दबाव बनाना चाहिए. बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र हैं और हर व्यक्ति और देश को उनकी संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए. जिस क्षण हम यह अहसास कर लेंगे कि तीनों देश स्वतंत्र और संप्रभु हैं, हम संयुक्त भारतीय संघ या एकीकरण की बात नहीं करेंगे. वहीं हमारे भू-भाग में लोग अशिक्षित हैं और उनका दैनिक जीवन धर्म के इर्द-गिर्द घूमता है. इसी धार्मिक लगाव के चलते वे दूसरों के साथ समान व्यवहार करने का बात सोच भी नहीं पाते. धार्मिक श्रेष्ठता की यही भावना हमें दोस्त नहीं बनने देगी. जर्मनी और फ्रांस दोस्त बन सकते हैं क्योंकि वहां के लोग सभ्य और शिक्षित हैं.

(लेखिका इंस्टीट्यूट फॉर पीस ऐंड सेक्युलर स्टडीज, पाकिस्तान की संस्थापक निदेशक हैं)