देश के सीमाई राज्य अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 24 जनवरी को हुई कैबिनेट बैठक में यहां राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की गई. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी राष्ट्रपति शासन संबंधी कैबिनेट प्रस्ताव पर मंगलवार को हस्ताक्षर कर दिए, जिसके बाद 26 जनवरी से राष्ट्रपति शासन प्रभावी हो गया है. संविधान के अनुच्छेद 356 (1) के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया गया है. संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान भी अरुणाचल का मुद्दा उठाया गया था. तब कांग्रेस ने हंगामा कर संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी थी.
क्यों लगा राष्ट्रपति शासन?
अरुणाचल प्रदेश में फरवरी 2014 से ही राजनीतिक संकट शुरू हो गया था. तब चुनाव से कई महीने पहले मुख्यमंत्री नबाम तुकी ने विधानसभा भंग कर दी थी. 60 सदस्यीय विधानसभा में 42 विधायकों के साथ कांग्रेस ने फिर से राज्य में सरकार बनाई. इसके बाद मुख्यमंत्री का सपना देखने वाले कांग्रेस विधायक के. पुल ने अपनी ही सरकार पर वित्तीय गड़बड़ियों का आरोप लगाया. 16 दिसंबर 2015 को कांग्रेस के 21 बागी विधायकों ने बीजेपी के 11 सदस्यों और 2 निर्दलीय विधायकों के साथ एक अस्थायी जगह पर विधानसभा का सत्र आयोजित किया. इसमें विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया पर महाभियोग चलाया गया. कांग्रेस के बागी विधायकों ने मुख्यमंत्री नबाम तुकी की जगह कैलिखो पॉल को नेता चुन लिया था. इसके चलते विधानसभा अध्यक्ष ने इनकी सदस्यता रद्द कर दी थी. नबाम तुकी ने राज्यपाल जेपी राजखोवा पर भाजपा एजेंट की तरह काम करने का आरोप लगाया. इन हालातों को देखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की और राष्ट्रपति ने इस पर मुहर लगा दी. फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है और पांच सदस्यों की संविधान पीठ इसकी सुनवाई कर रही है.
राज्यपाल ने क्या बताया कारण?
अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा ने राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए 15 जनवरी को प्रणब मुखर्जी को भेजी रिपोर्ट में ‘गोहत्या’ और पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी के उग्रवादी संगठन से संपर्क को कारण बताया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राजखोवा ने इस रिपोर्ट में कहा है कि तीन बागी विधायकों ने तुकी पर उग्रवादी संगठन एनएससीएन (खापलांग गुट) से संपर्क में रहने का आरोप लगाया था. पिछले साल 17 दिसंबर को तुकी और स्पीकर नबाम रेबिया के नेतृत्व में आए प्रदर्शनकारियों ने राजभवन के सामने एक पशु (मिथुन) की हत्या की थी. यह पशु स्थानीय लोगों में गाय की तरह ही पवित्र माना जाता है. रिपोर्ट के साथ ही उन्होंने उस घटना की तस्वीर भी राष्ट्रपति को भेजी है.