
नेपाल में आए भूकंप से राजधानी काठमांडू के बसंतपुर इलाके काे पूरी तरह से तबाह करके रख दिया है. आपदाओं के समय आस्था ही मानव का सहारा बनती है. राजधानी के दर्दनाक मंजर काे एक पत्रकार ने कैमरे में कैद करने के साथ कलमबद्घ भी किया
25 अप्रैल को नेपाल और उसके आसपास के इलाकों में भूकंप के जबरदस्त झटके महसूस किए गए. इसी दिन मैं और मेरे साथी रिपोर्टर नेपाल के लिए निकल गए. हम पटना से रक्सौल होते हुए बीरगंज पहुंचे और फिर वहां से पालुंगवाले रास्ते से आगे बढ़े. लामीटाडा से पालुंग की तरफ बढ़ते ही हमारे सामने भूकंप से हुई त्रासदी का मंजर साफ होने लगा था. समझ में आने लगा था कि आगे का मंजर और दर्दनाक होनेवाला है. लामीटाडा, महावीरे और अघोर बाजार इलाकों से होकर गुजरनेवाले शायद हम पहले पत्रकार थे, ऐसा इन इलाकों के प्रभावित लोगों ने बताया. सब बर्बाद हो चुका था. घर जमींदोज हो चुके थे और उनके मलबों के पास बैठकर लोग विलाप कर रहे थे. वहीं कुछ लोगों की जिंदगियां उनके घरों की तरह ही खत्म हो गईं.
अब तक बर्बादी का मंजर हमारी आंखों के सामने साफ हो चुका था. हम समझ चुके थे कि इस भूकंप ने नेपाल के बहुत बड़े हिस्से को तबाह कर दिया है. एक बात और, जब हम उन इलाकों से होते हुए आगे बढ़ रहे थे तब भी झटके महसूस हो रहे थे. हम समुद्र तल से करीब 1200 मीटर की ऊंचाई पर थे. तभी एक अधेड़ नेपाली हाथ हिलाता हुआ हमारी गाड़ी के सामने आ गया. नेपाली भाषा में कुछ बोलते हुए वो हमारी गाड़ी के बोनट पर चढ़ गया. आखिरकार हम उसके इशारे को समझ पाए. गाड़ी रोकी और नीचे उतरे. हमने पाया कि धरती में कंपन हो रही है. वो व्यक्ति शायद हमें इसी बारे में बता रहा था. तभी मैंने देखा कि थोड़ी दूर पर एक मकान धीरे-धीरे धरकते हुए पूरा का पूरा ढह गया.
Prasant ji, its time for futuristic planning to undo our past. nice piece of article – reflective !