कुछ दिन पहले दो इत्तेफाक एक साथ हुए. पहला इत्तेफाक यह कि दिल्ली से जिस ट्रेन से वर्धा के लिए वापसी थी, उसी ट्रेन में 2 साल पहले बिल्कुल वही कोच और सीट मिली थी. वापसी के लिए जब टिकट कन्फर्म हुआ था तो इस इत्तेफाक को महसूस करना अच्छा लग रहा था- वही कोच और वही सीट. मुझे उस वक्त तक यह नहीं पता था कि दूसरा इत्तेफाक भी आज इसी ट्रेन और इसी सफर से जुड़ा था.
ट्रेन दिल्ली से गुजर रही थी और मैं 2 साल पहले की गई यात्रा को याद कर रही थी. धुंधली सी यादें. कुछ भी स्पष्ट नहीं दिख रहा था. मथुरा जंक्शन आया. खिड़की से बाहर नजर दौड़ाई. हल्की-हल्की बारिश हो रही थी. काफी देर तक बाहर देखती रही. यह अहसास हुआ कि सामनेे की खाली सीट पर लोग आ गए हैं. बारिश और हवा की गति भी तेज हो गई थी तो मैंने खिड़की के शीशेवाले पल्ले को नीचे खींच लिया. फिर मुड़कर बैठ गई. बैठते ही देखा कि सामनेवाली सीट पर जो व्यक्ति बैठा था, वह कुछ दिन पहले नागपुर से मथुरा आया था. एक-दूसरे को देख हम दोनों मुस्कुराए और मुझे इस दूसरे इत्तेफाक को उसी दिन अपने साथ जीना पड़ा. इस बार वो मेरे साथ मथुरा से नागपुर जा रहे थे.
पत्नी और बेटी भी साथ थी. पहली मुलाकात में उनकी कड़क आवाज से मुझे कुछ गलतफहमी भी हुई थी. लेकिन बाद में समझ में यह आया कि इस आदमी पर अभी शहर की चालाकी की छींट नहीं पड़ी है. दिल्ली आते वक्त यह व्यक्ति अकेला था. मुझे उसकी बातचीत का टोन अच्छा लग रह था. मैं एक-दो सवाल करती और वह आराम से उसका जबाव देता. अपने खेत, अपने गांव के परिवेश के बारे में बताते हुए मुझे यह समझ में आया कि वह किसी रिश्तेदारी से नागपुर से मथुरा लौट रहा है. दिल्ली से मेरी वापसी पर उसने अपने पत्नी और बेटी से परिचय कराया.
पत्नी मुस्कुराई और पहला सवाल पूछा कि अकेली हो? मैंने मुस्कुराते हुए बस हामी भरी. उसके चेहरे पर मैंने अपने लिए उपहास महसूस किया. उसकी नजर जब कहीं टिक गई तो मैंने नजर बचाकर उसे देखा. पत्नी गाढ़ी नीली सलवार और लाल पर तीखे हरे रंग का चौकोर पत्थर जड़ा हुआ समीज पहने हुए थी. माथा रंग-बिरंगे सूती दुपट्टे से ढका था. हाथ में दर्जनभर रंग-बिरंगी कांच की चूडि़यां और पोले ट्रेन की चलती लय के साथ हिल रहे थे. हथेली को देखकर उसकी कर्मठता का अंदाजा लगाया जा सकता था. चांदी-सी पायल एड़ी से झांक रही थी. चप्पल भी चमचमाता हुआ कुछ नया-सा था.
लड़की थोड़ी निनुवा (ऊंघ) रही थी. वह जींस और नारंगी-हरे रंग की टीशर्ट पहने हुए थी. जींस जो थोड़ी छोटी हो गई थी. हल्का पीला रूमाल उसके जींस की जेब से बाहर झांक रहा था. कलाई में स्टील-सी दिखनेवाली पतली चूड़ी पहन रखी थी. नेलपेंट ने पैर के नाखून पर अपना निशान छोड़ दिया था. उसने अपने पैर में चरचरी (वेलक्रो टेप) की आवाजवाली भूरी चप्पल डाल रखी थी. मेरा अंदाजा यह था कि वह तीसरी या चौथी कक्षा में पढ़ रही होगी. टिकट निरीक्षक के कोच में घुसते ही झूलती बोगी की चुप्पी टूट गई. इस बीच वह व्यक्ति तरोताजा होकर लौट आया था.