चेंज डॉट ओआरजी विभिन्न मसलों पर निजी प्रकार के अभियान चलाने वालों के लिए ही नहीं बल्कि सम्पन्न और सशक्त लोगों के लिए भी अपने अभियान के समर्थन में जनमत जुटाने का एक प्रभावशाली माध्यम बनकर उभरा है. कर्नाटक से निर्दलीय राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर बताते हैं, ‘चेंज डॉट ओआरजी से मेरा परिचय तब हुआ, जब मैं विभिन्न मुद्दों पर लोगों तक पहुंचने, उन्हें जागरूक करने और ऑनलाइन भारतीयों का संगठित समर्थन पाने के तरीके खोज रहा था.’
राजीव को प्रसन्नता हुई जब रक्षा सेवाओं में कार्यरत नागरिकों के मताधिकार के लिए दायर की गई उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया और भारतीय चुनाव आयोग को निर्देश जारी कर कहा कि सैनिकों के मताधिकार पर अंकुश न लगाया जाए. उनकी याचिका के समर्थन में 65, 000 लोगों ने ऑनलाइन हस्ताक्षर किए थे. सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद देते हुए कहते हैं, ‘अब भारतीय सैनिक भी आम मतदाता की श्रेणी में आ गए हैं और देश में चुनावों के दौरान वो जहां भी नौकरी पर तैनात होंगे, वहीं से वोट डालने के अधिकारी होंगे. व्यस्क मताधिकार को जमीन पर वास्तविकता में बदलने की कोशिशों के बारे में चंद्रशेखर बताते हैं, ‘जैसे ही मुझे 2013 में यह पता लगा कि जानते हुए भी हम अपने सैनिकों और उनके परिजनों के मताधिकार का उल्लंघन कर रहे हैं तो मैंने इसकी वकालत करते हुए अपनी तरफ से सरकार से संवाद बनाने की पूरी कोशिश की.’ लेकिन कोई ठोस प्रतिक्रिया न मिलती देख चंद्रशेखर ने अपनी बात रखने के लिए चेंज डॉट ओआरजी के माध्यम से ऑनलाइन समर्थन जुटाने की ठानी. इस ऑनलाइन याचिका पोर्टल ने इस मुद्दे पर उन्हें बड़ी संख्या में लोगों का समर्थन पाने में मदद भी की. उनकी एक और याचिका फिलहाल इस वेबसाइट पर ट्रेंड कर रही है जिसमें वे बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए देश के प्रधानमंत्री से कदम उठाने की अपील कर रहे हैं. अभी तक उन्होंने केवल इन्हीं दो अभियानों को वेबसाइट पर प्रचारित किया है.
चंद्रशेखर पहले एक सफल व्यापारी थे. सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए आम नागरिकों की तुलना में, चंद्रशेखर के पास कहीं अधिक सशक्त साधन हैं. लेकिन आम लोगों के लिए अपनी मांग के समर्थन में ज्यादा से ज्यादा समर्थक जुटाने और व्यापक जागरूकता फैलाने में ऑनलाइन अभियान खासे प्रभावी रहे हैं. पैरा एथलीटों और विकलांगों के लिए काम करने वाले प्रदीप राज का कहना है, ‘ऑफलाइन संगठित करने की अपेक्षा लोगों को ऑनलाइन संगठित करना खासा आसान साबित हुआ है.’
भारत में चेंज डॉट ओआरजी ने समाज की समस्या बन चुके विभिन्न मुद्दों के खिलाफ लोगों को आवाज उठाने का अवसर दिया है
राज को चेंज डॉट ओआरजी के बारे में पहली बार तब पता लगा जब उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी के मामले में एक याचिका पर हस्ताक्षर किया. इसके बाद उन्होंने खुद खिलाड़ियों और विकलांगों के अधिकारों के लिए याचिका दाखिल करनी शुरू की. उनमें से एक याचिका आम चुनाव 2014 से पहले विकलांगता अधिकार विधेयक संसद में प्रस्तुत किए जाने को लेकर थी. इससे पहले राज ने एक और याचिका लगभग दो साल पहले पैरालंपिक कमेटी ऑफ इंडिया (पीसीआई) के उस फैसले के खिलाफ लगाई थी जिसमें पीसीआई ने किसी भी पैरा-एथलीट के कोच और माता-पिता को लंदन पैरालंपिक्स 2012 के दौरान खेल गांव के अंदर जाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था. राज को सफलता भी मिली. वह बताते हैं, ‘लंदन पैरालंपिक में हार के दौरान मैंने भारत सरकार से पीसीआई के खिलाफ कदम उठाने के लिए याचिका लगाई. 24 घंटे के अंदर पीसीआई को कारण बताओ नोटिस भेजकर कड़ी कार्रवाई की गई. यह जीत सिर्फ इसलिए मिली क्योंकि उन्हें 9,000 से ज्यादा लोगों का समर्थन मिला था.’
2014 में खेल मंत्रालय के नियमानुसार पीसीआई को राष्ट्रीय खेल संघ (एनएसएफ) की ओर से वार्षिक मान्यता नहीं दी गई . इस साल की शुरुआत में पीसीआई के खिलाफ समर्थन पाने के लिए प्रदीप राज ने दोबारा एक और याचिका चेंज डाॅट ओआरजी पर शुरू की. इस बार यह याचिका बोर्ड मे विकलांगों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए थी. पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का कहना था, ‘लोकतंत्र में, किसी राष्ट्र की समग्र खुशहाली, शांति और खुशी के लिए हर नागरिक की खुशी और वैयक्तिकता का सम्मान होना महत्वपूर्ण है.’ असहमति व्यक्त करना वैयक्तिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो लोकतंत्र का भी सबसे महत्वपूर्ण अंग है. इस संदर्भ में चेंज डॉट ओआरजी उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा है, जहां जीवन के हर क्षेत्र के लोग खेल से लेकर पर्यावरण तक के मुद्दों पर अपनी असहमति व्यक्त कर याचिका लगा सकते हैं.
यह माध्यम याचिका की शुरुआत करने वाले को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करता है. भारत में चेंज डॉट ओआरजी की प्रमुख प्रीति हर्मन का कहना है, ‘यह एक याचिका शुरू करने का माध्यम है जो आपके अभियान को आगे बढ़ाता है. साइट पर सबसे लोकप्रिय लोग और अभियान वे हैं जिनकी निजी कहानियां सभी पर व्यापक छाप छोड़ने वाली हैं. वे सीधा निर्णायकों से सवाल कर एक निश्चित समय सीमा में निर्णय लिए जाने की मांग करते हैं.’ चेंज डॉट ओआरजी जब याचिका के लिए एक बार पर्याप्त समर्थन जुटा लेता है तो बदलाव की मांग को लेकर निर्णायकों के पास जाना अगला कदम होता है. इस तरह कई याचिका-कर्ताओं का सुझाव वास्तविकता में तब्दील हुआ और वे बदलाव लाने में सफल हुए हैं. हर्मन बताती हैं, ‘साइट के वर्तमान 30 लाख उपयोगकर्ताओं में से कम से कम एक तिहाई (10 लाख) लोगों की याचिकाएं सफल रही हैं.’
[ilink url=”https://tehelkahindi.com/even-a-common-man-can-bring-change-says-preeti-harman/” style=”tick”]पढ़ें प्रीति हर्मन का पूरा साक्षात्कार [/ilink]
चेंज डॉट ओआरजी की हालिया सफल याचिका अंतर्राष्ट्रीय बास्केटबॉल संघ (एफआईबीए) के उस फैसले के खिलाफ थी जिसमें संघ ने सिखों के पगड़ी बांधकर खेलने को प्रतिबंधित कर दिया था. इस याचिका की शुरुआत आरपीएस कोहली ने की थी. कोहली की याचिका से सहमति जताते हुए पिछले साल सितंबर में एफआईबीए ने अंतर्राष्ट्रीय खेलों में सिख समुदाय के पगड़ी पहनने से प्रतिबंध हटा लिया.
सबसे प्रसिद्ध याचिका तेजाबी हमले की शिकार बनने के बाद नई जिंदगी की शुरुआत करने वाली लक्ष्मी ने 2013 में शुरू की थी. अपने अनुभव को बांटते हुए लक्ष्मी बताती हैं, ‘मैंने याचिका तब शुरू की जब मुझे महसूस हुआ कि सरकार इस जघन्य कृत्य पर रोकथाम लगाने को लेकर गंभीर नहीं है. मुझे ऑफलाइन भी समर्थन प्राप्त था पर उतनी संख्या में नहीं जितना कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए जरूरी थी. इंटरनेट अब किसी भी मुद्दे पर बहस और अपनी असहमति व्यक्त करने का एक बड़ा माध्यम बन गया है, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए लक्ष्मी ने अपनी मुहिम के समर्थन में चेंज डॉट ओआरजी का सहारा लिया. पचास हजार से ज्यादा लोग उनकी याचिका के समर्थन में आगे आए. लक्ष्मी कहती हैं, ‘मैं अब भी पोर्टल का उपयोग करती हूं और यह बड़ी सुकून देने वाली बात है कि अब यह हिंदी में भी शुरू हो चुका है.’ वह प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहती हैं, ‘यह बहुत ही अच्छी बात है कि अब मैं याचिका अपनी भाषा में लिख और पढ़ सकती हूं.’
लक्ष्मी की याचिका ने सफलता का स्वाद तब चखा जब वह तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के पास देश में तेजाब की खुली बिक्री रोके जाने की मांग लेकर पहुंची और चेंज डाॅट ओआरजी पर अपने समर्थन को दिखाया. तब केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि तेजाब की खुदरा बिक्री पर कठोर नियंत्रण किया जाए. इसके बाद न जाने कितनी ही मासूमों के सपने जला चुके घरेलू सफाई के काम आने वाले तेजाब को विष अधिनियम, 1919 के अंतर्गत आने वाले पदार्थों में शामिल कर लिया गया.
इसमें कोई दो राय नहीं कि चेंज डॉट ओआरजी अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के इस्तेमाल का वर्तमान में एक सबसे लोकप्रिय जरिया है. लेकिन इसके पीछे लगा ‘डॉट ओआरजी’ भ्रम की स्थिति भी पैदा करता है और इस कारण से इसे अक्सर गलती से नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन (एनजीओ)समझ लिया जाता है. समस्या याचिका शुरू करने वाले के सत्यापन को लेकर भी होती है. हैदराबाद की नालसर लॉ यूनिवर्सिटी का ही उदाहरण लें जहां छात्रों और लोकल मीडिया ने एक -दूसरे पर आरोप लगाते हुए याचिका लगानी शुरू कर दी. अब इनमें कौन सही था और कौन गलत, यह विवाद उत्पन्न हो गया. बहरहाल, ऐसी गड़बड़ अक्सर होती रहती हैं.
भारत में चेंज डॉट ओआरजी ने समाज की समस्या बन चुके विभिन्न मुद्दों के खिलाफ लोगों को आवाज उठाने का अवसर दिया है. प्रदीप राज कहते हैं, ‘लोगों का सही जगह तक पहुंचना ही देश में सबसे बड़ी चुनौती है. अगर हम स्कूल नहीं जा सकते, कॉलेज भी नहीं जा सकते, अस्पताल और ऑफिस भी नहीं जा सकते क्योंकि हम अपंग हैं तो फिर अधिकारों की बात करने का क्या फायदा! हम उन्हीं मौजूद कानूनों और उपायों को लागू कराने में जूझते हैं जिनसे हमारे अधिकार सुनिश्चित होते हैं. बिल पेश हो जाते हैं, पारित हो जाते हैं पर इन नए बने कानूनों को कभी लागू नहीं किया जाता.’ ऐसे में चेंज डॉट ओआरजी अपनी बात रखने और लक्ष्य तक प्रभावी पहुंच बनाने का एक आसान तथा क्रांतिकारी माध्यम है.
जो भी कहा जाए, पर यह सच है कि चेंज डॉट ओआरजी ने आम जनता को अपने मुद्दे को अंजाम तक पहुंचाने का एक माध्यम दिया है. लोकतंत्र की आत्मा को सुरक्षित रखने का यह एक नया तरीका है, जो कि लोगों का है, लोगों के लिए है और लोगों के द्वारा है.