
निर्देशक» कुणाल देशमुख
लेखक » परवेज शेख, नरेंद्र कुमार, संजय मासूम
कलाकार » इमरान हाशमी, केके मेनन, हुमैमा मलिक, परेश रावल, दीपक तिजोरी
एक कालखण्ड में समय का इक टुकड़ा था जिसका नाम इमरान-खण्ड था. इसे सलमान-खण्ड से प्रेरित बताया जाता है और यह दौरा-ए-फिल्में (दौर-ए-फिल्में नहीं) ‘शंघाई’ से पहले की बात है. राजा नटवरलाल उसी कालखण्ड की फिल्म है, बस खंडित है.
उस कालखण्ड में इमरान हाशमी एक जैसी अनेकों फिल्मों में सिर्फ कपड़े बदल-बदल कर नजर आते थे और सैकड़ों चाहने वाले फैंस के लिए वे उनके सलमान थे. हर फिल्म में एक ही रूप में दर्शन देने की सलमान वाली प्रतिभा रखने वाला हीरो जो किसर भी है और चलते वक्त सलमान की तरह ही कंधे अकड़ाकर चलने के अभिनय में पारंगत भी. सलमान की तरह ही हाशमी ने भी उन्हीं चौड़े कंधों पर कई फिल्में अकेले उठाईं. ये कंधे कभी निढाल नहीं होते थे. चलते वक्त, बैठे वक्त, दाल-चावल खाते वक्त, लेटे वक्त या सोते वक्त, ये चौड़े कंधे और उन कंधों से जुड़ी पीठ की खींचकर चौड़ी की गई अकड़ सूत-भर भी ढीली नहीं होती थी. सड़कों पर फिर उस खास अंदाज (जिसमें बाकी शरीर के सभी हिस्सों को मन-माफिक हिलने-डुलने की इजाजत हो, लेकिन अंगार भी गिरे तब भी कंधे को ढीला छोड़ना कुफ्र हो) में अकड़कर चलने वालों की तादात में बढ़ोतरी करने में हाशमी का भी अहम योगदान रहा. किसी सामान्य समय में, इसे कंधे का लकवा कहा जाता लेकिन सलमान-हाशमी युग में यह हीरो जैसा हो जाना है.