स्नातक की पढ़ाई के दौरान एक न्यूज चैनल में इंटर्नशिप करने दिल्ली आया था. साल 2013 के दिसंबर का सर्द महीना था. मेरा दोस्त नोएडा सेक्टर 12 में रहता था. उसने कह रखा था एक महीने की ही बात है मेरे यहां रह लेना. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन उतरकर उसे फोन किया और उसके यहां पहुंच गया. सुबह तैयार होकर दफ्तर के लिए निकल गया. करीब सात दिन हुए होंगे. दफ्तर से वापस आकर कमरे पर सो रहा था कि किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई. दरवाजे पर दो आदमी कुछ कागजात लेकर खड़े थे. इससे पहले मैं उनसे कुछ पूछ पाता उन्होंने एक साथ तीन-चार सवाल दाग दिए ‘कौन हो तुम? तुम तो यहां नहीं रहते? यहां जो रहता है वह कहां गया? आईकार्ड दिखाओ.’
मैं घबरा गया और सोचा ये क्या बला है. खैर मैंने उन्हें अपना नाम बताया और उनसे बैठने को कहा फिर दोस्त को फोन करके बुलाया. दोस्त ने आने के बाद मुझे अंदर जाने को कहा और उन लोग से बातचीत करने लगा. मैं फिर से सो गया. उठने के बाद दोस्त से पूछा कि वो लोग कौन थे और क्यों आए थे? उसने बताया, ‘वो ब्रोकर थे जिन्होंने ये मकान किराये पर दिलवाया है. ये पता करने आए थे कि यहां कोई और रहने आया है क्या, शायद मकान मालकिन ने उन्हें बता दिया है कि कोई और यहां रह रहा है. मैंने उन्हें बताया मेरा भाई है. कुछ दिनों में चला जाएगा पर वे माने ही नहीं, उनका कहना है तुम यहां नहीं रह सकते हो.’
मेरा नाम सुनकर न तो कोई ब्रोकर मकान देता, न मकान मालिक. कुछ की शर्त यह थी कि साथ में कोई हिंदू हो तब ही मकान देंगे
मैंने कहा कि उनसे कहो कि एक महीने का किराया ज्यादा ले लें. उसने कहा ठीक है कल ब्रोकर से मिलकर बात करते हैं. दूसरे दिन हम दोनों ब्रोकर से मिलने गए. बातचीत हुई हमने कहा कि एक महीने का किराया कुछ बढ़ाकर ले लो, उसमें क्या हर्ज है? ब्रोकर ने कहा हमें कोई हर्ज नहीं पर मकान मालकिन को है, वो भी तुमसे. मैंने मजाक में कहा, ‘क्यूं मैं कोई चोर हूं क्या?’ उन्होंने अजीब से लहजे में कहा, ‘नहीं, फिर भी मकान मालकिन को तुमसे दिक्कत है और उन्होंने मना किया है, इसलिए बोल रहा हूं कि तुम अपने इलाके में चले जाओ.’ मैंने पूछा अपना इलाका मतलब? पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. मैंने कहा ठीक है मैं सीधा मकान मालकिन से ही बात करता हूं. तब उन्होंनेे कहा, ‘देखो मकान मालकिन अपने घर में किसी मुसलमान को नहीं रखना चाहती और हमें भी मुसलमानों का रेंट एग्रीमेंट बनवाने में दिक्कत आती है. इसलिए यहां मुसलमानों को किराये पर मकान नहीं मिलते. वैसे मुझे आप लोगों से कोई दिक्कत नहीं है पर मैं मजबूर हूं. किसी मुस्लिम इलाके में मकान ले लो आसानी से मिल जाएगा.’
यह सब सुनकर अजीब-सा लगा. जिंदगी में पहली दफा ऐसा महसूस हुआ मानो मैं औरों से अलग हूं. चूंकि तब तक मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था इसलिए शायद मुझे ऐसा लग रहा था वरना आए दिन ये सब पढ़ने को मिल ही जाता है. जैसे ही हम वापस घर पहुंचे, मकान मालकिन दरवाजे पर खड़ी मिलीं, मैंने सोचा बात करके देखता हूं पर मेरे बोलने से पहले ही उन्होंने पूछ लिया कि कब जा रहे हो यहां से? मैंने कुछ भी बोलना मुनासिब न समझा और यह बोलकर ऊपर चला गया कि एक-दो दिन में चला जाऊंगा. उस दिन मकान मालकिन ने मेरे दोस्त की अच्छी तरह से खबर ली और मुझे जल्द भगाने को कहा.
खैर, दूसरे ही दिन से मैंने कमरा ढूंढना शुरू कर दिया पर वहां कमरा मिलना मुश्किल था. मेरा नाम सुनकर न तो कोई ब्रोकर मकान दे रहा था, न ही कोई मकान मालिक. उनमें से कुछ की शर्त यह थी कि साथ में कोई हिंदू हो तब ही मकान दिया जाएगा. मकान ढूंढने के दौरान मैं मकान मालकिन से छिपकर दोस्त के यहां आता था. जब भी आता दोस्त को फोन कर पूछ लेता था कि मकान मालकिन गेट पर तो नहीं है. इशारा मिलते ही मैं चुपके से अंदर चला जाता. फिर मैंने आसान रास्ता अख्तियार किया और जामिया नगर आ गया. यहां किसी को मेरे नाम की परवाह भी नहीं थी. शायद मुझे ‘अपने इलाके’ में छत मिल गई.
Yeh to tum jaante hi ho bhai jaan ke akhir Musalmano ko kyon har jagah aise hi dekha jata hai sari duniya mai Musalmano ne aantak macha rakha hai sab Musalman ek jese hi hote hain kuran padne wale aur kuran mai kuchh bhi sahi nahi likha
Tum sahi kah rahe ho iska jimmedar kudh musalman hi h.
Dil ko chhune wali story hai, hm din rat ye kahte hai ki, neta jatiwad karte hai, lekin yaha to kuchh or hi baat.
zaruri hai ki log apni mansikta ko badlen.