गांव-चौपालों में एक कहानी खूब प्रचलित है. कहानी एक किसान परिवार की है. किसान के चार लड़के थे. चारों बड़े मेहनती थे. सुबह से शाम तक खेत में काम करते. किसानी से बड़ी मुश्किल से इन पांचों का परिवार चलता था. सब एक-दूसरे पर भरोसा करते थे. मुश्किल से मुश्किल समय में भी साथ रहते थे. कुछ समय बाद परिवार के दिन बहुरे. गरीबी कम हुई और परिवार में समृद्धि आई. खेत में काम करने के लिए नौकर आ गए. काम कम हुआ. काम के कम होने से भाईयों को खाली बैठकर सोचने-समझने का मौका मिला. कुछ समय तक तो सब ठीक रहा लेकिन थोड़े ही दिनों बाद सब आपस में लड़ने लगे. छोटी-छोटी बातें लड़ाई का कारण बन गईं. साथ-साथ काम करनेवाले चारों भाई एक-दूसरे पर तोहमत मढ़ने लगे. थोड़े समय बाद चारों अलग हो गए. खेत-खलिहान बंट गए. गाय-बैल बंट गए. बंटवारे के बाद चारों ने अपने-अपने हिस्से के खेत में फिर खुद काम करना शुरू किया. एक भाई अपने आप को दूसरे भाई से ज्यादा समृद्ध बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत-मजदूरी करने लगा. इस तरह मेहनत और काम ने इनके बीच पनपी कलह को खत्म कर दिया.
यह कहानी फिलहाल दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी में चल रही अंतर्कलह पर सटीक बैठती है.
कहानी के पात्र अपनी मेहनत के बल पर आई समृद्धि की वजह से लड़ने लगे थे तो आम आदमी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दिल्ली में मिली अभूतपूर्व जीत के खुमार में आपस में भिड़ गए हैं. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप गढ़ने के साथ से शुरू हुई और यह लड़ाई अब अपने बदसूरत स्वरूप में उस दिल्ली की जनता के सामने है जिसने महीनाभर पहले आप पर अंधविश्वास जताया था. कहानी का अंतिम हिस्सा पूरा होना अभी बाकी है जब सारे नेता अपनी-अपनी राह जाकर मेहनत-मजूरी में लग जाएंगे.
पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी की सर्वोच्च्य निर्णायक संस्था, राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) से हटाया जा चुका है. यह फैसला चार मार्च को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी में लिया गया. इन दोनों नेताओं पर आरोप है कि इन्होंने दिल्ली चुनाव में पार्टी को हराने के लिए काम किया और ये अरविंद केजरीवाल को पार्टी के संयोजक पद से हटाना चाहते थे. योगेंद्र यादव पर आरोप है कि उन्होंने कुछ पत्रकारों के जरिए मिलकर ऐसी खबरें प्लांट करवाईं जिससे पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की छवि खराब हो. पीएसी से हटाने और अपने ऊपर पार्टी विरोधी गतिविधि चलाने के आरोपों के बाद योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने पार्टी कार्यकर्ताओं (वॉलंटियर्स) के नाम एक चिट्ठी लिखी है. चिठ्ठी में यह दावा किया गया है कि उन पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं वो सच नहीं हैं. चिट्ठी में दोनों नेताओं ने साफ किया है कि उन्होंने दिल्ली चुनाव में उम्मीद्दवारों की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए जिसकी वजह से अब उन पर ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं. योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने अपने ऊपर पार्टी द्वारा लगाए जा रहे हर आरोप को यह कहते हुए खारिज किया है कि उन्होंने पार्टी के हित में कुछ जरूरी सुझाव दिए थे. ये सुझाव पार्टी के उन सिद्धांतों और मूल्यों से जुड़े थे जिन पर इसकी नींव पड़ी थी. विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी अपने इन सिद्धातों से बुरी तरह डिग चुकी थी. अपने दावों की जांच दोनों नेता पार्टी की आतंरिक लोकपाल से करवाने की मांग कर रहे हैं.

फिलहाल आप आदमी पार्टी में दो फाड़ हो चुके हैं
जिन परिस्थितियों में आप का सारा विवाद सतह पर आया है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि लंबे समय से पार्टी के भीतर तलवारें खिंची हुईं थीं. 26 फरवरी को अचानक से ही लड़ाई सतह पर आ गई. राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी नेता दिलीप पांंडे ने एक ऑडियो टेप चलाया. इसमें आप के एक नेता विभव कुमार द हिंदू अखबार की पत्रकार चंदर सुता डोगरा से बात कर रहे थे. बातचीत का लब्बोलुआब यह था कि योगेंद्र यादव ने उन्हें बताया था कि हरियाणा में पूरी यूनिट विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती थी लेकिन अरविंद केजरीवाल ने इस पर वीटो कर दिया था. आप का एक धड़ा इसे पार्टी विरोधी गतिविधि बता रहा है. इसे लेकर पार्टी दोफाड़ हो चुकी है. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, पार्टी प्रवक्ता संजय सिंह, आशीष खेतान और आशुतोष एक तरफ हैं तो दूसरी तरफ योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, मयंक गांधी और शांति भूषण सहित पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेता हैं. मजेदार यह है कि जिस अरविंद केजरीवाल के इर्द गिर्द पार्टी यह सारा बंटवारा हुआ है वह इस विवाद पर चुप हैं. अरविंद केजरीवाल की तरफ से इस संबंध में केवल एक आधिकारिक बयान ट्विटर के माध्यम से आया है. उन्होंने तीन मार्च को एक पोस्ट में कहा कि वो पार्टी में चल रही कलह से आहत हैं. वे इस लड़ाई में न पड़कर दिल्ली की जनता से मिले जनादेश का सम्मान करना चाहते हैं, जनता के लिए काम करना चाहते हैं.
पार्टी में जैसे ही घनघोर घमासान मचना शुरू हुआ ठीक उसी समय अरविंद दस दिन की मेडिकल लीव पर बंगलुरु चले गए. वहां वे प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से अपनी खांसी और डाइबिटीज का इलाज करवा रहे हैं. पार्टी के कुछ नेताओं को लगता है कि अरविंद के लौटने पर इस पूरे विवाद का पटाक्षेप हो जाएगा. पर यह दूर की कौड़ी दिखती है. पार्टी के एक सूत्र गुमनामी की शर्त पर बताते हैं, ‘अरविंद लगातार पार्टी में अपने समर्थक नेताओं के संपर्क में हैं. चैट और एसएमएस के माध्यम से लगातार उनकी बात मनीष सिसोदिया आदि से हो रही है. अगर उन्हें इस विवाद को सुलझाना होता तो वो वहां से भी ऐसा कर सकते थे. पर वे ऐसा नहीं कर रहे हैं जबकि हर दिन के साथ पार्टी और नेताओं की छीछालेदर मीडिया और जनता के बीच बढ़ती जा रही है. जाहिर है इस पूरे मसले को सुलझाने को लेकर अरविंद की खुद की मंशा बेहद संदिग्ध है.’
पार्टी के अरविंद समर्थक नेता मीडिया में लगातार ऐसे बयान दिए जा रहे हैं जिससे पार्टी के भीतर योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का बने रहना लगभग मुश्किल हो गया है. दूसरी तरफ खुद अरविंद केजरीवाल के ऐसे-ऐसे ऑडियो स्टिंग सामने आ रहे हैं जिनमें वे विधानसभा चुनावों से पूर्व कांग्रेस के साथ जोड़-तोड़ से अपनी सरकार बनाने की कवायद करते नजर आ रहे हैं. लेकिन पहले बात योगेंद्र और प्रशांत भूषण से शुरू हुए विवाद की. पंजाब से आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान तहलका से बातचीत में कहते हैं, ‘योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का अपराध बहुत बड़ा है. जितना बड़ा उनका अपराध है उसके मुकाबले पार्टी ने उन्हें कम सजा दी है. इन दोनों नेताओं को नैतिकता के आधार पर खुद ही इस्तीफा दे देना चाहिए.’ मान के बयान से अगर कोई सूत्र पकड़ना हो तो यही बात कही जा सकती है कि अरविंद की रणनीति खुद चुप रहते हुए अपने समर्थकों के माध्यम से यादव और भूषण पर उस हद तक दबाव बनाने की है कि वे खुद ही पार्टी छोड़ दें. यह नैतिकता के आधार पर भी हो सकता है, बर्खास्तगी के रूप में भी हो सकता है और इन दोनों के चुपचाप पार्टी छोड़ देने के रूप में भी हो सकता है. लेकिन यादव और भूषण ने भी अपनी रणनीति के तहत पार्टी में बने रहने की बात बार-बार दोहराई है. जाहिर है यह स्थिति पार्टी के अरविंद धड़े के लिए बहुत असहज है. जनता के बीच छवि बनाए रखने के लिए वह इन दोनों नेताओं को बर्खास्त करने का खतरा नहीं उठाना चाहती है. जनता और वॉलंटियर की नाराजगी की एक झलक सोशल मीडिया में दिख भी चुकी है.
यादव और भूषण को पार्टी में अलग-थलग करने के लिए करावल नगर से आप विधायक कपिल मिश्रा ने हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक तीनों नेताओं को पार्टी से निकालने के प्रस्ताव पर 28 मार्च से शुरू होनेवाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में चर्चा हो सकती है. बैठक से पहले केजरीवाल खेमा तीनों नेताओं के खिलाफ यह मुहिम चला रहा है. हालांकि आप के ही कुछ दूसरे विधायकों ने इस हस्ताक्षर अभियान का विरोध भी किया है और इस पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है. अभी तक जो दो फाड़ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर दिख रहा था, हस्ताक्षर अभियान के बाद वह पार्टी के निचले स्तर यानी विधायकों के बीच भी फैल गया है. पार्टी के विधायक भी इस मसले पर बंट चुके हैं. इस पूरे प्रकरण का अंत किस तरह से होगा इसका इंतजार सबको है लेकिन बीते दो हफ्तों में जितना कुछ बना और टूटा है वह कई बड़े सवाल खड़े करता है. सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या यह पार्टी बाकी राजनीतिक दलों से किसी भी मायने में अलग है, अरविंद केजरीवाल का ताजा ऑडियो टेप (देखें बॉक्स पृष्ठ 54 पर) और आशुतोष जैसे कर्कश, तथ्यहीन प्रवक्ताओं की लफ्फाजियों ने वह चोला तार-तार कर दिया है. दूसरी बात, राजनीति में बदलाव के नारे के साथ अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी के भीतर कई स्तर पर गंभीर बदलावों की जरुरत है. लेकिन पार्टी का मौजूदा चाल-चलन इसके विपरीत जाता दिख रहा है.
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घमासान का कालचक्र
n26 फरवरी : योगेंद्र यादव पर दिल्ली आप सचिव दिलीप पांडेय ने पहली बार राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में अरविंद के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया. सबूत के तौर पर पांडेय ने ‘द हिंदू’ की पत्रकार चंदर सुता डोगरा से फोन पर हुई बातचीत का टेप सामने रखा. यह टेप मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निजी सहयोगी विभव कुमार ने पत्रकार को बिना बताए रिकॉर्ड किया था. पत्रकार चंदर सुता डोगरा ने द हिंदू में ‘फेडिंग प्रॉमिस ऑफ द इंडियन स्प्रिंग’ नाम से लेख लिखा था. लेख के अनुसार, हरियाणा में आप की यूनिट ने मजबूत पकड़ बना ली थी और बहुत से स्वयंसेवी यहां से राज्य में चुनाव लड़ने के लिए उत्साहित थे. वहां आप की यूनिट की अगुवाई योगेंद्र यादव कर रहे थे. लेकिन अरविंद केजरीवाल ने वीटो कर हरियाणा में चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी थी. यह फैसला अलोकतांत्रिक था. विभव को फोन पर डोगरा ने बताया कि यह जानकारी उन्हें योगेंद्र यादव ने दी थी.
4 मार्च : आप की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में बहुमत से फैसला लिया गया कि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण पीएसी में नहीं रहेंगे. दोनों नेताओं को बाहर करने के प्रस्ताव के पक्ष में 11 और विरोध में आठ मत पड़े.
5 मार्च : आप के वरिष्ठ नेता मयंक गांधी ने बैठक की गतिविधियों की जानकारी ब्लॉग के जरिए सार्वजनिक कर दी. अपने ब्लॉग में मंयक ने पार्टी, केजरीवाल सहित कई नेताओं पर आरोप लगाया.