
कुछ समय बाद जब पूरे देश में लोकसभा चुनाव होंगे, उसके कुछ ही समय बाद हरियाणा में विधानसभा का भी चुनाव होना है. जहां सामने दो-दो चुनाव खड़े हों वहां राजनीतिक गतिविधियां बढ़ना स्वाभाविक ही है. आम आदमी पार्टी के प्रवेश ने जहां हरियाणा के मुकाबले में एक और कोण जोड़ दिया है वहीं पहले से राज्य में राजनीति कर रही पार्टियां भी उथल-पुथल से गुजर रही हैं. राज्य का चुनावी तापमान जानने के लिए लिए प्रदेश के राजनीतिक दलों के स्वास्थ्य का परीक्षण जरुरी है. शुरुआत करते हैं उस कांग्रेस से जो राज्य में पिछले 10 सालों से सत्ता पर काबिज है.
कांग्रेस
भुपेंदर सिंह हुड्डा सरकार हरियाणा में अपने शासन का एक दशक पूरा करने जा रही है. 2009 के लोकसभा चुनावों में भी पार्टी को बहुत अच्छी सफलता मिली थी. आज हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से नौ उसकी झोली में हैं. पिछले साल ही राज्य में प्रमुख विपक्षी दल और कांग्रेस की कट्टर विरोधी इंडियन नेशलन लोकदल (आईएनएलडी) के नेता ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला को कोर्ट ने भ्रष्टाचार के एक मामले में 10 साल की सजा सुनाकर जेल भेज दिया. दोनों जेल में हंै. 2009 के नतीजों और मुख्य विपक्षी पार्टी के प्रमुख नेताओं के जेल जाने के बाद पैदा हुई परिस्थितियों में माना जा रहा था कि कांग्रेस की स्थिति आगामी चुनावों में भी ठीक-ठाक रहने वाली है. लेकिन पिछले आठ महीने में सूबे और कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में जिस तरह के परिवर्तन हुए हैं उससे पार्टी की उम्मीदों को गहरा आघात लगा है. राज्य की राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार नवीन एस ग्रेवाल कहते हैं, ‘आज स्थिति यह है कि जिस पार्टी के पास 10 में नौ लोकसभा सीटें है उसके लिए 2014 में रोहतक छोड़कर किसी और सीट के जीतने की संभावना नहीं है. आगामी विधानसभा चुनाव में भी पार्टी हार की संभावना को काफी हद तक स्वीकार कर चुकी है.’ पार्टी को अपनी खिसकती जमीन का अहसास है इसलिए उसने कुछ आपातकालीन उपाय भी किए हैं. सालों से लंबित पड़े प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर टीम राहुल के सदस्य और लोकसभा सांसद अशोक तंवर को नियुक्त किया गया है. लेकिन भागाभागी में देर से लिया गया यह फैसला कांग्रेस का कितना भला कर पाएगा इसके बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.
पिछले साल फरवरी में जब आईएनएलडी के मुखिया ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला को सजा मिली तब कहा गया कि अब प्रदेश कांग्रेस की चुनौतियां खत्म हो गई हैं. एक तरफ मुख्य विपक्षी दल के कर्ताधर्ताओं को जेल हो चुकी थी तो दूसरी तरफ राज्य में हरियाणा जनहित कांग्रेस-भाजपा गठबंधन की राजनीतिक हैसियत ऐसी नहीं थी कि वह कांग्रेस को कोई खास चुनौती दे पाए. लेकिन बिना बाधा के 2014 की लोकसभा और विधानसभा जीतने का सपना देख रहे मुख्यमंत्री हुड्डा और पूरी पार्टी को आज आंतरिक गुटबाजी ने जैसे पस्त कर दिया है. कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता अपनी ही पार्टी और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. इनमें वरिष्ठ नेता और राज्य सभा सदस्य चौधरी वीरेंद्र सिंह, राज्य सभा सांसद कुमारी शैलजा, राज्य सभा सांसद ईश्वर सिंह, और फरीदाबाद से सांसद अवतार सिंह भड़ाना प्रमुख हैं. कोई भेदभाव का आरोप लगा रहा है, कोई मुख्यमंत्री बनने के सपने संजो रहा है तो कोई प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने के लिए प्रयासरत है. इस सबका शिकार अंततः पार्टी हो रही है. जानकर बताते हैं कि इसी गुटबाजी के कारण आगामी लोकसभा चुनाव में उसकी फजीहत होनी निश्चित है. विधानसभा चुनाव में इस फजीहत का विस्तार भर होगा. बीते ही दिनों गुड़गांव से पार्टी के सांसद रहे राव इंद्रजीत सिंह भाजपा में चले गए. इससे पहले राव ने हर संभव तरीके से न सिर्फ हुड्डा की फजीहत कराने की कोशिश की बल्कि उनके विरोध की चिंगारी रॉबर्ट वाड्रा तक भी पहुंच गई थी.
10 साल से राज्य की कमान संभाले कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर का भी सामना कर रही है. इसके अलावा उसे कांग्रेसनीत केंद्र सरकार के पिछले 10 सालों के किए धरे का भी नुकसान उठाना होगा. गुटबाजी के साथ ये कारक जैसे कोढ़ में खाज बनकर आए हैं. राजनीतिक विश्लेषक बलवंत तक्षक कहते हैं, ‘राज्य में पार्टी की हालत बहुत खराब है. सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं. साथ में सत्ता विरोधी लहर और आंतरिक गुटबाजी के कारण पार्टी बुरे समय की तरफ अग्रसर है.’
लेकिन सबसे बड़ी चुनौती उस मुख्य विपक्षी पार्टी यानी आईएनएलडी की तरफ से आ रही है जिसे साल भर पहले वह राजनीतिक रुप से मरा हुआ मान चुकी थी. हाल के दिनों में आईएनएलडी अपने शीर्ष नेतृत्व की अनुपस्थिति के बावजूद कांग्रेस सरकार के लिए डरावना सपना बन चुकी है. कुछ महीने पहले उसने सीडियों की एक पूरी सीरीज जारी की जिसमें कैमरे के सामने तमाम कांग्रेस के विधायक, नेता और उनके परिजन घूस के एवज में लैंड यूज बदलवाने (सीएलयू) की बात करते हुए दिखाई दिए. सीडी में हुड्डा सरकार में मुख्य संसदीय सचिव और बवानीखेड़ा से विधायक तथा हुड्डा के करीबी रामकिशन फौजी भी लेनदेन करते दिखे. इसमें वे लैंड यूज बदलवने के बदले पांच करोड़ रु की रिश्वत मांगते दिखाई दिए थे. रामकिशन के अलावा प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री राव नरेंद्र सिंह, मुख्य संसदीय सचिव विनोद भयाना, रतिया के विधायक जरनैल सिंह और बरवाला के विधायक रामनिवास घोड़ेला की सीएलयू और अन्य मामलों में कथित रूप से काम करवाने के बदले करोड़ों रुपये मांगने वाले टेप भी आईएनएलडी ने जारी किए हैं. इन सीडियों ने कांग्रेस पर न सिर्फ चौतरफा दबाव बनाने का काम किया है बल्कि जो कांग्रेस कुछ समय पहले तक विजय रथ पर सवार होने की तैयारी कर रही थी उसके रास्ते में जबर्दस्त ब्रेकर खड़े कर दिए हैं.
चुनौती यहीं खत्म नही होती. लोकदल को जमीनी स्तर पर जाट समाज के बड़े तबके से सहानुभूति भी मिल रही है. यह हरियाणा का वह प्रभावशाली समूह है जो ओमप्रकाश चौटाला और अजय चौटाला के जेल जाने से दुखी है. ग्रेवाल कहते हैं, ‘राज्य सरकार के कई कर्मचारी संगठन भी सरकार के खिलाफ सड़कों पर हैं. ऐसे में कांग्रेस की नैया पार लगती तो बहुत मुश्किल दिख रही है.

हालांकि कांग्रेस इन सब बातों में कोई गंभीर समस्या नहीं देखती. गुटबाजी, सत्ता विरोधी लहर और अंदरूनी खींचतान जैसे आरोपों के जवाब में हरियाणा कांग्रेस के प्रवक्ता करमवीर सैनी कहते हैं, ‘ कांग्रेस में नेताओं की कतार बहुत लंबी है. जिसे आप गुटबाजी कह रहे हैं वह असल में सत्ता पाने की स्वाभाविक इच्छा है. पार्टी का हर आदमी मुख्यमंत्री बनना चाहता है, अब सीएम तो एक ही आदमी बन सकता है. जो आज आपको नाराज दिख रहे हैं चुनाव के समय एक साथ आ जाएंगे. हुड्डाजी के कद का दूसरा नेता पूरे हरियाणा में नहीं है. हम लोकसभा की सारी की सारी सीटें भी जीतेंगे और विधानसभा में भी बहुमत हासिल करेंगे. राव इंद्रजीत सिंह जैसे लोग सत्ता के लालची हैं. जल्द ही उन्हें अपनी गलती का अहसास होगा.’
पार्टी के रणनीतिकारों का एक और भी आकलन है. हरियाणा कांग्रेस के एक नेता कहते हैं, ‘बहुत संभव है कि केंद्र सरकार के खिलाफ देश में जो माहौल है उसका नुकसान हमें लोकसभा चुनाव में उठाना पड़े. लेकिन विधानसभा चुनाव तक आते-आते जनता का गुस्सा खत्म हो जाएगा. जनता फिर से हमारे साथ आ जाएगी.’ जिस बात पर कांग्रेस की उम्मीद कायम है उसका जिक्र करते हुए वे तर्क देते हैं, ‘हरियाणा का जाट समुदाय जाट के अलावा किसी और समुदाय के नेता को अपना सीएम स्वीकार नहीं करेगा. चूंकि चौटाला पिता-पुत्र जेल में है और उस परिवार के दूसरे किसी व्यक्ति का कद हुड्डा के बराबर नहीं है तो ऐसे में जाट समुदाय अपने आदमी के रूप में फिर से हुड्डा को ही चुनेगा.’ जानकार भी मानते हैं कि अगर ओमप्रकाश चौटाला जेल से बाहर नहीं आते तो ऐसी स्थिति में हुड्डा इस लाइन को आगे बढ़ा सकते हैं कि ओमप्रकाश चौटाला तो है नहीं. चौटाला परिवार के बाकी लोग राजनीति में अभी नौसिखिए हैं. वरिष्ठ पत्रकार मीनाक्षी शर्मा कहती हैं, ‘जाट मतदाता हुड्डा से इस बात को लेकर खफा तो हैं कि कैसे एक जाट ने दूसरे जाट को जेल भिजवा दिया. लेकिन उसके पास कोई और विकल्प है नहीं. ऐसे में वह हुड्डा को जीवनदान देने के बारे में जरूर सोच सकता है.’ डूब रही कांग्रेस को आप रूपी तिनके का सहारा भी मिल सकता है. कांग्रेस को उम्मीद है कि आप के आने से मुकाबला चौतरफा हो जाएगा और सत्ता विरोधी लहर बंटेगी. इसका सीधा फायदा कांग्रेस को ही होगा. मीनाक्षी कहती हैं, ‘राज्य में कांग्रेस के खिलाफ माहौल तो है लेकिन वह किसी के पक्ष में नहीं हैं. ऐसे में सत्ता विरोधी वोटों का बंटवारा तय है.’