वाराणसी, उत्तर प्रदेश

जैसे ही भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी वाराणसी से तय हुई यह शहर 2014 Varanasiलोकसभा की सबसे बड़ी चुनावी लड़ाइयों का केंद्र बन गया. मोदी की उम्मीदवारी तय होने के चंद दोनों बाद ही ‘मेरे जीवन का एक ही उद्देश्य है मोदी को हराना ’ की तर्ज पर उन्हें पटखनी देने के उद्देश्य से अरविंद केजरीवाल भी बनारस पहुंच गए. सपा मुखिया कथित मोदी लहर पर कहर ढाने के लिए ताल ठोकते हुए आजमगढ़ आ गए. इस तरह काफी समय से केंद्रीय राजनीति में चर्चा से बाहर रहा बनारस आज देश में होने वाली हर राजनीतिक चर्चा का मुख्य विषय बन गया है.

वाराणसी लोक सभा सीट ऐतिहासिक तौर पर भाजपा की सुरक्षित सीट रही है. 2004 में कांग्रेस के राजेश मिश्रा की जीत को अगर छोड़ दें तो इस सीट पर 1991 से लगातार भाजपा का कब्जा है. मोदी को बनारस से लड़ाने के पीछे पार्टी की ये रणनीति है कि मोदी के यहां से लड़ने पर पूर्वांचल और बनारस से लगी हुई बिहार की सीटों पर भी पार्टी को मोदी की लहर का जबर्दस्त फायदा होगा. मोदी की देश में लहर है और ऐसे में अगर लहर बनारस से उठेगी तो जाहिर सी बात है उसका बनारस के चारों तरफ असर होगा ही.

लेकिन क्या सच में ऐसा है ? क्या भाजपा बनारस से सटी हुई सीटों पर कमाल करने जा रही है, जहां उसकी हालत लंबे समय से खस्ता है ? वरिष्ठ पत्रकार शरद कहते हैं, ‘यहां पूर्वांचल में भाजपा की बहुत खराब स्थिति है. भाजपा जिस उद्देश्य से मोदी को यहां लाई है वे पूरा होने वाला नहीं है. पूर्वांचल में उसकी स्थिति सुधरने की की सूरत दिखाई नहीं देती.’

बनारस में वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति को देखते हुए मोदी की जीत पर बहुत कम लोग ऐसे हैं जो संदेह व्यक्त करते हैं. जानकार भी मानते हैं कि मोदी के बनारस जैसे भाजपाई गढ़ से चुनाव जीतने में कोई अड़चन नहीं है. ऐसे में बनारस की गलियों में सवाल मोदी की जीत का नहीं है बल्कि उस अंतर का है जिससे मोदी जीतेंगे. शरद करते हैं, ‘बनारस में मोदी जीतेंगे या नहीं ये प्रश्न ही नहीं. प्रश्न ये है कि कितने वेटों से वे जीतेंगे. वेट प्रतिशत से तय होगा कि वे वास्तव में जीते हैं या नहीं.’

इस तरह मोदी की बनारस से विजय उनके जीतने से नहीं बल्कि उन मतों के अंतर से नापी जाएगी जिससे वे यहां से जीतेंगे. संघ के एक स्थानीय प्रचारक कहते हैं, ‘देखिए पिछली बार यहां से मुरली मनोहर जोशी मात्र 17 हजार वेटों से जीत पाए थे. उस जीत को क्या आप जीत कहेंगे. उसी तरह से मोदी को लेकर पार्टी ने जो पूरे देश में माहौल बनाया उसके बाद अगर बहुत बड़े अंतर से मोदी नहीं जीते तो फिर वे जीत हार से भी ज्यादा शर्मनाक होगी. इसके साथ ही ये भी देखा जाएगा कि मोदी की लहर पूर्वांचल में पार्टी को कितना ऊपर उठाती है.’

खैर फिलहाल मोदी के सामने अरविंद केजरीवाल ताल ठोक रहे हैं. केजरीवाल का दावा है कि मोदी बनारस से हार रहे हैं. जानकार बताते हैं कि केजरीवाल के काशी पहुंचने पर भले ही कुछ लोगों ने उन पर अंडे और स्याही फेंक कर उनका विरोध किया ल, किन बनारस में उनको लेकर एक कौतुहल का माहौल है. हालाकि ये कौतुहल वेट में कितना तब्दील होगा ये तो भविष्य बताएगा. लेकिन मुस्लिम जनसंख्या की तरफ से केजरीवाल के प्रति एक लगाव जरूर दिखाई देता है. शरद कहते हैं, ‘मुसलमानों को लगता है कि यही आदमी नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सकता है. ये मुस्लिम विरोधी नहीं है. और दिल्ली में सत्ता को ठोकर मारकर यहां आया है.’

हालाकि एक तबका बनारस के 22 फीसदी मुस्लिम आबादी में से दो फीसदी के करीब व्यापारी वर्ग के मोदी के पक्ष में मतदान करने की संभावना भी जताता है. ऐसी भी खबर है कि भाजपा बनारस में मुसलमानों को मोदी के पक्ष में जोड़ने के लिए गुजरात से मुसलमानों का एक दल बनारस लाने जा रही है. दैनिक आज से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार देवकांत पाठक कहते हैं, ‘बनारस शहर में तो अरविंद की स्थिति ठीक नहीं है लेकिन शहर के बाहर आस-पास के ग्रामीण इलाकों में अरविंद के प्रति थोड़ा लगाव दिखता है. कारण बताते हुए वे कहते हैं, आप पास के क्षेत्रों में जमीन अधिग्रहण भी एक बड़ा मुद्दा है. ऐसे में किसानों को लगता है कि ये आदमी अधिग्रहण विरोधी है और वे उनकी लड़ाई लड़ सकता है.’

शरद कहते हैं, ‘शहर के पढ़े लिखे एलिट टाइप लोगों भी अरविंद को लेकर चर्चा है. लेकिन ये चर्चा वेटों में कितना बदलेगी कहा नहीं जा सकता.’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here