इस साल 25 अप्रैल को नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप के झटके जब दिल्ली तक महसूस किए गए तो यहां अधिकारियों को आपदा प्रबंधन योजना की समीक्षा और उसे अपडेट करने के काम में लगा दिया गया. यह योजना कितनी अपडेट हुई इसका तो पता नहीं लेकिन अगर दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो भूकंप का खतरा अभी टला नहीं है. खतरा हमारे सिर पर मंडरा रहा है.
डीडीएमए की ‘हैजार्ड एंड रिस्क असेसमेंट’ रिपोर्ट बता रही है कि हम एक बड़ी तबाही का इंतजार कर रहे हैं. इस रिपोर्ट में चेताया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी को भूकंप का एक बड़ा झटका लग सकता है और इससे होने वाले नुकसान का असर एक परमाणु बम के हमले से कई गुना ज्यादा होगा. फिलहाल यह रिपोर्ट डीडीएमए के अध्यक्ष उपराज्यपाल नजीब जंग को सौंप दी गई है.
रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का भूकंपीय व्यवहार इन दिनों कुछ वैसा ही है जैसा 2001 में गुजरात का था. पृथ्वी का अध्ययन करने के लिए तिब्बत स्थित चीन के केंद्र और और दक्षिण पूर्व तिब्बत स्थित तिब्बती निगरानी केंद्र ने भी अपने अध्ययनों में कुछ ऐसे ही बदलावों का पता लगाया जो दिल्ली में भूकंप की ओर इशारा कर रहे हैं.
हैरत की बात ये है कि आपदा प्रबंधन से जुड़े हमारे जिम्मेदार जान-माल का नुकसान रोकने की योजना बनाने की बजाय किसी और ही चिंता में व्यस्त हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस संबंध में जब डीडीएमए के सचिव (राजस्व/आपदा प्रबंधन) अश्विनी कुमार से पूछा गया तो उनकी चिंता कुछ और ही नजर आई. उन्होंने कहा, ‘भूकंप की घटना के बाद संचार सेवा ठप न पड़े और बचाव कार्य अबाध गति से जारी रखा जा सके, इसकी समीक्षा की जा रही है. मोबाइल टावरों को और मजबूत बनाने के लिए मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों के प्रतिनिधियों से बातचीत की जा रही है.’ अश्विनी कुमार आपदा की तैयारियों को लेकर यह बताना भी नहीं भूले कि अभी राजधानी दिल्ली में 48 घंटे के पावर बैकअप के साथ 7000 मोबाइल टावर हैं और आपदा की तैयारी के लिहाज से इनकी संख्या और क्षमता में वृद्घि के लिए मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों के साथ डीडीएमए सलाह-मशविरा कर रहा है.
आपदा से पूर्व क्षति को कम-से-कम करने के लिए डीडीएमए क्या एहतियात बरत रही है, इस बारे में विभाग की वेबसाइट पर दिए गए अलग-अलग अधिकारियों के अलग-अलग नंबरों पर लगातार कोशिश के बावजूद कोई बात करने को तैयार नहीं हुआ. सब टालमटोल करते रहे. कमोबेश यही हालत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की भी है.
खैर, इस बारे में पर्यावरणविद हिमांशु ठक्कर बताते हैं, ‘दिल्ली में एक बार इस बात की कोशिश कुछ वर्ष पहले हुई थी कि यहां कितने मकान भूकंप के झटके बर्दाश्त कर सकते हैं. ताज्जुब है कि इस सर्वेक्षण को भी दस फीसदी से कम मकानों तक सीमित रखा गया और कभी दोबारा उसकी मॉनिटरिंग नहीं की गई. डीडीएमए का काम बतौर एहतियात मॉक ड्रिल आदि कराना है लेकिन यह भी सिर्फ कागजों तक ही सीमित होता है.’ सच तो यह है कि एक सरकारी आंकड़े के अनुसार दिल्ली की 31 लाख इमारतें भूकंप के झटकों को सह पाने में पूरी तरह समर्थ नहीं हैं.
देश को भूकंप की संवेदनशीलता के लिहाज से चार अलग-अलग क्षेत्रों (2, 3, 4 और 5) में बांटा गया है. दिल्ली भूकंप क्षेत्र- 4 में आता है और संवेदनशीलता के लिहाज से यह बहुत ही जोखिम भरा क्षेत्र है. दिल्ली सरकार ने लगभग एक दशक पहले आपदा से निपटने की दिशा में महत्वपूर्ण इमारतों को झटके बर्दाश्त करने के लिहाज से तैयार कराने का निर्णय लिया था . डीडीएमए के एक अधिकारी ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि अभी तक महज तीन-चार इमारतों को भूकंप के झटके बर्दाश्त करने योग्य बनाया जा सका है. ऐसे आलम में डीडीएमए की वर्तमान रिपोर्ट किसी को भी कंपकंपा देने के लिए काफी हो सकती है.