आमेर किले के ‘लाइट एंड साउंड’ कार्यक्रम के लिए लिखी गई स्क्रिप्ट को लेकर आपके और गुलजार के बीच क्या विवाद है?
असल में हुआ यह था कि 2007-08 में राजस्थान में जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार थी तब यह तय हुआ कि आमेर के किले में ‘लाइट एंड साउंड’ कार्यक्रम शुरू किया जाए. मुकेश भार्गव नाम के एक व्यक्ति हैं जिनसे शायद वसुंधरा राजे ने यह कहा कि इस कार्यक्रम की स्क्रिप्ट गुलजार से लिखवाई जाए और उसे अमिताभ बच्चन अपनी आवाज दें. गुलजार साहब से संपर्क किया गया और वे जयपुर तशरीफ लाए. वे यहां कुछ लोगों से मिले. उनसे मेरी कोई मुलाकात नहीं हुई. मैंने अपनी स्क्रिप्ट लिखी. फिर मैंने गुलजार साहब को फोन किया और पूछा कि अगर आपने स्क्रिप्ट लिख ली हो तो हमें भेज दीजिए. उन्होंने कहा कि हमें पैसा मिल जाएगा तो ही स्क्रिप्ट दूंगा. मैंने पूछा कि आपको कितना एडवांस चाहिए? गुलजार ने कहा कि मैं तो पूरा पैसा लेने के बाद ही स्क्रिप्ट दूंगा.
राजस्थान सरकार ने उन्हें स्क्रिप्ट के लिए कितने पैसे दिए?
सरकार की ओर से उन्हें पूरे 30 लाख रुपये का चेक भेजा गया. उन्होंने स्क्रिप्ट भी भेज दी.
फिर विवाद क्या है?
असल में कुछ विदेशी (सैलानी) जयपुर आए हुए थे और उन्हें लाइट एंड साउंड शो दिखाने की जल्दबाजी थी तो सलाउद्दीन अहमद साहब ने शो का प्रदर्शन करवाया. सलाउद्दीन तब कला व संस्कृति मंत्रालय के प्रमुख सचिव थे. सबने खूब तारीफ की. लेकिन वहां यह सवाल भी उठा कि इसमें अमिताभ की आवाज नहीं है. किसी ने कहा कि यह व्यवस्था कुछ दिनों के लिए है. अमिताभ की आवाज में इसे करवाएंगे. मगर सलाउद्दीन साहब को गुलजार की स्क्रिप्ट पसंद नहीं आई.
गुलजार साहब की लिखी हुई स्क्रिप्ट सलाउद्दीन साहब को क्यों नहीं पसंद आई? उस स्क्रिप्ट में क्या परेशानी थी?
सलाउद्दीन साहब ने जयपुर के जवाहर कला केंद्र में एक मीटिंग बुलवाई थी. मुझे भी उन्होंने बुलाया. मैं वैसे जवाहर कला केंद्र नहीं जाता हूं लेकिन इत्तेफाक से वहां इप्टा की ओर से किसी नाटक का मंचन होना था तो मेरी उनसे मुलाकात वहां हो गई. सलाउद्दीन ने मुझे गुलजार वाली स्क्रिप्ट देते हुए कहा कि यह बड़ी वाहियात है इसे दुरुस्त (ड्रैमेटाइज) कर दीजिए.
स्क्रिप्ट में क्या कोई दिक्कत थी?
मैं आमेर की अपनी स्क्रिप्ट पर पहले से काम कर ही रहा था इसलिए मैंने सलाउद्दीन साहब के कहने पर उनसे गुलजार वाली स्क्रिप्ट ले ली. गुलजार की लिखी स्क्रिप्ट वाकई में बहुत ही वाहियात थी. इस स्क्रिप्ट में आमेर के बारे में बहुत कम बताया गया था. गुलजार की इस स्क्रिप्ट में पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की पूरी शादी आमेर में संपन्न करा दी गई थी
जबकि इस प्रसंग का आमेर से कोई संबंध ही नहीं है. स्क्रिप्ट में बहुत सारी और दिक्कतें थीं. मैंने सलाउद्दीन साहब से माफी मांगते हुए कहा कि मैं नहीं कर पाऊंगा. मैंने उनसे यह भी कहा था कि अगर पायजामा फट जाए तो पैबंद नहीं लगता है. फिर उन्होंने कहा कि तुम ही कुछ लिख दो तो फिर देखेंगे कि क्या किया जा सकता है.
गुलजार की स्क्रिप्ट में इतिहास की दृष्टि से जो गड़बड़ियां थीं, उसे सलाउद्दीन साहब ने भी स्वीकारा?
हां. सलाउद्दीन इतिहास के अच्छे जानकार हैं. वे बहुत पढ़े-लिखे इंसान हैं. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए की पढ़ाई की है. उनके घर पर बहुत अच्छी लाइब्रेरी है. पढ़ने में उनकी गहरी दिलचस्पी है.
खैर, मैंने जब स्क्रिप्ट पूरी कर ली तब उन्हें फोन किया और बताया कि काम पूरा हो गया है लेकिन मुझे टाइपिंग नहीं आती है. सलाउद्दीन अहमद ने कहा कि हम टाइप करवा लेंगे. उन्होंने किसी को भेजकर मुझसे स्क्रिप्ट मंगवा ली.
‘मैंने सलाउद्दीन साहब के कहने पर उनसे गुलजार वाली स्क्रिप्ट ले ली. गुलजार की लिखी स्क्रिप्ट वाकई में बहुत ही वाहियात थी. इस स्क्रिप्ट में आमेर के बारे में बहुत कम बताया गया था. गुलजार की इस स्क्रिप्ट में पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की पूरी शादी आमेर में संपन्न करा दी गई थी जबकि इस प्रसंग का आमेर से कोई संबंध ही नहीं है’
क्या स्क्रिप्ट को ठीक करने या लिखने को लेकर आपके और पर्यटन विभाग के बीच कोई करार भी हुआ था?