गाजियाबाद सीट पर चुनाव दिलचस्प होगा क्योंकि भाजपा ने ‘फौजी’, कांग्रेस ने ‘मौजी’ और आप ने ‘भौजी’ को टिकट दिया है.’ सोशल मीडिया पर इस सीट की चर्चा कुछ इसी तरह से हो रही है. इस चर्चा में ‘फौजी’ हैं पूर्व थल सेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह, ‘मौजी’ हैं राज बब्बर और ‘भौजी’ हैं आप प्रत्याशी शाजिया इल्मी. गाजियाबाद सीट पर टक्कर इन्हीं तीनों के बीच मानी जा रही है. दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इस संसदीय सीट के अंतर्गत पांच विधान सभाएं आती हैं. इनमें से चार पर बसपा का कब्जा है. इसके बावजूद भी बसपा प्रत्याशी मुकुल उपाध्याय को जीत की दौड़ से लगभग बाहर ही समझा जा रहा है. वैसे कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बसपा यदि दलित और ब्राह्मणों दोनों को साधने में कामयाब रही तो उपाध्याय भी जीत के करीब पहुंच सकते हैं.
यह सीट इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि पहली बार भारतीय सेना का सबसे बड़ा अधिकारी लोकसभा चुनाव में उतरा है. लेकिन जनरल वीके सिंह को यहां अपने ही लोगों का विरोध भी झेलना पड़ रहा है. भाजपा कार्यकर्ता किसी स्थानीय को टिकट दिए जाने की मांग कर रहे थे. उनका मानना है कि जनरल वीके सिंह का यहां कोई व्यक्तिगत जनाधार नहीं है. कार्यकर्ता काले झंडे दिखाकर जनरल सिंह का विरोध भी कर चुके हैं. ऐसे में थल सेना के पूर्व अध्यक्ष अपनी पहली चुनावी उड़ान सिर्फ मोदी की कथित हवा के भरोसे ही भर रहे हैं. इस सीट का पारंपरिक तौर से भाजपा का होना जनरल सिंह को जरूर मजबूती देता है. 2004 लोकसभा चुनाव को यदि अपवादस्वरूप छोड़ दिया जाए तो 1991 से इस सीट पर भाजपा प्रत्याशियों का ही कब्जा रहा है.
सेना के जवानों से खेतों के किसानों की ओर बढ़ रहे जनरल सिंह को मुख्य चुनौती इल्मी और फिल्मी से है. दिल्ली विधान सभा चुनावों में मात्र 326 वोटों से हारने वाली शाजिया इल्मी के साथ लोगों की सहानुभूति है. गाजियाबाद का आम आदमी पार्टी की कर्मभूमि होना भी शाजिया को मजबूत करता है. पार्टी का मुख्य कार्यालय और अरविंद केजरीवाल का घर दोनों इसी संसदीय क्षेत्र में हंै. स्थानीय लोग बताते हैं कि दिल्ली में आप की सरकार के दौरान इस क्षेत्र में भी पार्टी की लोकप्रियता बढ़ रही थी. लेकिन सरकार गिरने के बाद से यहां पार्टी कुछ कमजोर हुई है.