गाजियाबाद के गायब बच्चे

निशांत गोयल
निशांत गोयल

गाजियाबाद के विजयनगर में रहनेवाली रीना का नौ साल का बेटा मोहित सितंबर 2009 में अचानक ही घर से गायब हो गया. बेटे को तलाशने की सारी कोशिशें नाकाम होने की वजह से रीना मानसिक संतुलन खो बैठी और मोहित के पिता राजकिशोर ने खुद को शराब में डुबो दिया. यह केवल रीना और राजकिशोर की ही कहानी नहीं है. अपने बच्चों से दूर हो चुके सैकड़ों परिवारों में हर चेहरे पर सिर्फ मायूसी थी, लेकिन अब इनकी खुशियां लौट आई हैं. गाजियाबाद पुलिस ने ‘ऑपरेशन स्माइल’ को सार्थक बनाते हुए इन परिवारों की मुस्कुराहट वापस लौटा दी है.

लगातार बच्चों के गायब होने के मामलों से परेशान गाजियाबाद पुलिस ने इस साल 24 सितंबर से ऑपरेशन स्माइल की शुरुआत की थी. इस अभियान के तहत इसने ढाई महीने के भीतर 227 बच्चों को खोज निकाला है. 165 परिवारों की खुशियां लौट आई हैं और जिन बच्चों के परिवार नहीं मिल पाए हैं, उनको परिवारों से संपर्क होने तक अलग-अलग आश्रय स्थलों में रखा गया है.

घर लौटे इन बच्चों की कहानियों से खुलासा होता है कि देश में बच्चों को अवैध कामों में लगाकर पैसे कमानेवाले गिरोह का बड़ा जाल है. सितंबर 2009 में मोहित को पिता ने पढ़ाई न करने और फिल्म देखने की वजह से डांटा था, जिससे गुस्सा होकर मोहित ने घर छोड़ दिया और मुम्बई जाने का फैसला कर लिया. मोहित ने बताया, ‘पिता की डांट के बाद मैं घर से निकला और रेलवे स्टेशन जाकर ट्रेन में बैठ गया और जयपुर पहुंच गया. वहां मुझे सलमा नाम की एक आंटी मिली, जिसने मुझे खाना खिलाया और मेरा नाम बदलकर जावेद रख दिया.’ अगले दिन से उसने मोहित को स्टेशन पर भीख मांगने के काम में लगा दिया. जिस दिन भी वह 400 रुपये से कम मांगकर लाता, उस दिन उसे भूखा सोना पड़ता था और मार भी पड़ती थी. जावेद बनकर भीख मांगते हुए मोहित अपनी पहचान ही भूलने लगा था. लेकिन एक दिन जब उसने स्टेशन पर कुछ लोगों को गाजियाबाद के बारे में बात करते सुना, तो उसे लगा कि अब वह अपने घर वापस पहुंच सकता है.

वह 4 अक्टूबर का दिन था जब दो-तीन पुलिसवाले स्टेशन पर बात कर रहे थे. अगले दिन उसने देखा कि उनमें से ही एक पुलिसवाला सादी वर्दी में स्टेशन पर घूम रहा था. मोहित बताता है, ‘मैं दौड़कर उनके पास गया और बताया कि मैं भी गाजियाबाद का हूं. इसके बाद वह पुलिसवाले अंकल मुझे अपने साथ बड़ी मुश्किल से वापस लाए क्योंकि इतने सालों से मुझसे भीख मंगवा रही आंटी ने वहां पर हंगामा कर दिया.’

मोहित को वापस लाकर उसके मां-बाप से मिलवानेवाले सब इंस्पेक्टर माणिकचंद वर्मा ने बताया, ‘इस बच्चे की कहानी सुनने के बाद हम तय कर चुके थे कि किसी भी तरह उसे उसके घर पहुंचाना है. हम मोहित को जयपुर से लेकर गाजियाबाद आए और ईद के मुबारक दिन मोहित अपने परिवार के पास था.’

5 साल बाद बेटे को देखकर पहले तो उसके माता-पिता उसे पहचान ही नहीं पाए. उन्हें भरोसा ही नहीं हुआ कि उनके सामने उनका बेटा खड़ा है. पुलिस पर से भरोसा खो चुके राजकिशोर का कहना है कि उनके बेटे को सकुशल उनके पास पहुंचाकर पुलिस ने उनकी धारणा बदल दी है.

ऑपरेशन स्माइल के नोडल ऑफिसर डीएसपी कुमार रणविजय सिंह ने तहलका को बताया कि इस ऑपरेशन की भूमिका बाल मजदूरी के खिलाफ एक दिन के अभियान के बाद बनी. गाजियाबाद के एसएसपी धर्मेंद्र सिंह के नेतृत्व में 14 सितंबर को पुलिस ने 51 बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त करवाया था। सिंह बताते हैं, ‘इस अभियान के बाद हम लोगों ने ऑपरेशन स्माइल की रूपरेखा तैयार की. शुरुआत में हमने सोचा कि अगर हम जनपद से गुमशुदा हुए एक भी बच्चे को ढूंढ निकालते हैं तो हमारा अभियान सफल होगा.’

निशांत गोयल
निशांत गोयल

1 COMMENT

  1. ये तो बहुत ही आचा प्रयाश है मैं सभी पुलिस वालों को इस बात के लिए बधाई देता हूँ जिन्होंने इस नेक काम को सफल बनाया तथा बिछुड़े बच्चो को माँ बाप से milwaya

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here