मध्यवर्ग के द्वन्द्व

Book Review-1 for web

पुस्तक : भूलने का रास्ता

कहानीकार : राजेन्द्र दानी

मूल्य : 200 रुपये

प्रकाशन : नयी किताब, दिल्ली

मिथिलेश प्रियदर्शी

‘नयी किताब’ प्रकाशन से हाल ही में प्रकाशित राजेंद्र दानी की किताब ‘भूलने का रास्ता’ में कुल पंद्रह कहानियां हैं. यह संग्रह पिछले कुछ वर्षों में हमारे भीतर कई स्तरों पर चल रहे बदलावों की कहानी बयां करता है.

कहानी ‘बाहर का उजाला’ में प्रशांत नाम के बच्चे का पात्र, जिसकी गति बिल्कुल अलहदा है, वह इस दुनिया में होते हुए भी नहीं है. बच्चों की गतिकीवाली दुनिया में वह ठीक उसी तरह से सोचता है, जैसे हममें से कई अपने बचपने में चीटियों पर पानी की बूंदें छिड़ककर उनको बारिश का, मुंह से बादल गरजने की आवाज निकालकर और उनपर टॉर्च की छिटकतीा रोशनी फेंककर बादल और बिजली का भ्रम देकर ईश्वर होने के एहसास को जीते थे. उसकी अपनी दुनिया में चारों ओर शांति है, खूबसूरती है, पर दूसरी दुनिया जिसमें उसके पिता हैं, जहां लौटना उसकी मजबूरी है, जहां विकलांग कर देनेवाली सजाएं हैं, वहां वह वापस नहीं जाना चाहता. लेकिन इसके ठीक उलट ‘विखंडन’ का सूरज यह जानकर बेहद खुश होता है कि शहर में बरसों पहले उसके पिता द्वारा बनाए गए खूबसूरत घर की कीमत करोड़ों रुपये हो चुकी है और एक बिल्डर इसे लेकर अपार्टमेंट बनाना चाहता है, जहां एक फ्लैट उसका भी होगा. वह पिता की उस दुनिया से बाहर आ जाना चाहता है, जिसमें बगीचे हैं, पौधे हैं, धूप है, ठंडी हवाएं हैं और खुशी है. सूरज इनकी बजाय करोड़ों रुपये को तरजीह देता है. ‘समाचार’ की पारुल, जो छोटी है, पर अत्यधिक जिज्ञासु है, इस दुनिया की कलाबाजियों को समझने में लगी है. एक खबर, जिसके मुताबिक एक पुल से कूदकर पिछले साल कई लोगों ने आत्महत्या की है, अब रोकथाम के लिए पुल की दीवार को ऊंचा किया जाना है. पारुल के लिए यह हतप्रभ करनेवाला है कि दीवार की ऊंचाई बढ़ाने से आत्महत्याओं को कैसे रोका जा सकता है. वह अपने सवाल लेकर हर किसी के पास जा रही है. पर हर कोई उसे टाल दे रहा है. इसी दुनिया में ‘भूलने का रास्ता’ बैरागी का है और ‘मेंडोलिन’ का किशोर भी. इन दोनों को बड़ा होने से पहले कोई नहीं जानता था. बैरागी जो बेहद गरीब था और सिनेमा की थर्ड क्लास का टिकट लेकर अंधेरे में अपनी गरीबी को भुलाने की कोशिश करता है और बाद में वह जब पैसेवाला हो गया तो उसके पास अपने जरूरतमंद दोस्त के लिए समय नहीं था. ठीक किशोर की तरह, जो बड़ा गायक बन जाने के बाद अपने यार सुर्रू को, जिसने उसे आगे बढ़ाया था, अनदेखा करने लगा था. किशोर का ‘क्लास’ बदल गया था और उसके मुफलिसी के यार उस क्लास के खांचे में मिसफिट थे.

संग्रह की कहानियां मध्यमवर्गीय समाज के ऊहापोह की भी कहानी कहती हैं. इसे सुख-सुविधाओं के मामले में ‘स्टेट्स मेंटेन’ भी करना है और इसके पास खर्च करने के लिए पैसे भी हिसाब से हैं. परिवार के बुजुर्ग, जिन्होंने संघर्ष करके एक मध्यवर्गीय हैसियत पाई है, जिनके पास अपने संघर्षों और समयों का एक ‘नॉस्टैल्जिया’ है, वे अपने पुराने जीवन-मूल्यों के साथ बची जिंदगी गुजारना चाहते हैं. पर नई पीढ़ी के ख्वाब इससे अलग हैं. उसके सुख की परिभाषा अलग है. वह कुछ भी दांव पर लगा सकता है. ‘पारगमन’, ‘स्वाद’, ‘आहट’, ‘दुख का सुख’, ‘लड़ाई’ आदि कहानियों में परिवार के पुराने सदस्यों की मनोदशाओं की कहानीकार द्वारा बारीकी से पड़ताल की गई है.