अखंड भारत का नहीं, महासंघ का सपना देखें

PakWEB

बीते साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान की आकस्मिक यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच जो सद्भावना का वातावरण बना, उस पर संभवतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रवक्ता एवं वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव द्वारा दिए वक्तव्य से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. राम माधव ने यह आशा प्रकट की है कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक हो जाएंगे. उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि उनका यह विचार पार्टीलाइन पर नहीं बल्कि आरएसएस के सदस्य के तौर पर है. उन्होंने यह भी कहा कि अखंड भारत का सपना युद्ध से नहीं बल्कि आम सहमति से ही संभव हो सकता है.

यद्यपि उन्होंने यह आश्वासन दिया कि अखंड भारत के निर्माण में युद्ध का उपयोग नहीं किया जाएगा परंतु यदि गहराई से देखा जाए तो अखंड भारत के सपने में बांग्लादेश और पाकिस्तान के अस्तित्व की समाप्ति की संभावना निहित है. अखंड भारत का अर्थ होगा पाकिस्तान और बांग्लादेश का भारत में शामिल हो जाना. इस तरह यह कहा जा सकता है कि राम माधव के वक्तव्य से तीनों देशों के बीच जो पहले से दूरी थी वह और बढ़ी.

इस संबंध में मैं अपना एक अनुभव पाठकों के साथ बांटना चाहूंगा. वर्ष 2013 में मैं पाकिस्तान की यात्रा पर गया था. यात्रा का उद्देश्य कराची में एक समारोह में शामिल होना था. समारोह में मुझे एक अमेरिकी संगठन द्वारा शांति और समरसता के लिए दिए गए पुरस्कार को स्वीकार करना था. कार्यक्रम के बाद मुझे अनेक शहरों और संस्थाओं में जाने का मौका मिला. मुझे कराची विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित करने के लिए निमंत्रित किया गया था. विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए मैंने एक सुझाव दिया और उसके बारे में उनकी राय मांगी. मैंने उन्हें बताया कि प्रसिद्ध अमेरिकी समाजसुधारक डॉ. मार्टिन लूथर किंग ‘जूनियर’ अपने भाषण के बीच में यह कहते थे, ‘आई हैव अ ड्रीम’ (अर्थात मेरा एक सपना है). इसी तरह पाकिस्तान की यात्रा के दौरान मैंने एक सपना देखा है. मेरा सपना है कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक कनफेडरेशन (महासंघ) में शामिल हो जाए. इस महासंघ का स्वरूप यूरोपियन यूनियन के समान होगा अर्थात तीनों देश पूर्ण रूप से स्वतंत्र होंगे, उनके अपने संविधान होंगे, अपनी शासन व्यवस्था होगी, अपनी सेना, न्यायपालिका आदि होगी, उनकी अपनी संसद होगी. परंतु तीनों देशों में आने-जाने के लिए पासपोर्ट और वीजा की आवश्यकता नहीं होगी. यूरोप की तर्ज पर तीनों देशों की मिली-जुली एक संसद होगी, यूरो-डॉलर के समान कॉमन करंसी भी होगी. तीनों के बीच में शांति एवं युद्ध विरोधी संधि होगी.

अखंड भारत उस समय तक संभव नहीं हो सकता जब तक अल्पसंख्यकों की देश के प्रति वफादारी पर शंका करते रहेंगे. जब तक इस तरह की बातें कही जाती रहेंगी कि यदि भाजपा हारती है तो पाकिस्तान में जश्न मनेगा

महासंघ का यह स्वरूप बताने के बाद मैंने छात्र-छात्राओं की राय पूछी. मैंने कहा कि यदि वे मेरी योजना से सहमत हैं तो एक नहीं दोनों हाथों को उठाकर समर्थन करें. यदि नहीं तो एक हाथ उठाकर अपनी असहमति प्रकट करें. कार्यक्रम में करीब 500 छात्र-छात्राएं मौजूद थे. सभी ने एक स्वर से ताली बजाई और प्रस्ताव का स्वागत किया. कुछ उत्साही छात्र-छात्राओं ने यहां तक कह डाला कि तब तो हम ताजमहल को देख सकेंगे.

मैं इस घटना का उल्लेख इसलिए कर रहा हूं कि अखंड भारत के स्थान पर हमें तीनों देशों के महासंघ का सपना देखना चाहिए. आज जो परिस्थितियां हैं उनके चलते न तो पाकिस्तान और न ही बांग्लादेश अखंड भारत के निर्माण के लिए तैयार होंगे. यदि हम तीनों देशों के विलय के बाद बने देश का नाम अखंड भारत रखेंगे तो यह पाकिस्तान और बांग्लादेश को कतई पसंद नहीं आएगा. अखंड भारत से ऐसी बू आएगी कि पाकिस्तान और बांग्लादेश ने अपना अस्तित्व खो दिया है और वे अखंड भारत का हिस्सा बन गए हैं. इसलिए अखंड भारत की बात करने से काम नहीं चलेगा.

अखंड भारत एक ऐसा प्रस्ताव है जो पाकिस्तान और बांग्लादेश के आम आदमी को कतई पसंद नहीं आएगा. हमारे देश के कुछ चिंतकों ने वर्षों पहले स्वीकार कर लिया है कि भारत के भीतर दो राष्ट्र हैं. ऐसे चिंतकों में वीर सावरकर शामिल हैं. इसमें डॉ. मुंजे भी शामिल हैं. इन दोनों चिंतकों ने यह दावा किया था कि भारत में एक नहीं दो राष्ट्र हैं. एक राष्ट्र उनका है जिनकी मातृभूमि और पुण्यभूमि यहीं है अर्थात भारत में उन्हीं को रहने का अधिकार है जिनका जन्म यहां हुआ है और जो उस धर्म को मानते हैं जो यहीं विकसित हुए हैं. इस परिभाषा के अनुसार सिर्फ हिंदू, बुद्ध, जैन और सिख यहां रह सकते हैं, बाकी नहीं. जब तक राष्ट्र की इस परिभाषा को रद्द नहीं किया जाता, तब तक अखंड भारत की कल्पना साकार नहीं हो सकती.

अखंड भारत उस समय तक संभव नहीं हो सकता जब तक हमारे देश के अनेक संगठन अल्पसंख्यकों की देश के प्रति वफादारी पर शंका करते रहेंगे. जब तक इस तरह की बातें कही जाती हैं कि यदि चुनाव में भाजपा हारती है तो पाकिस्तान में जश्न मनेगा. जब तक किसी सीधी-सादी बात करने पर यह कह दिया जाए कि यदि आप ऐसा सोचते हैं तो आप पाकिस्तान चले जाएं, जैसा कि अभी शाहरुख खान और आमिर खान के बारे में कहा गया.

महासंघ के निर्माण के लिए पहली आवश्यकता यह है कि तीनों देशों का आधार धर्म नहीं धर्मनिरपेक्षता हो. इस समय भारत के अलावा बांग्लादेश भी एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जबकि पाकिस्तान एक इस्लामिक प्रजातंत्र है

अखंड भारत उस समय तक कैसे संभव होगा जब तक शिवसेना जैसे संगठन गुलाम अली जैसे महान गायक का कार्यक्रम भारत में नहीं होने देंगे? जब तक हमारे देश में पाकिस्तान के खिलाड़ियों को क्रिकेट नहीं खेलने दिया जाएगा. अखंड भारत की कल्पना कैसे साकार हो सकती है जब तक भारत आने वाले प्रत्येक पाकिस्तानी को हम शंका की नजर से देखते हैं? इसी तरह पाकिस्तान जाने वाले प्रत्येक भारतीय को शंका की नजर से देखा जाता है.

अखंड भारत का सपना देखने के पहले सांस्कृतिक स्तर पर अनेक कदम उठाने चाहिए. जैसे आज भी पाकिस्तान के अखबार हमें पढ़ने को नहीं मिलते, न ही हमारे अखबार पाकिस्तानियों को पढ़ने को मिलते हैं. जब तक इस बात की शिकायतें आती रहेंगी कि पाकिस्तान भारत विरोधी आतंकवादियों की शरणस्थली है, जब तक पाकिस्तान यह आरोप लगाता रहेगा कि उनके देश में होने वाली प्रत्येक हिंसक घटना के पीछे हमारी गुप्तचर एजेंसी ‘रॉ’ का हाथ होता है.

बांग्लादेश नेशनल मेमोरियल 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में मारे गए शहीदों की याद में ढाका में मेमोरियल बना है
बांग्लादेश नेशनल मेमोरियल 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में मारे गए शहीदों की याद में ढाका में मेमोरियल बना है

महासंघ के निर्माण के लिए सबसे पहली आवश्यकता यह है कि तीनों देशों का आधार धर्म नहीं धर्मनिरपेक्षता हो. इस समय भारत के अलावा बांग्लादेश भी एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जबकि पाकिस्तान के संविधान के अनुसार वह एक इस्लामिक प्रजातंत्र है. महासंघ के निर्माण में धर्मनिरपेक्षता सबसे अधिक सहायक होगी. राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष होने का अर्थ यह नहीं है कि वहां के निवासी अपने धर्मों को त्याग दें. धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का अर्थ है राज्य सत्ता का कोई धर्म नहीं होना और सभी धर्मों को राज्य सत्ता द्वारा संरक्षण मिलना.

पाकिस्तान भ्रमण के दौरान मैंने यह महसूस किया कि वहां के लोग विशेषकर युवक पाकिस्तान को धर्मनिरपेक्ष देश बनाने के लिए लगभग तैयार हैं. वहां के समाचारपत्रों में आए दिन ‘पाकिस्तान क्यों नहीं बने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र’ शीर्षक से लेख छपते हैं. वहां के युवक यह महसूस करते हैं कि धर्म आधारित पाकिस्तान ने विकास के रास्तों में बड़े रोड़े अटकाए हैं. यहां यह भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े अन्य संगठन धर्मनिरपेक्षता में आस्था नहीं रखते हैं. वे धर्मनिरपेक्षता को एक ढोंग मानते हैं. उनकी सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना है. इस विचार के चलते मैं श्री राम माधव जी से पूछना चाहूंगा कि क्या धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को नहीं मानते हुए अखंड भारत का निर्माण संभव है? अखंड भारत तो क्या महासंघ बनने की भी पहली शर्त धर्मनिरपेक्षता ही होगी.

अखंड भारत के औचित्य को सही ठहराते हुए यह कहा गया है कि जब जर्मनी एक हो सकता है, जब वियतनाम एक हो सकता है तो भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक क्यों नहीं हो सकते? 

इसलिए यह स्पष्ट है कि आज व्याप्त परिस्थितियों के चलते अखंड भारत का सपना नहीं देखा जा सकता. अखंड भारत के औचित्य को सही ठहराते हुए यह कहा गया है कि जब जर्मनी एक हो सकता है, जब वियतनाम एक हो सकता है तो भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक क्यों नहीं हो सकते? जर्मनी और वियतनाम के उदाहरण से अखंड भारत की वकालत नहीं की जा सकती. जिन परिस्थितियों में वियतनाम और जर्मनी बांटे गए थे, वे पूरी तरह भिन्न थीं. इसके अतिरिक्त जब अखंड भारत की बात की जाती है तो बांग्लादेश और पाकिस्तान के आम नागरिकों के मन में यह शंका होती है कि वास्तव में यह योजना पाकिस्तान और बांग्लादेश को समाप्त करने की योजना तो नहीं है. इसलिए प्रयास महासंघ बनाने के लिए किए जाएं. इसके लिए वातावरण बनाने का प्रयास धीरे-धीरे किया जाना चाहिए. महासंघ बनने से दोनों देशों में रक्षा पर होने वाले व्यय में भारी कटौती होगी. कटौती से बचे आर्थिक साधनों का उपयोग गरीबी, भुखमरी, चिकित्सा और शिक्षा पर किया जा सकेगा. ऐसा करने से तीनों देशों में भारी -भरकम प्रगति होगी.

यहां यह उल्लेख प्रासंगिक होगा कि पूर्व में भी भारत-पाकिस्तान (जब पाकिस्तान एक था) और कश्मीर को मिलाकर एक महासंघ बनाने की बात की गई थी, उस समय जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे और फील्ड मार्शल अयूब पाकिस्तान के तानाशाह थे. परंतु बात आगे नहीं बढ़ी. हमारे देश के भी अनेक नेताओं ने महासंघ का सपना देखा है, इनमें विशेषकर महान चिंतक और समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया शामिल हैं. उस समय जो बात अधूरी रह गई थी उसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी हम सब पर है. तीनों देशों में इस तरह के समूह संगठित किए जाएं जो महासंघ के विचार को साकार करने में मददगार हो सकें.

(लेखक पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता हैं)