रचनाकार अगर एक्टिविस्ट भी हो तो उसकी रचनाओं की धार अलग नजर आती है. गीता गैरोला के कविता संग्रह नूपीलान की मायरा पायबी (स्त्री युद्ध की जलती मशालें) की कविताएं इस बात का सटीक उदाहरण हैं. इरोम शर्मिला के साथ-साथ देश और दुनिया की तमाम संघर्षरत महिलाओं को समर्पित इन कविताओं के जरिए कवयित्री चुप्पी और आवाज के बीच एक पुल कायम करना चाहती हैं. शायद इसीलिए बोल की लब आजाद हैं तेरे शीर्षक वाली कविता में वह कहती हैं-
बोलने की कीमत चुकानी होगी/ न बोलने की कीमत भी देनी ही होगी/ तब तय करें/ बोल कर मरना सार्थक है/ या बिना बोले.
संग्रह में प्रकाशित 95 कविताओं को पढ़ते हुए स्त्री विमर्श और स्त्री संघर्ष को एकदम अलग-अलग ढंग से रेखांकित किया जा सकता है. ये कविताएं महिलाओं के रोजमर्रा के जीवन से जुड़े संघर्षों की कविताएं हैं. एक बानगी देखिए-