मनुवादी माया?

Mayawati
फोटोः शैलेंद्र पाण्डेय
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फोटोः शैलेंद्र पाण्डेय

वे मनुवादी हैं, यह एक ऐसा आरोप है जो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) नेता मायावती ने समय-समय पर तमाम राजनीतिक दलों से लेकर मीडिया तक पर लगाया है. उनके अनुसार दूसरी पार्टियों में दलित समाज के लोगों के लिए जगह नहीं है. मायावती मानती हैं कि बाकी पार्टियां सवर्णवादी हैं क्योंकि वे दलितों को प्रतिनिधित्व नहीं देती, उन्हें टिकट नहीं देतीं.

इसका दूसरा मतलब यह है कि बसपा में तस्वीर ऐसी नहीं होगी. यानी जो पार्टी खुद को दलितों की पार्टी कहती है, जिसका उदय दलित आंदोलन से हुआ है, जिसका वोट बैंक दलित माने जाते हैं, जो दलितों की प्रतिनिधि पार्टी कही जाती है, उसमें वह नहीं होना चाहिए जिसका आरोप मायावती दूसरी पार्टियों पर लगाती हैं. लेकिन क्या ऐसा वास्तव में है?

हाल ही में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों की सूची जारी की. लखनऊ में उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करते हुए मायावती ने कहा कि उन्होंने टिकट देने में समाज के हर वर्ग का ख्याल रखा है और सभी वर्गों को टिकट के माध्यम से उचित प्रतिनिधित्व दिया गया है. बसपा द्वारा बांटे गए इन 80 टिकटों में से 21 ब्राह्मण प्रत्याशियों के खाते में गई हैं तो आठ सीटों पर क्षत्रियों को टिकट दिया गया है. 19  सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार बनाए गए तो 15 सीटों पर पार्टी ने पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले उम्मीदवार उतारे हैं. बाकी बची हुई 17 लोकसभा सीटें आरक्षित हैं सो वहां से पार्टी ने अनुसूचित जाति के लोगों को टिकट दिया है. इन 17 में से 10 जाटव, छह पासी और एक कश्यप समुदाय से हैं.

पार्टी द्वारा बांटे इन टिकटों को अगर बेहद ध्यान से देखें तो एक दिलचस्प तस्वीर उभरती है. पता चलता है कि पिछले लोकसभा चुनावों की तर्ज पर पार्टी ने इस बार भी दलितों को सिर्फ सुरक्षित सीट से टिकट दिया है. अनुसूचित जाति के किसी व्यक्ति को इन सुरक्षित सीटों के अलावा किसी भी और सीट से टिकट नहीं दिया गया. सुरक्षित सीटों पर अनुसूचित जाति के व्यक्ति के अलावा कोई और नहीं खड़ा हो सकता है, ऐसे में अगर दूसरी तरह से देखें तो कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में पार्टी ने अनुसूचित जाति के किसी भी व्यक्ति को टिकट नहीं दिया.

स्वाभाविक सवाल उठता है कि दलितों की सबसे बड़ी हितैषी होने का दावा करने वाली पार्टी उसी दलित समाज के व्यक्ति को सुरक्षित सीट से बाहर टिकट क्यों नहीं देती. भाजपा हो या कांग्रेस या फिर कोई अन्य पार्टी, सुरक्षित सीटों पर तो सबको आरक्षित समुदाय का उम्मीदवार ही उतारना होता है. तो फिर दलितों की पार्टी कहे जाने वाली बसपा बाकियों से कहां अलग हुई? मायावती के मुताबिक दूसरे दल इसलिए मनुवादी हैं कि उनमें दलित समाज के लोगों के लिए जगह नहीं है या वे दलितों को टिकट नहीं देते, लेकिन उनकी पार्टी भी तो ऐसा करती दिख रही है.

तो क्या मायावती मनुवाद से लड़ते लड़ते खुद मनुवादी हो गई हैं ? उनके आलोचक कहते हैं कि आज बसपा की स्थिति ऐसी है कि उसमें दलितों को न टिकट मिल रहा है और न उन्हें पार्टी में कोई खास स्थान हासिल हो रहा है. कहा जा रहा है कि अगर सुरक्षित सीटों पर दलितों को ही टिकट देने की बाध्यता न होती तो शायद बसपा किसी दलित को टिकट देती ही नहीं.

मायावती की जीवनी ‘बहन जी’ के लेखक और वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस इस पर कहते हैं, ‘ ऐसा नहीं है कि यह कोई आज हो रहा है कि बसपा में दलितों को टिकट नहीं दिया जा रहा है. यह सब तो कांशीराम के जमाने से हो रहा है. बसपा में टिकट देने का एकमात्र आधार है कि व्यक्ति सीट जीत सकता है या नहीं. चूंकि सामान्य सीटों पर किसी दलित के जीतने की संभावना न के बराबर रहती है इसीलिए इन सीटों पर दलितो को टिकट नहीं मिलता. ’

बोस की बात को विस्तार देते हुए वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान कहते हैं, ‘बसपा का टिकट बांटने का तरीका बहुत सीधा है. ये सिर्फ दो चीजें देखते हैं. पहला जो टिकट चाह रहा है वह चुनाव जीत सकता है या नहीं और दूसरा, उसके पास पैसा कितना है. पहले पार्टी उनको टिकट देती है जो जीत सकता है. बाकी जिन सीटों पर पार्टी को लगता है कि वह जीत नहीं सकती वहां वह पैसा लेकर टिकट बेच देती है. पैसा दो और टिकट लो. ऐसे में पार्टी के पास दलितों को टिकट देने की कहां फुर्सत है ?’ बोस एक रोचक तथ्य की तरफ इशारा करते हुए आगे कहते हैं, ‘ बसपा में टिकट पाने के लिए आपको पार्टी का कार्यकर्ता बनने की जरूरत भी नहीं है. पार्टी किसी को भी टिकट दे देती है. बस आपका अपना एक आधार होना चाहिए. आप आधार लेकर आते हैं और फिर पार्टी उस क्षेत्र में अपना दलित वोट आपको ट्रांसफर कर देती है.’

हालांकि दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर विवेक कुमार दलितों को टिकट न देने के सवाल पर बसपा का बचाव करते हुए कहते हैं, ‘भारतीय समाज के जातिवादी होने का यह सबसे बेहतर प्रमाण है. सभी को पता है कि किसी सामान्य सीट से किसी दलित का जीत पाना लगभग असंभव है. क्या आपको लगता है कि अगर बसपा किसी दलित को गैरसुरक्षित सीट से खड़ा करती है तो सर्वण लोग उसे वोट देंगे? नहीं देंगे. यही कारण है कि बसपा चाहकर भी किसी दलित को टिकट नहीं दे पाती. जैसे ही कोई दलित खड़ा होता है दूसरी जातियां उसके खिलाफ लामबंद हो जाती हैं.’

जीत की संभावना न होने के कारण बसपा दलित व्यक्ति को सामान्य सीट से टिकट नहीं देती. तो उन सीटों पर पार्टी का हाल क्या है जो सुरक्षित कही जाती हैं? यूपी की सुरक्षित लोकसभा सीटों का वर्तमान और इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि पार्टी का इन सीटों पर प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा है. उदाहरण के लिए 2009 के लोकसभा चुनाव में इन 17 सुरक्षित सीटों में से सपा के हिस्से में जहां नौ सीटें आईं वहीं बसपा को मात्र दो सीटें ही हासिल हुईं. बसपा सिर्फ लालगंज और मिश्रिख सुरक्षित सीट जीत पाने में ही सफल रही थी. इतिहास में भी उसकी स्थिति कमोबेश ऐसी ही रही है. 1999 में भाजपा की सात के मुकाबले बसपा को पांच सीटें मिलीं. 2004 में सपा को आठ तो बसपा को पांच सीटें मिलीं.

2 COMMENTS

  1. kuchh deek kaha hai aap yesa hi mp me fhool singh baraiya ko 2003 me party se alag kar diya jisse cogresh ki sarkar ban sake our apne syarth ke liye mayabati ne sabhi bahujan samajh ko barbaad kar diya
    jay bhim

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