कहाँ ग़ायब हो गयीं हज़ारों लड़कियाँ?
आज नारी सुरक्षा देश का सबसे बड़ा मुद्दा है। इस समय में जब हरियाणा की महिला खिलाड़ी यौन शोषण के कथित आरोपी एक नेता के ख़िलाफ़ दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठी हैं, इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात से पिछले पाँच वर्षों में कुल 41,621 लड़कियों का लापता होना काफ़ी चौंकाने वाला है। यह उस राज्य गुजरात में हुआ है, जहाँ के बारे में सरकार और राज्य की पुलिस द्वारा दावा किया जाता है कि यहाँ महिलाएँ सबसे ज़्यादा सुरक्षित हैं। ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देते हैं।
आज जब महिला सुरक्षा को लेकर देश भर में आवाज़ें उठ रही हैं, तब कई ऐसे बेबुनियादी मुद्दे विवादों का केंद्र बने हुए हैं, जिन्हें जानबूझकर हवा दी जा रही है; लेकिन गुजरात से हज़ारों लड़कियों के ग़ायब होने पर सियासी ख़ामोशी ज़ाहिर करती है कि इसमें कहीं न कहीं राजनीतिक षड्यंत्र है। लापता लड़कियों पर बनी फ़िल्म द केरला स्टोरी में दिखायी गयी लड़कियों के ग़ायब होने की कहानी के बीच नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के द्वारा पेश गुजरात से ग़ायब होती लड़कियों के आँकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। लेकिन इससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि द केरला स्टोरी में ग़ायब दिखाई हिन्दू लड़कियों पर छाती पीटने वाले न तो गुजरात से ग़ायब हुई लड़कियों को लेकर कुछ बोल रहे हैं और न ही जंतर-मंतर पर न्याय की गुहार लगा रही महिला खिलाडिय़ों को लेकर बोल रहे हैं।
यह नहीं कहा जा सकता कि द केरला स्टोरी में ग़ायब हुई हिन्दू लड़कियों की कहानी सिरे से ग़लत है; लेकिन यह तो कहा ही जा सकता है कि जिस तरह से इस फ़िल्म को लेकर प्रधानमंत्री से लेकर कई भाजपा नेता छाती पीट रहे हैं, उससे यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि फ़िल्मों और हक़ीक़त का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है। अगर गुजरात जैसी घटना किसी ऐसे राज्य में घटी होती, जहाँ भाजपा की सरकार नहीं है, तो यही नेता छाती पीट-पीटकर चुनावों में ग़ायब हुई लड़कियों का ज़िक्र कर रहे होते। फिर आख़िर क्यों गुजरात से ग़ायब हुई हज़ारों लड़कियों का ज़िक्र नहीं हो रहा है।
एनसीआरबी के मुताबिक, भाजपा शासित राज्य गुजरात में पिछले 5 वर्षों में 41,21 लड़कियाँ ग़ायब हुई हैं। हैरान करने वाले यह आँकड़ों पर न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ बोल रहे हैं और न ही गृह मंत्री अमित शाह ही कुछ बोल रहे हैं। गुजरात की विधानसभा में भी भाजपा सरकार का कोई अदना नेता इस पर बोलने को तैयार नहीं है। इससे भी हैरानी की बात यह है कि गुजरात पुलिस भी इस पर ख़ामोश है। आख़िर इसकी वजह क्या है? कौन है इतनी बड़ी संख्या में लड़कियों के ग़ायब होने के पीछे? इन सवालों के जवाब तलाशने से पहले एनसीआरबी के आँकड़ों पर नज़र डालनी ज़रूरी है। एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक, साल 2021 में कुल 3,89,844 लोगों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज राज्य के अलग-अलग थानों में दर्ज हुईं। इन लोगों में सिर्फ़ महिलाओं की संख्या 2,65,481 है, जिसमें सबसे ज़्यादा लड़कियाँ हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट की मानें, तो यह संख्या साल 2020 के मुक़ाबले 20.6 प्रतिशत ज़्यादा है।
एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक, साल 2016 में जहाँ 7,105 लड़कियाँ गुजरात से लापता हुईं, वहीं साल 2017 में 7,712, साल 2018 में 9,246, साल 2019 में 9,268 और साल 2020 में 8,290 लड़कियाँ अकेले गुजरात से ग़ायब हुई हैं, जिनका अभी तक की पता नहीं चला है। यानी पिछले पाँच वर्षों में गुजरात से कुल 41,621 लड़कियाँ लापता हुई हैं। राज्य से हज़ारों लड़कियों के लापता होने का मुद्दा विधानसभा में भी उठ चुका है, बावजूद इसके सरकार को जैसे इसकी कोई ख़ास फ़िक़्र नहीं है, जबकि साल 2021 में ख़ुद भाजपा सरकार ने विधानसभा में अपने एक बयान में कहा था कि साल 2019-20 में ही अहमदाबाद और वडोदरा में 4,722 महिलाएँ ग़ायब हुई हैं।
अख़बारों में छपी ख़बरें और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड (एनसीआरबी) के आँकड़े बेहद डरावने और ख़तरनाक हालातों की ओर इशारा करते हैं। एक पूर्व आईपीएस अधिकारी और गुजरात राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्य सुधीर सिन्हा ने इन लड़कियों के ग़ायब होने को पुलिस व्यवस्था की ख़ामी बताते हुए सीधे-सीधे वेश्यावृत्ति की घिनौनी हरकत की ओर इशारा किया है। उन्होंने कहा है कि हत्या से भी गंभीर इन मामलों में ग़ायब बच्चों के वर्षोंसाल लौटने का इंतज़ार तो पुलिस करती है, लेकिन हत्या की तरह सख्ती से जाँच नहीं होती है। पुलिस ब्रिटिश काल के तरीक़े से जाँच करती है, जो खानापूर्ति के सिवाय कुछ नहीं है। वहीं एक पूर्व पुलिस अधिकारी ने राज्य से इतनी बड़ी संख्या में लड़कियों के ग़ायब होने के पीछे मानव तस्करी को ज़िम्मेदार ठहराया है।