‘साई पूजा सनातन धर्म को अपमानित करने का षडयंत्र है’

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स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती. फोटो:विकास कुमार

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का साई बाबा की आराधना से विरोध क्यों है?
धर्म नियम और परंपराओं से संचालित होता है. हर धर्म में कुछ परंपराएं होती हैं, कुछ वर्जनाएं होती हैं, कुछ प्रतिबंध होते हैं और कुछ चीजों को करने की इजाजत होती है. बीते कुछ समय के दौरान हमने देखा है कि साई को हमारे मंदिरों में हर मान्यता को झुठला कर स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है. साई हमारे देवताओं के समकक्ष नहीं रखे जा सकते. हमारे आराध्यों को नीचा दिखाने की कोशिश चल रही है. वैदिक मंत्रों को प्रदूषित किया जा रहा है. यह भ्रम पैदा किया जा रहा है कि साईं भी हमारे अवतार हैं. हमारा विरोध इसी झूठ से है.

जब लोग स्वयं साई की पूजा कर रहे हैं तो आप उन्हें रोक कैसे सकते हैं? हमारे देश का संविधान सबको अपनी श्रद्धा के मुताबिक पूजा-पाठ की छूट देता है.
जो धर्म की रक्षा करता है उसके प्रति श्रद्धा होती है. ऐसे व्यक्ति की पूजा करना भी न्यायोचित है. लेकिन साई ने कभी भी धर्म की रक्षा नहीं की है. आपत्ति यह है कि हमारे मंदिरों में साई की प्रतिमा लगाकर उन्हें ओम साईराम कहा जा रहा है. ऐसे-ऐसे चित्र प्रसारित किए जा रहे हैं जिनमें साई को विराट स्वरूप धारण किए हुए दिखाया गया है.

विराट स्वरूप सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण ने धारण किया था. इसी तरह क्षीर सागर में भगवान विष्णु की माता लक्ष्मी के साथ विराजमान होने की तस्वीरें हैं. हमने देखा कि भगवान विष्णु की जगह साई को क्षीर सागर में लेटे हुए दिखाया जा रहा है. यह हमें स्वीकार्य नहीं है. जो लोग साई की पूजा करना चाहते हैं वे शौक से करें. पर हमारी पद्धतियों से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए.

कहा जा रहा है कि साई की बढ़ती लोकप्रियता से घबरा कर शंकराचार्य साई का विरोध कर रहे हैं.
जो लोग ऐसी बातें कर रहे हैं उन्हें गुरुदेव की बात ठीक से समझ नहीं आई है. हमारे भीतर किसी तरह की कोई असुरक्षा नहीं है. अगर साई की पूजा लोग स्वेच्छा से करेंगे तो हम उन्हें रोकने नहीं जाएंगे. लेकिन हमारी वैदिक पद्धितियों की आड़ लेकर उन्हें स्थापित करने की कोशिश होगी तो हम जरूर विरोध करेंगे.

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