नहीं रहे प्राण

Shooting-Cartoonist-Pran-(Chacha-Chaudhary)मशहूर कार्टूनिस्ट प्राण का बुधवार सुबह गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. 75 वर्षीय प्राण पिछले कुछ समय से कैंसर से जूझ रहे थे. चाचा चौधरी, साबू, बिल्लू, पिंकी, श्रीमती जी जैसे उनके कार्टून एक पूरी पीढ़ी को न सिर्फ गुदगुदाते रहे बल्कि उनमें छिपे सामाजिक संदेशों ने लोगों को अच्छा इंसान बनने की प्रेरणा भी दी

प्राण का जन्म अविभाजित हिंदुस्तान में लाहौर के निकट हुआ था. उन्होंने ग्वालियर से स्नातक की डिग्री ली और आगे के अध्ययन के लिए जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई में दाखिला ले लिया. लेकिन वहां से अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर उन्होंने दैनिक अखबारों में कार्टून बनाने का सिलसिला चालू कर दिया. इस तरह सन 1960 के दशक में प्राण ने पहली बार भारतीयों को अपने कार्टून कैरेक्टरों से मिलवाया. उसके पहले देश में कार्टूनों को पसंद करने वाले लोग पश्चिमी देशों के कार्टूनों पर निर्भर थे. लोगों को यह बात बहुत शिद्दत से महसूस होती थी कि ऐसे कार्टून कैरेक्टर हों जो उनकी दुनिया से हों और उनके जैसे हों. उनकी यह चाह पूरी हुई सन 1971 में जब चाचा चौधरी कार्टून की दुनिया में अवतरित हुए. चाचा चौधरी को पढ़ने वाले जानते हैं कि लाल पगड़ी और घनी सफेद मूंछों वाले नाटे कद के चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है लेकिन उनकी सजधज बिल्कुल पड़ोस में रहने वाले किसी चाचा या ताऊ की तरह ही है. चाचा चौधरी और साबू की जोड़ी ने न जाने कितनी पीढ़ियों के बचपन को संवारा. उन्हें हास्य, रोमांच, विज्ञान फंतासी की दुनिया की सैर कराई. इसी तरह शरारती बिल्लू की बात करें तो चेहरे पर झूलते घने बालों के चलते चाहे आज तक कोई बिल्लू की आंखें न देख पाया हो लेकिन बिल्लू न जाने कितनी पीढ़ियों की आंखों का तारा बना रहा.

प्राण के कार्टून किरदारों की खासियत यह थी कि वे अपनी तरह के अनूठे सुपरहीरो थे. उनके पास कोई अलौकिक शक्तियां नहीं थीं वे बिल्कुल आम लोगों जैसे थे लेकिन अपनी मेधा और तीव्र बुद्धि का प्रयोग करके वे किसी भी मुसीबत से बाहर निकल सकते थे.

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