
आप इतने दिनों से बिहार की राजनीति को देख रहे हैं. विधायक रहे, मंत्री भी रहे. अब मुख्यमंत्री हैं. मुख्यमंत्री के तौर पर अनुभव कैसा है और सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
मेरे मुख्यमंत्री बनने से पहले बहुत कुछ यहां पहले से किया हुआ था. इस बात को हम अनेक बार कह चुके हैं. अगर कुछ गलत किया हुआ राज्य मिलता तो मेरे सामने बड़ी चुनौती होती. अब तो इस मायने में मेरे सामने है कि माननीय नीतीश कुमार जो काम कर दिए हैं, उसे जारी कैसे रखें. हम तो उसे ही बड़ी चुनौती मानते हैं और इस बात को मानकर चलते हैं कि जो रोडमैप नीतीश जी द्वारा तैयार किया गया था अगर उसी रास्ते बिहार चले तो उन्नत राज्य बन सकता है. हां, लेकिन उसको मेंटेन करने के बाद जो समय मिलेगा, उसमें जो साधन मिलेंगे तो कुछ और अच्छा करने का सोचे हैं.
आपने कहा कि कुछ और नया करने की सोच रहे हैं. क्या सोच रहे हैं? प्राथमिकता क्या होगी? विकास के नीतीश माॅडल के बाद मांझी माॅडल में क्या खास होगा?
देखिए, मांझी माॅडल जैसी कोई बात मेरे दिमाग में नहीं है. लेकिन हमने बेसिक तौर पर शिक्षा को उन्नति का आधार माना है. और दूसरी बात यह कि नीतीश कुमार के द्वारा जो विकास कार्य किए गए उन विकास कार्यों का लाभ उन लोगों तक नहीं पहुंच पाया है जहां तक पहुंचाने की उनकी इच्छा थी. और यही इच्छा हमारी भी है. हम तो उसी गरीब परिवार से आते हैं और हमारे लोग जब हमसे मिलते हैं अपनी दास्तां सुनाते हैं. अभी भी जब हम गांव जाते हैं तो हमसे लोग मुख्यमंत्री के तौर पर नहीं मिलते. उनकी समस्याएं हैं, बहुतेरी हैं, उनका समाधान जरूरी है. इसके लिए योजनाएं भी बहुत हंै, पैसे भी केंद्राकिंत हैं, लेकिन पैसे का बीच में ही कुछ हो जाता है. बिचौलिये, अधिकारी पदाधिकारी के कारण भी उनको लाभ नहीं मिल पाता है. इसे ठीक करना हमारी प्राथमिकता है. दूसरी बात यह भी है कि उसका लाभ लेकर कैसे उपयोग किया जाए, यह कला भी हमारे लोगों को नहीं मालूम है. तो मैंने तय किया है कि कुछ राजनीतिक साथियों का सहारा लेकर, एनजीओ का सहारा लेकर, शिक्षा को बढ़ाकर हम उन सबों को जागरूक बनाएंगे कि कैसे सरकार का लाभ ले सकंे और ज्यादा से ज्यादा तरक्की कर सकें. अशिक्षा और शराबखोरी भी पिछडे़पन की वजह है. हमारा समाज भी नहीं चाहता कि ऐसे लोगों को उठाया जाए, आगे बढ़ाया जाए. देखादेखी में लोग मरे जा रहे हैं. हालत यह है कि अपने पिताजी की सेवा नहीं करते लेकिन अगर बगलवाले ने श्राद्ध में दो मिठाई खिला दी तो वह पांच मिठाई खिलाना चाहता है. और इसी दिखावे में कर्ज पर कर्ज लेते रहता है और फिर कभी स्थिति नहीं सुधरती. तो हमलोगों का प्रयास है कि गांव के स्तर पर सुधार हो. जागरूकता से ही इन सभी समस्याओं का समाधान होगा.
‘लालू जी के साथ थे तो उनको कई काम करने को कहे, एक भी काम नहीं किए….दलितों के उत्थान और विकास के लिए जो सलाह दिए हम, नहीं माने. जिस तरह पिछड़ों को तरजीह देते थे, उस तरह से दलितों-महादलितों को नहीं’
आप तो खुद महादलित समुदाय से आते हैं. आपने वंचित समुदाय की पीड़ा भोगी है. नीतीश कुमार ने महादलित को अलग कर विकास का माॅडल बनाया. आप उस समाज से होने के कारण और जमीनी सच्चाई जानने के कारण कुछ नया माॅडल पेश करेंगे या वही सही है?
समस्या तो है ही. लेकिन समाज में जो विषमता की जो खाई है, वह विकराल है. पिछड़े समुदाय में भी देखिए तो विषमता भरी है. किसी जाति या समुदाय की साक्षरता दर 50 प्रतिशत है तो किसी की 10 भी नहीं. जो साक्षर नहीं हैं उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति अपने ही लोगों के बीच बद से बदतर है. इसके लिए एक तरीके से स्पेशल केयर करने की जरूरत है. इसी को दुरुस्त करने के लिए महादलित का कांसेप्ट आया था. लेकिन मैं ऐसा महसूस करता हूं कि अब बात जाति के आधार पर नहीं बल्कि शिक्षा के आधार पर, आर्थिक स्थिति के स्तर पर होनी चाहिए. जिनको शिक्षा की जरूरत है, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उनके लिए आर्थिक स्तर पर योजनाएं बनें, ऐसी कल्पना मेरे मन में है. अभी कुछ बदलाव किए हैं. अभी अनुसूचित जाति में जो मैट्रिक में जो फर्स्ट डिविजन करते हैं उनको 10 हजार रुपये दिये जाने का प्रावधान है. हमको कहना तो नहीं चाहिए, लेकिन जो चालाक गार्जियन हैं वे हर तरह से कोशिश कर अपने बच्चे को फर्स्ट डिविजन करवा दते हैं. परीक्षा के सेंटर से लेकर, काॅपी जंचवाने से लेकर प्रायोगिक परीक्षा तक इंतजाम करते हैं. लेकिन उसी एससी श्रेणी में आनेवाले दूसरे समुदाय मसलन डोम, मुसहर, खरवार, भुइयां आदि जाति के जो गार्जियन हैं, वे वैसा नहीं कर पाते और उनके बच्चे फर्स्ट नहीं कर पाते. इसलिए हम निर्णय किए हैं कि जिनकी साक्षरता दर 30 प्रतिशत से कम है उनका बच्चा अगर सेकेंड डिविजन से भी पास करता है तो उनके लड़का-लड़की को 10 हजार देंगे. इसी तरह से इंटर पास करनेवाली जो लड़कियां हैं उनको भी 25 हजार तक देंगे ताकि कालेज में जाएं और आगे पढ़ाई जारी रख सकें. तो इसमें भी वही क्लॉज लगाने जा रहे हैं कि इ जो पांच सात जाति है तो उसको भी 25 हजार देंगे, जिनकी साक्षरता दर कम है. इसी को समुदायों का स्पेशल केयर कहते हैं. यहां पर हम साक्षरता को आधार मानकर ऐसा कर रहे हैं. इसी तरह से आर्थिक स्तर पर देखेंगे कि जिनका सालाना इनकम एक लाख से कम है, जिनका इनकम ढाई लाख या उससे कम है, उसके लिए दूसरी व्यवस्था करेंगे. जो पांच लाख से ऊपर रहते हैं उनके लिए अलग व्यवस्था होगी. इस प्रकार से हम आर्थिक आधार पर भी लोगों के लिए अलग-अलग व्यवस्था चाहते हैं. अब दूसरी बात सुनिए. जो सरकार के आवासीय विद्यालय हैं, एससी (अनुसूचित जाति) के लिए, उनमें बिहार मंे अब तक मात्र 28 हजार बच्चों को एकॉमोडेशन मिला है जबकि दूसरे प्रदेशों में स्थिति बेहतर है. आंध्र प्रदेश में सात लाख बच्चों को, उड़ीसा में साढ़े तीन लाख बच्चों को एकॉमोडेशन मिला है. हमारी जनसंख्या और उनकी जनसंख्या में काफी अंतर है बावजूद इसके वे काफी बच्चों को सुविधा दे रहे हैं. तो हम लोगों ने तय किया है कि 28 हजार की बजाय दो से ढाई लाख बच्चों को आवासीय विद्यालय की सुविधा देंगे. तो सीडुल कास्ट के लिए जो आवासीय विद्यालय है, उसकी व्यवस्था ठीक ढंग से करेंगे. तो हमलोग यह मानकर चलते हैं कि शिक्षा ही सबसे बड़ी चीज है. बिना शिक्षा के कुछ नहीं हो सकता. हर जगह हम अपना ही उदाहरण देते हैं. मालिकों से मार हम नहीं खाते और पिताजी हमको बाध्य नहीं करते पढ़ने को तो हम यहां तक नहीं पहुंचते. इसीलिए हम लोगों को कहते हैं कि पढ़ाई करो ओर शराबखोरी के चक्कर में न पड़ो. जो लोग कमाते हैं उसका आधा हिस्सा पढ़ाई और स्वास्थ्य पर लगावें, इसके लिए हम अवेयरनेस चलाएंगे. टोला समिति, विकास मित्र आदि का भी सहयोग लेंगे. और भी एजेंसियों का सहयोग लेंगे. बाकी तो नीतीशजी जो कर दिए हैं.
आपने जो योजनाएं निचले स्तर पर छह सात जातियों के लिए बनाई हैं या उनके लिए जो करने की सोच रहे हैं, वह बिल्कुल दूसरी बात है. फिलहाल तो एक सिरे से महादलित में सबको शामिल कर लिया गया है. और दूसरी ओर राज्य में जो राजनीतिक हालात बन रहे हैं उनमें ज्यादा जोर मंडलवादी ताकतों के एका पर है. जिस राजद के साथ आपकी पार्टी का तालमेल हुआ है, उसका तो पूरा जोर ही मंडलवादी ताकतों पर है. आप क्या सोचते हैं? ऐसा माना जाता है कि मंडलवादी युग में भी जो सबसे निचले तबके के रहे हैं, उनको इसका लाभ उस तरह से नहीं मिल पाया.
देखिए यह तो वैचारिक संबंध है. इस तरह के तालमेल से सरकार का कोई सरोकार नहीं होता. न ही महत्व होता है. यह दलों के महत्व का है और दलों के बीचबात चली है. यह जो तालमेल की शुरुआत हुई, उसकी चर्चा तो माननीय लालू जी ने की और फिर हमारे दल में भी बात चली. लेकिन इस मामले में मैं व्यक्तिगत तौर पर अलग राय रखता हूं. मेरा जो व्यक्तिगत मत है, वह यह कि मंडल कमीशन का जो विषय था वह बहुत गलत नहीं था. उसको अगर ठीक से फाॅलो किया जाता तो जो अभिवंचित वर्ग हैं, वाकई में पिछड़े हैं या आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण वर्ग से भी जो हैं, उनके लिए कुछ अलग व्यवस्था होती तो इसमें कुछ अन्याय की बात तो नहीं होती. लेकिन मंडल की रिपोर्ट को जातीय ढंग से विश्लेषित कर दिया गया था. जातीय आधार पर इसको लेकर उन्माद फैलाया गया और इस तरह फैलाया गया जैसे लगा कि दूसरे समाज के लिए खतरनाक बात है. लेकिन बात न तो ऐसी थी, न ऐसा होना चाहिए था. मुझे लगता है कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट के पुनर्पाठ की जरूरत है. इसको जब रीरीड किया जाएगा और फिर समीक्षा होगी तो यह बिहार और पिछड़े समाज, दोनों के हित में होगा.
पुनर्पाठ की जब आप बात करते हैं तो क्या आपका जोर शिक्षा और आर्थिक आधार को तवज्जो देने पर है?
हां इसको देखा जा सकता है कि जो हम कह रहे हैं वह उसमें है या नहीं. अगर है तो उसी का अनुपालन करना चाहिए. यह तो देखने-समझने की बात है.
‘जब महादलितों का वोट बढ़ेगा तो सब सोचेेंगे कि जिसका इतना वोट, जिसके चलते इतना वोट, नेतृत्व उसी को क्यों नहीं? इसलिए अभी हम यह नहीं कह सकते कि हमको यूज किया गया’
आपको लेकर बातें चलती हैं कि जीतन मांझी कुछ और कहते हैं और नीतीश कुमार कुछ और कहते हैं. ऐसा देखा भी गया. बागी विधायकों के मसले पर आप कहते थे कि उन पर एक्शन लेने में इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं. और बाद में जब राजद से तालमेल की बात आई तो आपने पहले ही कह दिया कि सीटों पर बंटवारे की बात चल रही है जबकि नीतीश कुमार को कहना पड़ा कि अभी तो तालमेल पर भी जदयू के अंदर बात चल रही है.
मुझको लगता है कि नीतीश जी ने किस संदर्भ में राजद से तालमेल पर दूसरी बात कही थी, उस समय स्थितियां क्या रही होंगी उनके सामने, यह समझना होगा. कार्यसमिति की बैठक में तो इस बात पर तो चर्चा हुई थी कि बिहार प्रदेश जदयू के अध्यक्ष वशिष्ठ बाबू राज्यसभा के सदस्य हैं. वे दिल्ली जाएं तो लालू प्रसाद जी से मिलकर आगे की बातचीत करेंगे. और बाद में तो वशिष्ठ बाबू ने भी कहा कि उन्हें अधिकृत किया गया है और वे बातचीत कर रहे हैं. दो दिनों पहले नीतीश जी ने भी यह बात कही थी कि दिल्ली में वे अपने काम के अलावे यह काम भी करेंगे. लेकिन बाद में नीतीशजी की ओर से दूसरी सूचना आई कि अभी जदयू में ही तालमेल पर बात चल रही है तो हम क्या कहें. लेकिन इसे दूसरे तरीके से भी देखने को जरूरत है. मैं मानता हूं कि एक होता है गठबंधन और दूसरा होता है तालमेल. आसन्न चुनाव है तो राजद से तालमेल एक अलग बात है और गठबंधन एक अलग बात है. यह एक ऐसा विषय है कि सिर्फ बात करने से नहीं होगा. दोनों दलों की कार्यसमिति को बैठना चाहिए, काॅमन मिनिमम प्रोग्राम बनाना चाहिए. इसीलिए अभी गठबंधन नहीं तालमेल की जरूरत है.
ऐसी ही बातों पर तो थोड़ा मतभेद-मनभेद दिखता है मांझी जी.
एक बात कहें, हमारे और नीतीश जी के कहे में कोई फर्क नहीं है, दोनों का अंदाज अलग हो सकता है. इस आधार पर मीडिया में बातें चल रही हैं कि मांझी और नीतीश में मतभेद है तो ऐसा कुछ नहीं है. हमारा उनसे कभी मतभेद हो ही नहीं सकता. हम जो भी बात की चर्चा करते हैं तो हमहीं उनसे पूछते हैं उ कभी आड़े नहीं आते हैं. चूंकि वे पार्टी के संस्थापक रहे हैं और पार्टी और सरकार को चलाने का जितना अनुभव उनके पास है, उतना अनुभव मेरे पास नहीं है. उ जिस विषय में पारंगत हैं उसमें हम कहां पारंगत हैं? हम तो विधायक रहे हैं और मंत्री रहे हैं. हम तो इहे दो महीना से मुख्यमंत्री हैं. हां अगर हमको आगे भी समय मिलेगा तो कह सकते हैं कि हमको भी अब अनुभव प्राप्त है. हम तो अपने आपको सौभाग्यशाली मानते हैं कि जब भी सलाह मांगते हैं वे परामर्श देते हैं. इसलिए उनसे विरोध या मतभेद जैसी तो कोई बात ही नहीं.
पिछले चुनाव में यह देखा गया कि जदयू के साथ जो समुदाय सबसे मजबूती से जुड़ा रहा, वह महादलित ही था. अब उसी समुदाय के जीतन राम मांझी सीएम हैं. एक समुदाय एक दल के लिए प्रतिबद्ध रहा है, अब नेता भी उस समुदाय का मिल गया है तो कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि फिर अगला चुनाव मांझी के ही नेतृत्व में क्यों नहीं, नीतीश कुमार के नेतृत्व में क्यों? नेतृत्व के लिए आप भी तो योग्य हैं.
विधायक दल की जो बैठक हुई थी तो उसमें हम भी इसके विरोध में थे कि वे सीएम पद से इस्तीफा दें. अगर इस्तीफा दे ही दिए थे तो फिर से उनको मुख्यमंत्री पद स्वीकार करना चाहिए था. यह दलहित और राज्यहित दोनों में था. लेकिन उन्होंने नैतिकता का उदाहरण दिया जो अच्छी बात है. हम नहीं समझते हैं कि देश में कोइ ऐसा उदाहरण पहले पेश हुआ होगा. लेकिन उस समय नीतीश जी के इस्तीफा के बाद कुछ माननीय विधायक इतने उग्र थे कि नीतीश जी उस समय उनको शांत करने के लिए कह दिए थे कि अगला चुनाव में हम फिर से नेतृत्व कर देंगे. सांत्वना देने के लिए कह दिए थे. रणनीतिक तरीके से कहा था उन्होंने जिससे सारे विधायक शांत हो गए. रही आगे की बात तो हमसे भी पूछा जाएगा तो कहेंगे कि नीतीश सर्वोपरि नेता हैं, उनको मुख्यमंत्री के रूप में आना चाहिए. लेकिन अभी एक साल है. अब आगे उ का सोचेंगे, और लोग क्या सोचेंगे, तब ना देखा जाएगा. अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता है. हम तो अभी भी कहेंगे कि नीतीश कुमार योग्य हैं, बिहार का सौभाग्य होगा कि वे वापस आएंगे.
आप तो नीतीश कुमार के मामले में बार-बार योग्य होने को आधार बनाकर अवसर दिए जाने की बात कर रहे हैं. अब तो आप समाजवाद की राजनीति करनेवाली पार्टी से जुड़े हुए हैं. लोहिया कहते थे कि अवसर भी योग्य बनाता है. आपको अवसर मिला है तो आप भी योग्य हो जाएंगे.
यह तो आगे साबित होगा. अभी तो समय है.
ठेके में आरक्षण की बात लालू जी ने कही. आप क्या सोचते हैं?
लालूजी मीडिया में ज्यादा विश्वास करते हैं. अच्छा है कि उन्होंने अब मांग की है. लेकिन सबसे पहले हमने मांग की थी कि इन सभी विधाओं में सीडुल कास्ट (अनुसूचित जाति) के लिए आरक्षण हो इसलिए उन्होंने मांग की है तो मुझे अच्छा लगा कि हमारी मांग को समर्थन मिला. इसके लिए मायावती जी ने तो बहुत पहले पहल की थी.