‘मधेसियों पर संकट आता है तो वे एक बार भारत को और दूसरी बार भगवान को याद करते हैं’

मधेसियों का आरोप है कि सत्ता पर नियंत्रण पहाड़ी लोगों का है. नाराजगी इसलिए भी बढ़ी क्योंकि चार प्रमुख राजनीतिक दल इस बात पर सहमत हुए कि संघीय नेपाल में छह प्रदेश होंगे. मधेसी चाहते हैं कि तराई के सारे जिलों को मिलाकर एक प्रदेश या दो प्रदेश बनाए जाएं और उनको पहाड़ के जिलों से अलग रखा जाए. इस प्रस्ताव को प्रमुख दलों ने मानने से इंकार कर दिया. इसके बाद से मधेश इलाके में पिछले एक महीने से हिंसा का दौर जारी है. विवाद इसलिए भी है क्योंकि अधिकांश संसाधन मधेश इलाके में ही हैं. फिलहाल अब तक की हिंसा में तकरीबन 40 लोग मारे जा चुके हैं.

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नेपाल में इतनी अशांति है. आए दिन कहीं न कहीं विवाद, हिंसा और हत्या की खबरें मिल रही हैं. ये कब तक चलेगा?

नेपाल में प्रांतों के बंटवारे और उनकी संख्या पर विवाद है. स्वतंत्र इलाके की लड़ाई है. तराई इलाके में रहने वाले मधेसी लड़ाई लड़ रहे हैं. शांतिपूर्ण लड़ाई को दबाने के लिए भी सरकार हिंसा का सहारा ले रही है. और आप तो जानते ही हैं कि न्यूटन का तीसरा नियम है कि हर क्रिया की बराबर प्रतिक्रिया होती है.

प्रांत के विवाद का समाधान तो नेपाल की संविधान सभा निकाल ही रही है. प्रांतों की संख्या छह से सात तक बढ़ाने पर बात चली ही है.

आपको मालूम होगा कि पहले 18 प्रांतों का मामला था, फिर छह हुआ और फिर सात. वे खुद तो तय नहीं कर पा रहे कि कितने प्रांत होने चाहिए.

प्रांतों की संख्या को लेकर मधेसियों के इलाके में ही इस कदर अशांति और हिंसा क्यों? प्रांतों की संख्या के घटने-बढ़ने से फर्क तो सब पर पड़ेगा.

क्योंकि अस्तित्व, अस्मिता और पहचान का संकट और सवाल मधेसियों के ही सामने है, दूसरे किसी समुदाय के सामने नहीं.

मधेसियों को पहचान, अस्मिता, अस्तित्व के संकट की बात अब क्यों याद आ रही है? क्या राजतंत्र के समय मधेसियों के लिए इस तरह की चुनौतियां नहीं थीं? क्या राजतंत्र में मधेसियों को ज्यादा स्वायत्तता और स्वतंत्रता थी?

राजतंत्र में तो कुछ भी नहीं था. उसमें तो मधेसी और उत्पीड़न झेलते थे. इसीलिए तो जब पहाड़ी लोगों ने राजतंत्र का विरोध किया तो मधेसियों ने भी साथ दिया. राजतंत्र के विरोध में तो मधेसियों का इलाका ही केंद्र बना था.

अभी क्या स्थिति है?

चारों ओर तनाव है. कई मधेसी इलाके में सेना उतर गई है. थारूओं का एक बड़ा इलाका सेना के हवाले है. महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे हैं. लाश तक का पता नहीं चलने दिया जा रहा है.

मधेसियों की यह लड़ाई एक तरीके से सरकार के बहाने पहाड़वालों के वर्चस्व के खिलाफ भी है. नेपाल का एक और बड़ा समूह  ‘एथनिक ग्रुप’  (जातीय समूह) का है, जो पहाड़वालों के खिलाफ माना जाता है. वह इस आंदोलन में मधेसियों का साथ दे रहा है या नहीं?

पहाड़ के लोगों और एथनिक ग्रुप के बीच वर्चस्व की लड़ाई अपनी जगह है लेकिन तराई में रहने वाले मधेसियों के खिलाफ दोनों एकजुट हैं. पहाड़ पर रहने वाले और तराई में रहने वाले बाशिंदों के बीच लड़ाई है. दोनों की नागरिकता में ही फर्क है. तराई वाले नेपाल में दोयम दर्जे के नागरिक माने जाते हैं. तराई वाले कुछ भी करेंगे तो आवाज उठेगी कि भारतीय हैं, इसलिए ऐसा कर रहे हैं.

पहाड़ पर रहने वालों का वर्चस्व है तो एथनिक ग्रुप मधेसियों की बजाय उनके करीब क्यों है?

सिर्फ पहाड़ वालों का वर्चस्व है, ऐसा नहीं कह सकते. कुछ जातीय समूहों का भी वर्चस्व है. ये शुरू से ही मधेसियों के विरोधी रहे हैं. अभी तो डाॅ. हसमुख जातीय समूह से ही हैं, जो प्रमुख हैं. इस समूह वाले मांग करते रहे हैं कि मधेसी भारतीय हैं और उन्हें नेपाल की नागरिकता नहीं बल्कि यहां रहने के लिए वक्फ परमिट दिया जाए.

बड़ी अजीब बात है कि मधेसियों की इस लड़ाई में वे खुद ही अपने एजेंडे को लेकर बिखरे हुए हैं. कोई कह रहा है कि हमें अलग राज्य चाहिए, जो ज्यादा सशक्त, स्वायत्त और ज्यादा अधिकारों से लैस हो तो कोई अलग देश की ही मांग कर रहा है.

मुख्य मांगें दो किस्म की हैं. एक तो अलग प्रांतों की और दूसरा स्वतंत्र तराई देश की. यह मांगें भी नई नहीं, बल्कि 1950 में भारत-नेपाल संधि में निहित धारा पांच के आधार पर है. यह आज की नहीं, बल्कि लंबी लड़ाई है, जिसका प्रस्फुटन समय-समय पर होता रहा है. अब नया संविधान लागू होने वाला है, इस वजह से यह विरोध तेज हो गया है.

आप लोग स्वतंत्र देश के पक्षधर हैं, जिसके लिए हथियारबंद लड़ाई भी लड़ रहे हैं. इस विश्व में कितने देश बनेंगे. नेपाल तो पहले ही एक छोटा-सा देश है?

नेपाल 1,47,181 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसका 25 प्रतिशत हिस्सा तराई मधेश में है. करीब डेढ़ करोड़ आबादी तराई मधेसियों की है. इतने में एक अलग देश क्यों नहीं बन सकता? और रही बात कितने बड़े देश की तो भूटान, मालदीव या यूरोप के कई देश तो इससे भी छोटे हैं और उनका अपना अस्तित्व है या नहीं, बताइए. देश या स्वायत्त क्षेत्र की बात अलग, पहले नेपाल की सरकार बातचीत को तैयार तो हो. वह विचार-विमर्श का दौर शुरू करे. इसके लिए तो वह तैयार ही नजर नहीं आ रही है.

सवाल ये भी है कि मधेसी खुद इतने बिखराव के शिकार क्यों हैं और मधेसियों की इस लड़ाई में इतनी फूट क्यों हैं? आप लोग पहले आपस में ही समन्वय और एका क्यों नहीं बना पा रहे हैं?

ब्रिटिश काल में भारतीय जब अंग्रेजों से लड़ाई लड़ रहे थे तब क्या सभी भारतीय अंग्रेजों के खिलाफ थे. बहुतेरे तो ऐसे थे जो अंग्रेजों के यहां नौकरी ही नहीं बल्कि भारतीयों पर अत्याचार करने में भी उनका सहयोग करते थे. ऐसे लोगों ने अंग्रेजों का भरपूर साथ दिया. ऐसा तो होता रहा है. आम युवा व मधेसियों की इच्छा क्या है, यह सबसे महत्वपूर्ण है. आप सर्वे करवा लीजिए. नेपाल के अधिकांश लोग स्वतंत्र तराई के पक्ष में नजर आएंगे.

मधेसियों की बातें नेपाल में सुनी नहीं जा रहीं, सरकार इस मामले काे अपने तरीके से निपटा रही है. ऐसे में आगे क्या होगा?

मधेसियों की बातें नहीं सुनी गईं तो स्थितियां दिन-ब-दिन बिगड़ेंगी और नियंत्रण हो जाएंगी.

आपने एक जगह कहा कि मधेसी शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं और सरकार हिंसा पर उतारू है. लेकिन कुछ दिनों पहले एसपी समेत कई जवानों की हत्या हुई. आरोप है कि उनकी हत्या मधेसियों ने की. ऐसे में आप मधेसियों के इस आंदोलन को किस तरह से शांतिपूर्ण कह सकते हैं?

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