राजनीति का माध्यम बन रहीं फ़िल्में
फ़िल्मों की सफलता-असफलता का ठेका क्यों लेने लगे हैं नेता?
बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जहाँ पैसा बरसता है, वहाँ झगड़ा भी होता है; राजनीति भी होती है। मगर फ़िल्मों के मामले राजनीतिक लोग हस्तक्षेप करने लगे हैं, जो कुछ ठीक संकेत नहीं हैं। कोई चार-पाँच साल से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फ़िल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड का अड्डा उत्तर प्रदेश में बनाना चाहते हैं, यह अलग बात है कि उन्हें अभी तक इसमें सफलता नहीं मिली है मगर कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हार नहीं मानी है।
ऐसे ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी फ़िल्मों में रुचि रखते हैं। वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी उनके प्रमुख शौ$क हैं। यहाँ तक तो ठीक है, मगर जब यही राजनीतिक लोग फ़िल्मों की सफलता एवं असफलता का पर्याय बनने लगें, तो इसे ठीक नहीं माना जा सकता। फ़िल्मों की सफलता एवं असफलता का ठेका लेना देश के कार्यों में लगे लोगों को नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह कार्य दर्शकों का है। फ़िल्म की सफलता के लिए प्रयास करने का कार्य फ़िल्म के निदेशक एवं कलाकारों का है। फ़िल्म को पास करना भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन आने वाले केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड या भारतीय सेंसर बोर्ड का है, जो कि फ़िल्मों, टीवी धारावाहिकों, टीवी विज्ञापनों एवं अन्य प्रकार की दृश्य सामग्री की समीक्षा करने सम्बन्धी विनियामक निकाय है।
सेंसर बोर्ड के नाम से प्रसिद्ध सिनेमैटोग्राफ अधिनियम-1952 के तहत स्थापित केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड में एक अध्यक्ष के अतिरिक्त 25 ग़ैर-सरकारी सस्दयों का होना स्पष्ट करता है कि फ़िल्मों में राजनीतिक हस्तक्षेप के लिए कोई जगह नहीं है। इस बोर्ड का कार्यालय भी मुंबई में है एवं इसके क्षेत्रीय कार्यालय बैंगलोर, कोलकाता, चेन्नई, कटक, गुवाहाटी, हैदराबाद, नई दिल्ली एवं तिरुवनंतपुरम में हैं। सेंसर बोर्ड की अनुमति के बाद ही कोई फ़िल्म रिलीज होती है, जिसके लिए वह प्रमाण-पत्र जारी करता है।
भारतीय सेंसर बोर्ड को नवनिर्मित फ़िल्मों, टीवी धारावाहिकों, टीवी विज्ञापनों एवं अन्य दृश्य सामग्री को विभिन्न श्रेणियाँ प्रदान करने का एवं उन्हें स्वीकार अथवा अस्वीकार करने का अधिकार है। मगर अब स्थिति यह आ गयी है कि स्वयं बड़े-बड़े राजनीतिक लोग फ़िल्मों की सफलता एवं असफलता के लिए प्रयास करने लगे हैं, जिसके लिए वे अब कुछ वर्षों से खुलकर सामने आ रहे हैं। ये राजनीतिक लोग जिन फ़िल्मों का समर्थन करते हैं, उन्हें इनके समर्थक देखने के लिए लालायित रहते हैं; मगर जिन फ़िल्मों का ये राजनीतिक लोग विरोध करते हैं, उन फ़िल्मों का इनके समर्थक हर हाल में विरोध करते हैं। मगर समाज का आईना माने जाने वाले फ़िल्म उद्योग में इस हद तक सरकारों का हस्तक्षेप अच्छी बात नहीं है।
उत्तर प्रदेश में द केरला स्टोरी कर मुक्त
इन दिनों विवाद फ़िल्म ‘द केरला स्टोरी’ को लेकर चल रहा है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस फ़िल्म को अपने राज्य में पहले ही कर मुक्त कर चुके हैं। इसके बाद अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ‘द केरला स्टोरी’ को कर मुक्त करने के अतिरिक्त इसे पूरे मंत्रिमंडल के साथ देखने के बाद कहा कि अघोषित आतंकवाद का एजेंडा है लव जिहाद। वास्तव में यह फ़िल्म कुछ हिन्दू युवतियों के अगवा होने एवं उनके धर्म परिवर्तन की कहानी है। अदा शर्मा की इस फ़िल्म का ट्रेलर रिलीज होने पर ही बवाल शुरू हो गया था, अब यह विवाद न्यायालय तक पहुँच गया है।
पश्चिम बंगाल एवं तमिलनाडु में इस फ़िल्म पर पहले ही प्रतिबंद लगा दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस फ़िल्म की करुण कहानी को लेकर भावनात्मक टिप्पणी कर चुके हैं। केंद्रीय मंत्री सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बंगाल एवं तमिलनाडु में फ़िल्म को प्रतिबंधित करने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा है कि पश्चिम बंगाल फ़िल्म को बैन करके अन्याय कर रहा है।
तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति का यह खेल भारत की बेटियों की ज़िन्दगी की बर्बाद कर रहा है। इधर ‘द केरला स्टोरी’ के निर्माता विपुल शाह ने बंगाल में फ़िल्म के बैन करने को लेकर नाराज़गी जतायी है। उन्होंने कहा है कि हमारी फ़िल्म आतंकवाद पर है, जिसमें तीन लड़कियों की कहानी है। यह समस्या केवल भारत की ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की है। पश्चिम बंगाल में फ़िल्म पर प्रतिबंध को लेकर हम $कानूनी प्रावधानों के तहत लड़ेंगे।
कुल मिलाकर इस फ़िल्म को उन राज्यों में बढ़ावा दिया जा रहा है, जहाँ भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं। इसी के चलते पहले मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सिंह सरकार ने ‘द केरला स्टोरी’ को कर मुक्त किया, उसके बाद उत्तर प्रदेश में भी इस फ़िल्म को कर मुक्त कर दिया गया। अन्य राज्यों में भी इस फ़िल्म को लेकर समर्थन एवं विरोध जारी है।
कई फ़िल्में हो चुकी हैं कर मुक्त
फ़िल्मों में राजनीतिक लोगों की दिलचस्पी कोई नयी बात नहीं है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पहले पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत मुलायम सिंह यादव भी फ़िल्मों में रुचि रखते थे, मगर मुलायम सिंह यादव के बारे में जगज़ाहिर है कि वे कला प्रेमी थे। साहित्यकारों का जो सम्मान मुलायम सिंह यादव ने किया, वो सम्मान अब बिरले ही राजनीतिक लोग करते हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी फ़िल्मों में रुचि रखते हैं। उन्होंने सलमान ख़ान की फ़िल्म बजरंगी भाईजान को प्रदेश में कर मुक्त कर दिया था। इससे पहले भी कई फ़िल्मों को प्रदेश की पूर्ववर्ती सरकारों ने कर मुक्त किया है, जिसमें ‘हमारी अधूरी कहानी’, ‘पीके’, ‘तेवर’, ‘डेढ़ इश्क़िया’, ‘मैरीकॉम’, ‘मर्दानी’ जैसी फ़िल्में कर मुक्त हो चुकी हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ‘द केरला स्टोरी’ से पहले कई फ़िल्मों को बढ़ावा दिया है एवं कई फ़िल्मों का विरोध भी उनके माध्यम से सामने आया है।