हिंदू धर्म पर आधारित पुस्तकें प्रकाशित करने वाले विश्वप्रसिद्ध संस्थान गीताप्रेस में कर्मचारियों और प्रबंधन में चल रही खींचतान ने एक बार फिर बवाल और हंगामे का रूप ले लिया है. हालांकि इस बार बवाल की तीव्रता इतनी ज्यादा थी कि इस प्रकाशन संस्था के बंद होने की अफवाह उड़ गई, जिसने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं. सोशल मीडिया में गीताप्रेस को बचाने की मुहिम चल पड़ी. इतना ही नहीं अब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गोरखपुर के सांसद आदित्यनाथ और विधायक राधामोहन दास अग्रवाल से गीताप्रेस को बचाने की अपील होने लगी है.
जिओ (राजाज्ञा) के अनुसार न्यूनतम वेतनमान लागू करने, वेतन विसंगति, भत्ता और इंक्रीमेंट देने की मांग को लेकर कर्मचारियों के आंदोलन ने पिछले साल तीन दिसंबर को तूल पकड़ा था. अपनी मांगों को लेकर बीते साल कर्मचारियों ने गोरखपुर के दूसरे मजदूर संगठनों के साथ जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया था. उस वक्त जिलाधिकारी ने आश्वासन देकर कर्मचारियों को शांत करा दिया था. हालांकि बाद में इस प्रदर्शन के कारण कुछ कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया था, जिसे बाद में बातचीत के आधार पर वापस ले लिया गया. उपश्रमायुक्त के यहां मामले की कई बार सुनवाई भी हो चुकी है मगर फिलहाल कोई ठोस हल नहीं निकल पाया है. अब तक सिर्फ प्रबंधन आश्वासन देकर ही काम चला रहा है.
कर्मचारियों और प्रबंधन के बीच का यह विवाद कई साल पुराना है. मांगों के प्रति प्रबंधन के लचर रवैये ने बीते सात अगस्त को इस विवाद को फिर से ताजा कर दिया. समझौते के तहत प्रबंधन द्वारा इस साल जुलाई से तीन स्तर के कर्मचारियों- अकुशल, अर्द्धकुशल व कुशल को क्रमश: 600, 750 व 900 रुपये की वेतन वृद्धि दी जानी थी. कर्मचारी पिछले सभी विवाद समाप्त कर दें और पांच वर्ष तक कोई नई मांग न रखें, इस शर्त पर प्रबंधन ने वेतन वृद्धि लागू करने की सहमति जताई थी. इस शर्त के बाद कर्मचारियों ने सात अगस्त को सहायक प्रबंधक मेघ सिंह चौहान को धक्के देकर गेट से बाहर कर दिया. अगले दिन यानी आठ अगस्त को सहायक प्रबंधक से हाथापाई और मारपीट के आरोप में 17 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया. इनमें 12 स्थायी और पांच अस्थायी कर्मचारी हैं. इसके बाद से ही कर्मचारी हड़ताल शुरू कर दी और गीताप्रेस में प्रकाशन का काम ठप पड़ा है. गीताप्रेस में कुल 525 कर्मचारी हैं, जिनमें 200 स्थायी हैं जबकि 325 ठेके पर काम करते हैं.
गीताप्रेस के कर्मचारी रवींद्र सिंह बताते हैं, ‘सहायक प्रबंधक से मारपीट नहीं की गई थी, सिर्फ धक्का-मुक्की हुई थी, क्योंकि सात अगस्त तक वेतन नहीं आया था, जबकि चार से पांच तारीख तक वेतन अकाउंट में आ जाता है. प्रबंधन की ओर से कहा जा रहा था कि कर्मचारी सारी पुरानी मांगों को रद्द कर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर दें, जिसके बाद वेतन वृद्धि लागू कर दी जाएगी. इसी बात पर कर्मचारी आक्रोशित हो गए और सहायक प्रबंधक के साथ धक्का-मुक्की हो गई, जिसके बाद कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया.’
इस विवाद के बाद से गीताप्रेस के सभी कर्मचारियों ने काम ठप कर दिया है, जिसकी वजह से धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन का काम पूरी तरह से रुक गया है. कर्मचारियों का कहना है कि जब तक निलंबन वापस नहीं लिया जाता कर्मचारी काम पर नहीं लौटेंगे. उधर, गीताप्रेस के बंद होने की अफवाहों के बीच प्रबंधन ने एक विज्ञप्ति जारी कर इसका खंडन किया है. विज्ञप्ति में प्रबंधन ने कहा है, ‘कुछ मीडिया संस्थान गीताप्रेस के खिलाफ भ्रामक प्रचार कर रहे हैं. गीताप्रेस बंद नहीं हुआ है, केवल कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से काम बंद हुआ है. संस्थान न तो बंद होने की स्थिति में है और न ही इसे बंद होने दिया जाएगा. किसी तरह की कोई आर्थिक समस्या भी नहीं है. कर्मचारियों की अनुशासनहीनता के कारण प्रबंध तंत्र पिछले एक साल से परेशान है. पिछले दिनों हद पार करते हुए कर्मचारियों ने सहायक प्रबंधक से मारपीट की, जिसके बाद कुछ कर्मचारियों को निलंबित किया गया है.’ विज्ञप्ति में यह भी स्पष्ट किया गया है कि गीताप्रेस किसी तरह का कोई चंदा नहीं लेता है. साथ ही लोगों से अपील की है कि वे गीताप्रेस के नाम पर किसी को चंदा न दें.
सन 1923 में अपनी स्थापना के बाद से गीताप्रेस में 55 करोड़ से ज्यादा पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है. यहां से 11 भाषाओं में श्रीमद्भगवतगीता का प्रकाशन होता है. गीताप्रेस के 92 साल के इतिहास में कर्मचारी आंदोलन की यह पहली घटना है. बहरहाल ये मामला एक बार फिर उपश्रमायुक्त के दरबार में है. यहां कर्मचारियों और प्रबंध तंत्र के बीच जल्द ही बातचीत होने वाली है. इसका क्या नतीजा होगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन इस विवाद ने उन पाठकों को सबसे ज्यादा मायूस किया है जो यहां की धार्मिक पुस्तकों के मुरीद हैं.