उत्तर-पूर्व मुंबई, मुंबई

Mumbaiउत्तर-पूर्व मुंबई लोकसभा क्षेत्र से सबसे ज्यादा बार कांग्रेसी उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है. सात बार यह सीट कांग्रेस के खाते में गई है. जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी (1977 और 1980) को छोड़कर दूसरा कोई भी उम्मीदवार, इस सीट से लगातार दो बार लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाया है. इस बार लड़ाई, त्रिकोणीय दिखती है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता संजय दीन पाटिल यहां के मौजूदा सांसद हैं. पाटिल को भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवार किरीट सोमैया और आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार मेधा पाटकर से कड़ी चुनौती मिलने की संभावना है. 2009 में पाटिल ने केवल 3000 मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी. तब यह सीट भाजपा के कब्जे में थी और किरीट सोमैया यहां से सांसद थे. इस चुनाव में मनसे के उम्मीदवार शिशिर शिंदे को दो लाख के आसपास वोट मिले थे और इसी वजह से भाजपा के उम्मीदवार की हार हुई थी. परंतु इस बार स्थिति राकांपा उम्मीदवार के खिलाफ जाती दिख रही हैं. इस चुनाव में मनसे ने अलग से अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है सो ऐसा माना जा रहा है कि भगवा वोट एकमुश्त भाजपा उम्मीदवार के खाते में जाएगा. वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की मेधा पाटकर से भी राकांपा उम्मीदवार और मौजूदा सांसद संजय दीन पाटिल को नुकसान होता दिख रहा है. पाटकर को गरीब और झुग्गी वाले इलाकों से ज्यादा वोट मिलने की उम्मीद है और यह कांग्रेस-रांकपा का वोट बैंक है. अपनी उम्मीदवारी की घोषणा होने के बाद मेधा पाटकर ने मीडिया से बात करते हुए कहाथा, “उत्तर पूर्वी मुंबई के लोगों से हमारा पुराना जुड़ाव है. हमने साल 1976 से 1979 तक उस क्षेत्र में एक हिस्से में 80 हजार परिवारों के बीच काम किया है.”  मेधा पाटकर अपने आंदोलनों को लेकर इन इलाकों में वर्षों से सक्रिय रही है और वे मराठी भी हैं. इसलिए जानकार मानते हैं कि मेधा को अलग-अलग योजनाओं से विस्थापित हुए उत्तर भारतीयों, झुग्गियों में रहने वाले गरीब मुसलमानों और स्थानीय मराठियों के वोट भी मिल सकते हैं. कई सालों से मुंबई की राजनीति पर नजर रखने वाले स्वतंत्र पत्रकार अभिमन्यु सितोले का मानना है कि इस सीट पर लड़ाई आम आदमी पार्टी की मेधा पाटकर और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार किरीट सोमैया के बीच ही होने वाली है. वे कहते हैं, ’देखिए…मेधा के आ जाने से इस सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है. इस सीट पर हर किस्म के वोटर हैं. जैसे मेट्रो आदि की वजह से विस्थापित हुए लोगों का वोट है. झुग्गी में रह रहे लोगों के वोट हैं और शहरी मध्यमवर्गीय मतदाता तो है ही. और एक बात, गुजराती वोटर भी यहां अच्छी संख्या में है.’ वे आगे समझाते हैं, ’फिलहाल जो सांसद हैं उनकी छवि ठीक नहीं है. वैसे भी इस सीट से कोई उम्मीदवार लगातार दो बार चुनाव नहीं जीतता और इस बार भी ऐसा ही होना तय दिखता है. लड़ाई भाजपा और आप में है. ‘आप’ के पास हर तरह के वोटर आ सकते हैं. अभी तो ऐसा लगता है कि भाजपा को बढ़त मिल जाएगी, लेकिन कुछ कहा नहीं जा सकता. अगर मध्यमवर्गीय वोटरों का एक हिस्सा ‘आप’ के पास चला गया तो भाजपा को इस बार भी यह सीट गंवानी पड़ सकती है.’