दर्द की दोहरी मार

hathiyargggg

दिल्ली में 10 से 16 अक्टूबर 2015 के बीच तीन बच्चियों के साथ बलात्कार किया गया. इनमें से एक अपने घर के बाहर खेल रही थी. थोड़ी देर के लिए बिजली गई और बच्ची गायब थी. तीन घंटे बाद वह एक उद्यान में खून से लथपथ पाई गई. बच्चों के साथ लगातार हो रहे अपराधों ने हमारे समाज के सभ्य होने पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है.

देश में हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि बच्चे बाहर के साथ घर में भी अब सुरक्षित नहीं रह गए हैं. देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली में होने वाली घटनाओं का तो पता चल जाता है, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में होने वाली ऐसी घटनाओं की न तो रिपोर्ट हो पाती है और न ही ऐसे पीड़ितों की कोई सुनने वाला होता है. उन्हें न्याय के लिए या तो लंबा इंतजार करना पड़ता है या फिर उन्हें न्याय मिल ही नहीं पाता. बलात्कार के संदर्भ में बात करें तो अधिकतर समय तो मामले दर्ज ही नहीं होते, अगर हो भी जाएं तो न्याय की उम्मीद बिन पतवार की नाव जैसी होती है, जो देर-सवेर डूब ही जाती है. बलात्कार की पीड़ा न्याय की आस से कम नहीं होती पर यदि मामला बलात्कार के परिणामस्वरूप ठहरे गर्भ का हो, तब ये पीड़ा दोगुनी जरूर हो जाती है.

ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के एक गांव माझा में सामने आया. कुछ महीनों पहले 14 साल की शीलू (बदला हुआ नाम) के पिता की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उसकी मां राधा ने जगत गोंड नाम के व्यक्ति से शादी कर ली. राधा पत्थर खदानों में मजदूरी करने जाती थी. उसके मजदूरी पर निकल जाने के बाद सौतेला पिता जगत गोंड डरा धमकाकर शीलू के साथ छेड़खानी किया करता था. डर के कारण वह मां से कुछ कह नहीं पा रही थी. छेड़खानी होने पर अपने स्तर पर तो वह उसका विरोध करती रही, मगर उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि यह बात अपनी मां को बता सके. इसी बात का फायदा उठाकर जगत ने उसके साथ बलात्कार करना शुरू कर दिया था, जिससे शीलू गर्भवती हो गई. तब जाकर उसकी मां को सच का पता चला और मामले में केस दर्ज हो सका.

राजधानी होने के नाते दिल्ली में बच्चों के खिलाफ होने वाली घटनाओं का तो पता चल जाता है, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में होने वाली अधिकांश घटनाओं की न तो रिपोर्ट हो पाती है और न ही कोई सुनवाई

इसके बावजूद शीलू की मुसीबतों का अंत नहीं हुआ. जगत के जेल चले जाने के बाद मां भी नहीं समझ पाई कि वह क्या करे! ऐसे मामलों में सरकारी सहायता से ज्यादा समाज के सहयोग की जरूरत होती है, जो सामान्यतया कभी नहीं मिलता. इसी के चलते शीलू को पहले पन्ना से कटनी बाल संरक्षण गृह भेजा गया. डेढ़ महीने बाद जब प्रसव की तारीख नजदीक आने लगी तो उसे जबलपुर भेज दिया गया. कहीं भी कोई शीलू की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था. मामला उच्च स्तर तक गया तो उसे वापस कटनी भेज दिया गया. अभी वह कटनी बाल संरक्षण गृह में ही रह रही है. अब उस बेचारी को यह समझ नहीं आ रहा है कि वह वास्तव में है कौन और आने वाले दिनों में उसके साथ क्या होने वाला है?

ऐसे ही मध्य प्रदेश के ही शिवपुरी जिले के सड गांव में रहने वाली छठवीं कक्षा की छात्रा गीतू (बदला हुआ नाम) को 18 सितंबर 2015 को अचानक पेट में तेज दर्द उठा. डॉक्टरी चेकअप में पता चला कि वह आठ महीने की गर्भवती है. तब गीतू ने बताया कि गांव के ही बंटी रावत और उसके भाई ने गीतू के साथ बलात्कार किया और ये बात किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी भी दी, जिस वजह से उसने किसी को कुछ भी नहीं बताया और बंटी बार-बार उसके साथ बलात्कार करता रहा. 8 अक्टूबर 2015 को ग्वालियर के जयारोग्य अस्पताल में गीतू ने एक बच्ची को जन्म दिया. रोते हुए वह बस एक ही बात दोहरा रही थी, ‘मैं मां नहीं बनना चाहती.’

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