कुमी
मैं आपसे ये चुप्पी तोड़कर कोई ठोस कदम लेने की गुजारिश करता हूं.
ग्रीनपीस इंडिया में ये सब बहुत लंबे समय से चल रहा है और अब तक दोषियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया है.
क्या आपने कभी सोचा कि क्यों पुराने वालंटियर और कार्यकर्ता जो पूरे जोश से सार्थक और कुछ अलग करने के लिए ग्रीनपीस से जुड़े थे, अब संस्थान छोड़ चुके हैं या छोड़ रहे हैं? क्या आप भी वही कहेंगे जो सीनियर मैनेजमेंट ने कहा- कि अब इन कामों में उनकी दिलचस्पी नहीं या फिर उनकी प्राथमिकताएं बदल गई हैं?
कुमी, मैं निजी तौर पर आपको 10-15 उत्साही वालंटियर के नाम बता सकता हूं जिन्होंने ग्रीनपीस इंडिया इसलिए छोड़ दिया क्योंकि ये वो ग्रीनपीस नहीं रहा जिससे वो जुड़े थे. उनके और (मेरे लिए भी) ग्रीनपीस एक विचार है. हमने उस ग्रीनपीस को जॉइन किया था जो सच्चाई और न्याय के लिए सिर उठाकर खड़ा होता था. अब जो घटनाक्रम यहां हो रहे हैं हम उन से नाराज और दुखी हैं. हमारा मोहभंग हो चुका है.
मैं ये शिकायतें और किस्से काफी समय से सुनता आ रहा हूं. मुझे समझ नहीं आता कि इतना सब होने के बावजूद परवीन जैसी स्वार्थी व्यक्ति ग्रीनपीस में क्यों है? वो एक एचआर डायरेक्टर के रूप में पहले ही असफल हो चुकी हैं. हमारे पास उदाहरण हैं- यौन शोषण के मामलों को गंभीरता से न लेने के अलावा उन्होंने ग्रीनपीस इंडिया की नौकरियों में भर्ती के समय कुछ विशेष लोगों को अनुचित रूप से महत्व दिया. उन्होंने कई कर्मचारियों द्वारा लगातार की जा रही अनुचित गतिविधियों को ग्रीनपीस का ‘इनफॉर्मल कल्चर’ कहकर टाला.