यह कैसी शराबबंदी!

बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बावज़ूद शराब उपलब्ध, मौतों पर सियासत

बिहार एक बार फिर अपनी शराबबंदी नीति के कारण चर्चा में है। इस चर्चा का मुख्य फोकस हाल ही में बिहार का सारण ज़हरीला शराब कांड है। बिहार सरकार के अनुसार, इस कांड में 38 लोगों की जान गयीं, जबकि सांसद व भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में दावा किया कि बिहार में ज़हरीली शराब पीने से 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इस सूबे में सन् 2016 से लागू शराबबंदी नीति के बाद से आजतक ज़हरीली शराब पीने से मरने वालों व विकलांग होने की ख़बरें आती रहती हैं; लेकिन इस बार भाजपा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर अति अक्रामक रुख़ अपनाये हुए है। यह तेवर पटना में बिहार विधानसभा से लेकर दिल्ली में संसद में अपनी छाप छोड़ रहे हैं। ऐसा लगता है कि जद(यू) नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस मुद्दे के बहाने भाजपा घेर रही है और कहीं-न-कहीं अपनी ख़ुन्नस निकाल रही है, क्योंकि नीतीश कुमार ने एनडीए से बाहर निकल राष्ट्रीय जनता दल के साथ सरकार बना ली। सारण शराब कांड को लेकर राजनीति गरमा गयी है।

बहरहाल मुद्दा यह है कि बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू है और सुशासन बाबू के तमगे से मशहूर सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राज में वहाँ ज़हरीली शराब के सेवन से लोग क्यों मर रहे हैं? ग़रीब लोगों तक यह शराब कौन पहुँचाता है? कैसे पहुँचती है? इस पर निगरानी रखने वाला तंत्र विफल क्यों है? बिहार पुलिस, राजनेता क्या करते हैं? इन सब की ओर से आँखें मूँदने, लापरवाही, कर्तव्य का ईमानदारी से पालन नहीं करने का $खामियाजा इस सूबे की ग़रीब, दलित जनता चुका रही है और किशोरों को इस धंधे में लपेटा जा रहा है। बिहार सरकार का दावा है कि वह शराब की बुराइयों को आम जनता तक पहुँचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाती है; लेकिन वह कितना कारगर है, यह कौन जानता है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि वह इस 25 दिसंबर से शराब पीने के ख़िलाफ़ जागरूकता यात्रा पर निकलेंगे। और वह अपने इस रुख़ पर सख़्ती से क़ायम हैं कि ‘जो शराब पीएगा, वह मरेगा।’ उन्होंने बिहार विधानसभा में साफ़ कहा कि शराब पीने से हुई मौत पर उनके परिवारजनों को मुआवज़ा नहीं दिया जाएगा। विपक्षी दल भाजपा मुआवज़ा की माँग कर रही है। मुख्यमंत्री ने इसके एवज में दलील दी कि कोई शराब पीये, और गंदी शराब पीये, उसको क्या हम लोग मदद करेंगे? सवाल ही पैदा नहीं होता है। शराब पीने वालों से कोई हमदर्दी नहीं होनी चाहिए।

सवाल यह है कि शासन का मुखिया होने के नाते उनकी इस सख़्ती का लहज़ा शराबबंदी को लेकर ज़मीनी स्तर पर अमल में क्यों नहीं नज़र आता? क्या नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री होने के नाते अपनी ग़लतियों व दूसरों की ग़लतियों से सबक़ नहीं लेना चाहिए? यह एक कड़वा सच है कि जहाँ भी शराबबंदी लागू की गयी और जिन राज्यों में आज भी है, वहाँ ज़हरीली शराब से मरने वालों की ख़बरें आती रहती हैं। वहाँ शराब मिलती है अंतर इतना है कि खुलेआम न मिलकर चोर दरवाज़े से मिलती है। मध्यम आयु वर्ग का तबक़ा व अमीर तबक़ा मानव के लिए सुरक्षित व महँगी शराब का इंतज़ाम आसानी से कर लेता है। वहीं ग़रीब तबक़ा अंतत: मानव के लिए असुरक्षित शराब के सेवन से कई बार अपनी जान गँवा बैठता है।